Search

उपदेश

विषय ९ : रोमियों (रोमियों की पत्री किताब पर टिप्पणी)

[अध्याय 2-3] ख़तना वही है जो हृदय का है (रोमियों २:१७-२९)

( रोमियों २:१७-२९ )
“यदि तू यहूदी कहलाता है, और व्यवस्था पर भरोसा रखता है, और परमेश्‍वर के विषय में घमण्ड करता है, और उसकी इच्छा जानता और व्यवस्था की शिक्षा पाकर उत्तम उत्तम बातों को प्रिय जानता है; और अपने पर भरोसा रखता है कि मैं अंधों का अगुवा, और अंधकार में पड़े हुओं की ज्योति, और बुद्धिहीनों का सिखानेवाला, और बालकों का उपदेशक हूँ; और ज्ञान, और सत्य का नमूना, जो व्यवस्था में है, मुझे मिला है। अत: क्या तू जो दूसरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता? क्या तू जो चोरी न करने का उपदेश देता है, आप ही चोरी करता है? तू जो कहता है, “व्यभिचार न करना,” क्या आप ही व्यभिचार करता है? तू जो मूरतों से घृणा करता है, क्या आप ही मन्दिरों को लूटता है? तू जो व्यवस्था के विषय में घमण्ड करता है, क्या व्यवस्था न मानकर परमेश्‍वर का अनादर करता है? “क्योंकि तुम्हारे कारण अन्यजातियों में परमेश्‍वर के नाम की निन्दा की जाती है,” जैसा लिखा भी है। यदि तू व्यवस्था पर चले तो खतने से लाभ तो है, परन्तु यदि तू व्यवस्था को न माने तो तेरा खतना बिन खतना की दशा ठहरा। इसलिये यदि खतनारहित मनुष्य व्यवस्था की विधियों को माना करे, तो क्या उसकी बिन खतना की दशा खतने के बराबर न गिनी जाएगी? और जो मनुष्य शारीरिक रूप से बिन खतना रहा, यदि वह व्यवस्था को पूरा करे, तो क्या तुझे जो लेख पाने और खतना किए जाने पर भी व्यवस्था को माना नहीं करता है, दोषी न ठहराएगा? क्योंकि यहूदी वह नहीं जो प्रगट में यहूदी है; और न वह खतना है जो प्रगट में है और देह में है। पर यहूदी वही है जो मन में है; और खतना वही है जो हृदय का और आत्मा में है, न कि लेख का : ऐसे की प्रशंसा मनुष्यों की ओर से नहीं, परन्तु परमेश्‍वर की ओर से होती है”। 
 


हमारे हृदय का ख़तना होना ही चाहिए


"खतना वही है जो हृदय का है।" जब हम हृदय से विश्वास करते हैं तो हम उद्धार प्राप्त करते है। हमें हृदय में उद्धार प्राप्त करना चाहिए। परमेश्वर कहते हैं, “और खतना वही है जो हृदय का और आत्मा में है, न कि लेख का : ऐसे की प्रशंसा मनुष्यों की ओर से नहीं, परन्तु परमेश्‍वर की ओर से होती है” (रोमियों २:२९)। हमारे हृदय में पापों की माफ़ी होनी चाहिए। यदि हमारे हृदय में पाप की माफ़ी नहीं है, तो यह अमान्य है। मनुष्य के पास एक "आंतरिक मनुष्य और एक बाहरी मनुष्य" है, और प्रत्येक को आंतरिक रूप से पाप की माफ़ी प्राप्त करनी चाहिए।
प्रेरित पौलुस ने यहूदियों से कहा, "खतना वही है जो हृदय का है।" फिर क्या यहूदियों ने खतना किया? उन्होंने देह के एक हिस्से का खतना किया। हालाँकि, प्रेरित पौलुस कहता हैं, "खतना वही है जो हृदय का है।" यहूदियों ने बाहरी खतना किया, परन्तु पौलुस कहता है, कि खतना वही है जो हृदय का है। जब हम परमेश्वर की संतान बनते हैं तो परमेश्वर हमें अपने हृदय में बताता है।
पौलुस बाहरी खतने के बारे में बात नहीं करता है, लेकिन हृदय में ख़तना और पापों की माफ़ी के बारे में बात करता है। तो जब वह कहता है की, “यदि कुछ विश्वासघाती निकले भी तो क्या?" (रोमियों ३:३) उसका मतलब है, "यदि कोई हृदय में विश्वास न करे तो।" वह बाहरी रूप से विश्वास करने की बात नहीं करता, लेकिन कहता है की, "हृदय में विश्वास करो।" हमें पता होना चाहिए कि प्रेरित पौलुस का मतलब क्या है और पाप की माफ़ी क्या है। हमें यह भी सीखना चाहिए कि परमेश्वर के वचन के द्वारा हमारे हृदयों में पाप की माफ़ी कैसे प्राप्त करें।
“यदि कुछ विश्वासघाती निकले भी तो क्या?" मतलब “क्या होगा यदि यहूदी यीशु मसीह पर अपने उद्धारकर्ता के रूप में विश्वास नहीं करते, भले ही वे देह में इब्राहीम के वंशज हैं?" क्या उनका अविश्वास परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को निष्प्रभावी कर देगा? क्या यह सच्चाई कि परमेश्वर ने इब्राहीम के वंशजों के पापों सहित हमारे सभी पापों को मिटा दिया, अमान्य हो जाएगा? कभी नहीँ। पौलुस का कहना है कि यहां तक कि यहूदी, जो देह से अब्राहम के वंशज हैं, वे तभी बच सकते है जब वे विश्वास करे कि यीशु मसीह उद्धारकर्ता है, परमेश्वर का पुत्र है, जिसने अपने बपतिस्मा और क्रूस पर चढ़ाए जाने के द्वारा जगत के पापों को उठा लिया। वह यह भी कहता है कि यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का उद्धार और अनुग्रह अमान्य नहीं हो सकता।
रोमियों ३:३-४ में कहा गया है, “यदि कुछ विश्वासघाती निकले भी तो क्या? क्या उनके विश्वासघाती होने से परमेश्वर की सच्चाई व्यर्थ ठहरेगी? कदापि नहीं! वरन परमेश्वर सच्चा और हर एक मनुष्य झूठा ठहरे, जैसा लिखा है, ‘जिससे तू अपनी बातों में धर्मी ठहरे और न्याय करते समय तू जय पाए।’” प्रभु ने अपने वचन के साथ प्रतिज्ञा की और अपने द्वारा किए गए अपने वादे को पूरा करने के द्वारा विश्वासियों को पवित्र किया। परमेश्वर ने जो वादा किया था उसे पूरा करने के द्वारा अपनी धार्मिकता दिखाना चाहता है और उन लोगों को न्यायोचित ठहराना चाहता है जो यीशु के वचन के द्वारा उस पर विश्वास करते हैं। हम भी, जिनके हृदय में पाप की माफ़ी है, उसके वचन के द्वारा न्याय न्याय प्राप्त करना चाहते हैं और जब हमारा न्याय किया जाता है तो हम उसके वचन से विजयी होना चाहते हैं। 
 

प्रेरित पौलुस बाहरी और आतंरिक मनुष्य के बारे में बात करता है

पौलुस अपने "बाहरी और आंतरिक मनुष्य" के बारे में बात करता है। हमारे पास एक बाहरी मनुष्य और आंतरिक मनुष्य भी है, जो कि देह और आत्मा हैं। हम उसके जैसे ही हैं। अब पौलुस इस मुद्दे से निपटता है।
रोमियों ३:५ कहता है, “इसलिए यदि हमारा अधर्म परमेश्वर की धार्मिकता ठहरा देता है, तो हम क्या कहे?” पौलुस का यह मतलब नहीं है कि उसका बाहरी रूप शुद्ध है। उसकी देह गंदी है और वह मरने तक पाप करता रहता है। इसमें जगत के सभी लोग शामिल हैं। हालाँकि, यदि परमेश्वर ने उन लोगों को बचाया होता, तो क्या वह अपनी धार्मिकता प्रदर्शित नहीं करता? भले ही मनुष्य का बाहरी रूप कमज़ोर है लेकिन यदि परमेश्वर ने मनुष्यों को बचाया होता, तो क्या परमेश्वर धर्मी नहीं होता? इसलिए पौलुस कहता है, “क्या यह की परमेश्वर जो क्रोध करता है अन्यायी है? (यह तो मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूँ)। कदापि नहीं! नहीं तो परमेश्वर कैसे जगत का न्याय करेगा?” (रोमियों ३:५-६) पौलुस समझाता है कि हम सिर्फ इसलिए नहीं बचाए गए हैं क्योंकि हमारे बाहरी शरीर शुद्ध हैं। 
हमारे पास बाहरी और आंतरिक मनुष्य हैं। हालाँकि, पौलुस हृदय के बारे में यह कहते हुए व्यवहार करता है, “यदि कुछ लोग विश्वास न करें तो क्या? क्या उनका अविश्वास परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को निष्प्रभावी कर देगा? खतना वही है जो हृदय का है।" यदि हम हमारे बाहरी मनुष्य के आधार पर जो पापी है और कमज़ोर है, ऐसे विश्वास का निर्माण करे जो एक दिन धर्मी हो और दुसरे ही दिन पाप करे तो यह सच्चा विश्वास नहीं है।
 


बाहरी मनुष्य मरते दम तक पाप करता है


प्रेरित पौलुस ने अपनी आशा अपने बाहरी मनुष्य पर नहीं रखी। जिनके पाप मिट जाते हैं, उनके भी बाहरी और आंतरिक मनुष्य होते हैं। जब वे अपने बाहरी रूप को देखते हैं तो उन्हें कैसा लगता है? वे निराश होते है। आइए हम अपने बाहरी मनुष्य को देखें। कभी-कभी हम अच्छे होते हैं, लेकिन कभी-कभी हम केवल घृणित होते हैं। लेकिन बाइबल कहती है कि हमारे बाहरी शरीर को यीशु मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया था। हमारा बाहरी मनुष्य मर चुका है, और यीशु मसीह ने हमारे बाहरी मनुष्य के सभी पापों को माफ़ कर दिया।
हम जो बचाए गए हैं, जब हम अपने बाहरी रूप को देखते हैं तो अक्सर अपने बाहरी रूप से निराश हो जाते हैं। जब हमारा बाहरी मनुष्य कुछ अच्छा करता हैं तो हम आशान्वित होते हैं, लेकिन जब वे हमारी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते तो निराश हो जाते हैं। हम सोचते हैं कि जब हम अपने बाहरी मनुष्य से निराश होते हैं तब हमारा विश्वास नष्ट हो जाता हैं। हालाँकि, ये सच नहीं है। हमारा बाहरी मनुष्य पहले से ही मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाए गए थे। जिनके पास पापों की माफ़ी है, वे भी अपने शारीरिक देह से पाप करते जाते है। लेकिन क्या यह पाप नहीं है? हाँ यह पाप है, लेकिन यह एक मृत पाप है। यह मर चुका है क्योंकि पापों को प्रभु के साथ क्रूस पर ले जाया गया था। बाहरी देह जो पाप करती है वह कोई गंभीर समस्या नहीं है, हालाँकि यह एक गंभीर बात है कि हमारे हृदय प्रभु के सामने ठीक नहीं हैं।
 

हमें ह्रदय से परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए

पाप की माफ़ी प्राप्त करने के बाद ही धर्मी लोगों के लिए और अधिक अधर्म प्रकट होते हैं। इसलिए, यदि हम अपने उद्धार का आधार बाहरी मनुष्य पर रखते है जो प्रतिदिन पाप करता है तो परमेश्वर का उद्धार अपूर्ण हो जाएगा। यदि हम अपने विश्वासों को बाहरी देह के कामों के आधार पर स्थापित करते हैं, तो हमारा विश्वास परमेश्वर में विश्वास से भटक जाएगा, जो इब्राहीम का था।
प्रेरित पौलुस कहता है, "खतना वही है जो हृदय का है।" हम बाहरी मनुष्य के कामों के अनुसार नहीं, बल्कि हृदय में विश्वास करने से पवित्र और धर्मी बनते हैं। पवित्रता इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि हमारा बाहरी मनुष्य परमेश्वर के कहे अनुसार करता हैं या नहीं। क्या आप इस बात को समझ सकते हो? समस्या यह है कि हमारे पास बाहरी और आंतरिक मनुष्य दोनों हैं और वे एक मत के हैं। इसलिए, हम कभी-कभी बाहरी मनुष्य पर अधिक जोर देते है। यदि हमारा बाहरी मनुष्य अच्छा करता हैं तो हम आश्वस्त हो जाते हैं, लेकिन यदि वह ऐसा नहीं करता हैं तो हम निराश हो जाते हैं। पौलुस कहता हैं कि यह सच्चा विश्वास नहीं है।
"खतना वही है जो हृदय का है।" असली सच्चाई क्या है? हम कैसे जान सकते है और हृदय से विश्वास कर सकते है? मत्ती १६ में, यीशु ने पतरस से पूछा, "तुम मुझे क्या कहते हो?" तब पतरस ने यह कहते हुए अपने विश्वास का अंगीकार किया, कि “तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है”। पतरस ने ठीक वैसा ही मन से विश्वास किया। यीशु ने कहा, “हे शमौन, योना के पुत्र, तू धन्य है, क्योंकि मांस और लोहू ने नहीं, परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, यह बात तुझ पर प्रगट की है।” यीशु ने कहा कि पतरस का विश्वास सच्चा था।
इब्राहीम का कोई पुत्र नहीं था। परमेश्वर ने अपने वचन के साथ उसकी अगुवाई की और वादा किया कि वह उसे एक पुत्र देगा और वह कई राष्ट्रों का पिता होगा। परमेश्वर यह भी कहा कि वह उसके लिए और उसके बाद उसके वंशजों के लिए उनका परमेश्वर ठहरेगा। परमेश्वर ने अब्राहम, उसके परिवार और उसके वंशजों को परमेश्वर और अब्राहम के बीच की वाचा के चिन्ह के रूप में खतना कराने के लिए कहा। परमेश्वर ने कहा "देह के एक हिस्से को काटने का निशान वाचा है कि मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ,"। इब्राहीम ने अपने हृदय से वाचा पर विश्वास किया। उसका मानना था कि परमेश्वर उसके लिए परमेश्वर ठहरेगा और उसके हृदय को आशीष देगा। वह यह भी विश्वास करता था कि उसके बाद उसके वंशजों के लिए परमेश्वर ही परमेश्वर ठहरेगा। वह खुद परमेश्वर पर विश्वास करता था।
 

हम हृदय से पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करने के द्वारा धर्मी ठहरते है

हम अपने हृदय से यह विश्वास करने के द्वारा धर्मी बने है कि परमेश्वर हमारा परमेश्वर है, हमारा उद्धारकर्ता है। हमने अपने हृदय से विश्वास करने के द्वारा उद्धार पाया है। हमने किसी ओर चीज से उद्धार नहीं पाया है। हम अपने हृदय से यह विश्वास करने के द्वारा धर्मी बने है कि परमेश्वर हमारा परमेश्वर है और उसने यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसकी मृत्यु के साथ हमारे सभी पापों को मिटा दिया। हमारे हृदय से विश्वास करने के द्वारा हम उद्धार प्राप्त करते है। इसलिए बाइबल कहती है, "क्योंकि धार्मिकता केर लिए मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिए मुँह से अंगीकार किया जाता है" (रोमियों १०:१०)।
इस समय हमें जो स्पष्ट करना चाहिए, वह यह है कि हम अपने हृदय से विश्वास करने के द्वारा धर्मी बने हैं, न कि हमारी देह के अच्छे कर्मों से। हम धर्मी नहीं बन पाते यदि यीशु ने हमारे बाहरी मनुष्य के लिए यह कहते हुए शर्त रखी होती की, "मैं तुम्हारे सभी पापों को मिटा दूंगा, लेकिन एक शर्त के तहत। यदि आप पाप करना बंद करते है तो आप मेरी संतान बन सकते हैं। यदि आप ऐसा करने में विफल रहते हैं तो आप मेरी संतान नहीं बन सकते।" 
हम अपने हृदय से विश्वास करने के द्वारा धर्मी बने है। यदि परमेश्वर ने हमारे बाहरी मनुष्य के साथ शर्त रखी होती तो क्या हम धर्मी बन सकते थे? क्या आप विश्वास करते हैं कि परमेश्वर ने यरदन नदी में अपने बपतिस्मा, और आपकी जगह न्याय को प्राप्त करने के द्वारा आपको बचाया है? आप इस पर कैसे विश्वास करते हैं? क्या आप अपने हृदय से विश्वास नहीं करते? यदि परमेश्वर ने कहा होता की, “मैं तुम्हारी छोटी कमियों को माफ़ करूंगा लेकिन बड़ी कमियों को माफ़ नहीं करूँगा” तो क्या आप पूरी तरह से उद्धार प्राप्त कर सकते थे? यदि आप इस शर्त का पालन करने में विफल होते हैं तो मैं आपके छुटकारे को अमान्य कर दूंगा”?
 


हमें आतंरिक मनुष्य को बाहरी मनुष्य से अलग करना चाहिए


हमारी देह, बाहरी मनुष्य, हमेशा कमजोर होता है और वह अपने आप परमेश्वर की धार्मिकता तक नहीं पहुंच सकता। हम परमेश्वर के सामने हृदय से विश्वास करने के द्वारा धर्मी बने हैं क्योंकि उसने उन लोगों को बचाने का वादा किया है जो अपने हृदय से विश्वास करते हैं। परमेश्वर ने जो किया है उसे और यीशु ने हमारे पापों को ले लिया है और उन्हें मिटा दिया है इस बात को हम हृदय से अंगीकार करते है, हमारे इस विश्वास को देखकर परमेश्वर हमें अपनी धार्मिक संतान बनाते है। यह परमेश्वर की वाचा है, और उसने अपना वाyदा पूरा करके हमें बचाया है।
परमेश्वर कहते हैं कि जब वे हमारे हृदय में विश्वास देखते हैं, तब हम उनके लोग हैं। हमें अपने बाहरी मनुष्य को अपने आतंरिक मनुष्य से अलग करना चाहिए। यदि हम अपने बाहरी मनुष्य के कामों पर हमारे उद्धार के मापदंड को बनाते है तो जगत में कोई भी व्यक्ति पापों की माफ़ी को प्राप्त नहीं कर पाएगा। "खतना वह है जो हृदय का है।" हम अपने हृदय से यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा बचाए गए हैं। क्या आप इस बात को समझ सकते हो? "क्योंकि धार्मिकता पर मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है" (रोमियों १०:१०)। प्रेरित पौलुस स्पष्ट रूप से बाहरी मनुष्य को आंतरिक मनुष्य से अलग करता है।
हमारा बाहरी मनुष्य कुत्ते की गंदगी से भी बदतर है। यह बेकार है। हमें अब्राहम को एक उदाहरण के रूप में उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है। अपने आप को देखो। अपनी बेकार देह को देखे। उच्च सामाजिक स्थिति प्राप्त करने और संपन्नता में रहने की कोशिश में देह छल का सहारा लेती है। क्या देह हमेशा अपने हित को नहीं देखती? यदि देह का न्याय इस बात पर किया जाए की वह कैसे सोचती है और कार्य कराती है तो एक दिन में बारह बार से ज्यादा उसका न्याय होगा। देह परमेश्वर के खिलाफ है।
सौभाग्य से, परमेश्वर हमारे बाहरी मनुष्य की परवाह नहीं करता है, लेकिन वह केवल हमारे भीतर के मनुष्य पर ध्यान देता है। जब वह देखता है की हम वास्तव में अपने हृदय से विश्वास करते है की यीशु हमारा उद्धारकर्ता है तब वह हमें उध्धाए देता है। वह हमें बताता है कि उसने हमें हमारे सभी पापों से बचाया है।
 

हम अपने खुद के विचारों के द्वारा उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते

आइए हम अपने स्वयं के विचारों को देखें। हमें लगता है कि हम केवल अपने विचारों से विश्वास कर सकते हैं। हम यह सोचते हुए देह के विचारों के साथ विश्वास कर सकते हैं की, `मैं बच गया क्योंकि परमेश्वर ने मुझे बचाया।` हालाँकि, हम अपने विचारों से नहीं बच सकते हैं। दैहिक मन हर समय बदलता है और हमेशा बुराई करता है। क्या यह सच है? दैहिक मन के विचार अपनी वासनाओं के अनुसार ऐसा और वैसा करना चाहते हैं। 
मान लीजिए कि कोई व्यक्ति अपने विचारों के आधार पर अपना विश्वास रखता है। उसे अपने उद्धार पर भरोसा हो सकता है जबकि उसका वर्तमान विचार उसके पूर्व विचार से सहमत है, अर्थात, `यीशु ने हमारे सभी पापों को यरदन नदी में ले लिया।` हालाँकि, क्योंकि देह के विचार स्थिर नहीं हैं, इसलिए वह अपने उद्धार में और अधिक विश्वास नहीं कर सकता है, एक बार थोड़ा सा संदेह उद्धार के बारे में उसके कमजोर विचार पर आक्रमण करता है। शारीरिक सोच पर आधारित गलत तरीके से बनाया गया विश्वास संदेह की वजह से टूट जाएगा। 
यदि हम अपने विश्वास का आधार अपने विचारों पर रखे तो हम वास्तविक रीति से उस पर और सत्य पर विश्वास नहीं कर सकते। ऐसा विश्वास रेट पर बने घर जैसा है, “और मेह बरसा, और बाढ़ें आई, और आंधियां चलीं, और उस घर से टकराई और वह गिरकर सत्यानाश हो गया” (मत्ती ७:२७)।
इसलिए, विचारों के साथ विश्वास करने वाले व्यक्ति का विश्वास परमेश्वर के वचन पर आधारित विश्वास से बहुत दूर है। परमेश्वर ने कहा, "जिससे तू अपनी बातों में धर्मी ठहरे, और न्याय करते समय तू जय पाए" (रोमियों ३:४)। हमारा उद्धार उसके वचन पर आधारित होना चाहिए। वचन देहधारी हुआ और हमारे बीच वास किया, और परमेश्वर ही वचन है। वचन पृथ्वी पर मनुष्यों की समानता में आया। यीशु ने हमें बचाया और पृथ्वी पर अपने ३३ साल के जीवन के बाद उठा लिया गया और अपने प्रेरितों को वायदे के वचन को लिखने के लिए नेतृत्व किया, जो कि पुराने नियम की पूर्ती है जिसे उसने अपने सेवकों को पहले भी बताया था। परमेश्वर ने जो कहा और जो किया वह बाइबल में लिखा। परमेश्वर वचन में और उसके साथ प्रकट होता है, वचन के साथ बोलता है और वचन से हमें बचाता है। 
हम अपने स्वयं के विचारों से पाप की सम्पूर्ण माफ़ी प्राप्त नहीं कर सकते, जबकि परमेश्वर के वचन में विश्वास न करते हुए, मैंने सोचा की, `मैं कभी-कभी उद्धार प्राप्त किये हुए व्यक्ति की तरह लगता हूँ, लेकिन मैं कभी-कभी प्रभु के उद्धार पर विश्वास नहीं कर सकता।` हम विचारों से उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि हमारे विचार हमेशा बदलते रहते हैं और वे हमेशा सच नहीं होते। 
इसलिए, प्रेरित पौलुस कहता हैं कि खतना वही है जो हृदय का है और हम हृदय से उसकी धार्मिकता पर विश्वास करते हैं। जब हमारा हृदय उसके वचन पर विश्वास करता है, तो हृदय स्पष्ट रूप से इस बात की गवाही देता है कि परमेश्वर ने पुराने नियम में इसकी प्रतिज्ञा की थी और अपनी वाचा को पूरा किया। उसने हमें इस तरह नए नियम में अपने वचन के द्वारा बचाया। हम अपने हृदय से उसके वचनों पर विश्वास करने के द्वारा बचाए जाते हैं और परमेश्वर की संतान बन जाते हैं।
 

हमने पूरे हृदय से पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करने के द्वारा उद्धार प्राप्त किया है

हमने विश्वास के द्वारा उद्धार पाया हैं क्योंकि हृदय परमेश्वर को स्वीकार कर सकता है, लेकिन शारीरिक मन के हमारे विचार उसे स्वीकार नहीं कर सकते हैं। हम अपने बाहरी मनुष्य के कार्यों या विचारों से नहीं, अपने हृदय से विश्वास करके परमेश्वर की संतान बनते हैं। यह स्पष्ट है कि हम अपने हृदय से उसके वचन पर विश्वास करने के द्वारा परमेश्वर की सन्तान बन जाते हैं। क्या आप अपने हृदय से विश्वास करते हैं? क्या आपके हृदय में खतना हुआ है? क्या आप अपने हृदय में विश्वास करते हैं कि यीशु आपका उद्धारकर्ता है? जो परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है, वह खुद गवाही रखता है। क्या आपके पास इस वचन की गवाही है कि यीशु ने आपको सम्पूर्ण रीति से बचाया है, व्यक्तिगत अनुभव के गवाह नहीं? क्या आपके हृदय में परमेश्वर का वचन है? क्या आपके पास वह वचन है जिसने आपको पापों की माफ़ी प्रदान की? सच्चा विश्वास होना ही विश्वास के द्वारा उद्धार प्राप्त करना है।
हम अपने हृदय से परमेश्वर के वचन पर विश्वास करने के द्वारा पापों की माफ़ी प्राप्त करते हैं। हालाँकि, जब हम अपने बाहरी मनुष्य की कमजोरी को देखते है तब अक्सर निराश होते हैं। और फिर हम परमेश्वर पर अपने विश्वास से पीछे हटने के लिए उपयुक्त हैं। जो सत्य को पूरी तरह से नहीं समझता वह भ्रम में है। अधिकांश मसीही अपने कर्मों पर अपने विश्वास का मानदंड स्थापित करते हैं। यह बहुत बड़ी भूल है। हमें अपने विश्वासों को अपने विचारों पर नहीं मापना चाहिए। हमें अपने विश्वास का आधार अपने शरीर पर नहीं रखना चाहिए क्योंकि देह बेकार है। पुराना नियम और नया नियम हमें बताता है कि जब एक व्यक्ति हृदय से परमेश्वर के वचन पर विश्वास करता है तब वह धर्मी बनाता है। हम विचारों या कर्मो के द्वारा पापों से उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते, लेकिन केवल विश्वास के द्वारा ही प्राप्त कर सकते है। हम देह के कामों से उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते। चाहे हम पाप करें या अच्छे कर्म करें, इसका परमेश्वर और उसकी महिमा से कोई लेना-देना नहीं है। 
इसलिए सच्चे विश्वास का अर्थ है हृदय से परमेश्वर के वचन के उद्धार की सच्चाई पर विश्वास करके उद्धार को प्राप्त करना। जब हमारा हृदय गलत होता है तब हमारा विश्वास गलत होता है, और जब हमारा हृदय सही होता है तब हमारा विश्वास सही होता है। सही व्यवहार सही विश्वास से आता है। हृदय कमजोर होने से गलत व्यवहार सामने आ सकता है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर हृदय को देखता है। परमेश्वर हृदय को देखता है और उसकी जांच करता है। परमेश्वर देखता है कि हृदय सही है या नहीं। परमेश्वर देखता है कि हम सच में हृदय से विश्वास करते हैं या नहीं। क्या आप समझ रहे हो? क्या आप जानते हैं कि परमेश्वर हमारे हृदय को देखता है? जब परमेश्वर हमारे हृदय को देखता है तब वह यह देखता है कि क्या हम यीशु मसीह पर अपने हृदय से विश्वास करते हैं। क्या आप अपने हृदय से विश्वास करते हैं? 
जब परमेश्वर हमें देखता है तब वह जाँचता है कि हम हृदय से विश्वास करते हैं या नहीं। वह हमारे हृदय में देखता है। हमें परमेश्वर की उपस्थिति में अपने हृदयों की जांच करनी चाहिए। खतना वही है जो हृदय का है। क्या आप हृदय से विश्वास करते है? परमेश्वर हृदय को देखता है। वह देखता है कि हम वास्तव में अपने हृदय से विश्वास करते हैं या नहीं। वह देखता है कि क्या हम वास्तव में सत्य को जानते हैं और क्या हम उसका अनुसरण करना चाहते हैं या नहीं। वह देखता है कि हमारे हृदय में विश्वास है या नहीं और क्या हम उसका अनुसरण करना चाहते हैं और उसके वचन पर विश्वास करना चाहते हैं।
 

एक ऐसा धार्मिक समुदाय है जो नया जन्म प्राप्त करने के सटीक समय पर ज्यादा महत्त्व देता है

यीशु मसीह ने जो किया उसका सटीक ज्ञान होना और उस पर हृदय से विश्वास करना महत्वपूर्ण है। एक धार्मिक समुदाय है जो हमारी कलीसिया में भाइयों और बहनों को बताता है कि उन्होंने उद्धार प्राप्त नहीं किया है। मुझे उस धार्मिक समुदाय की आत्माओं के लिए दया आती है। मैं चाहता हूँ कि वे मुझे समझें और मैं उन्हें पानी और आत्मा का सुसमाचार सिखाऊँ। क्या आपके पाप मिट गए हैं? आमीन। क्या आप इस पर हृदय से विश्वास करते है? 
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि हमारा विश्वास सही नहीं है। वे कहते हैं कि हमें जैसा लिखा है वैसा ही वचन पर विश्वास नहीं करना चाहिए और केवल वही विश्वास करना चाहिए जो विज्ञान के साथ सिद्ध हो। वे कहते हैं कि यह पूर्ण उद्धार और पूर्ण विश्वास है। वे कहते हैं कि एक नया जन्म प्राप्त करने वाले व्यक्ति को पता होना चाहिए कि उसके नए जन्म का सटीक समय क्या है (घंटे, तारीख, महीना)। जब भाई ह्वांग उनमें से एक को मिलने गए, तो उस व्यक्ति ने भाई ह्वांग से पूछा कि उन्होंने नया जन्म कब प्राप्त किया था, तो भाई ह्वांग ने उत्तर दिया कि वह सही तारीख और घंटे को नहीं जानता है, लेकिन उन्होंने पिछले साल ही पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करने के द्वारा नया जन्म प्राप्त किया है। फिर उसने कहा कि भाई ह्वांग ने उद्धार प्राप्त नहीं किया। 
बेशक, यदि हम नया जन्म प्राप्त किया उस रास्ते पर जाते है तो हम सटीक घंटे और तारीख और महीने और साल को बता सकते है। हम यह भी कह सकते हैं कि यह A.M या P.M था; या सुबह, दोपहर, दोपहर के भोजन या रात के खाने का समय। हालाँकि, उद्धार हृदय से विश्वास करने पर निर्भर करता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपको सही समय याद नहीं है।
 

ख़तना वही है जो हृदय का है

यहोवा ने हमारे सब पापों को यरदन नदी पर अपने ऊपर ले लिया और हमारे स्थान पर पापों का न्याय करने के लिए क्रूस पर चढ़ाया गया। वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल हुआ और हमारे अधर्म के कामों के लिए कुचला गया। उसने हमारे बाहरी और आंतरिक मनुष्य के सभी पापों को दूर कर दिया। हमारी आत्माएं फिर से मरे हुओं में से जी उठीं और अब हम प्रभु का अनुसरण कर सकते हैं जैसे वह चाहते हैं, भले ही कुछ लोग शातिर तरीके से हमें बताए कि हमारा उद्धार नहीं हुआ है।
बाहरी मनुष्य के बारे में बाइबल क्या कहती है? पाप की माफ़ी प्राप्त करने के बाद अधिक से अधिक दुर्बलताएं प्रकट होती हुई नज़र आती है। हमारी सभी दुर्बलताओं को अभी तक प्रकट नहीं किया गया है; और भी कमियां प्रगट होंगी। हालाँकि, यदि हम अपने हृदय में विश्वास करते हैं कि परमेश्वर हमारा परमेश्वर है और यीशु ने हमारे सभी पापों को अपने बपतिस्मा के द्वारा यरदन नदी में ले लिया और क्रूस पर चढ़ाया गया तो हम उद्धार प्राप्त कर सकते है।
हमारी तुलना उन लोगों से नहीं की जा सकती जो नया जन्म पाया उस तारीख को महत्व देते हैं और केवल वही विश्वास करते है जो विज्ञान द्वारा सिद्ध होता है। स्पष्ट रूप से उन्होंने उद्धार प्राप्त नहीं किया है। हम अपने हृदय से धर्मी बनने में विश्वास करते हैं। क्या आप विश्वास करते हैं कि यीशु मसीह हमारा उद्धारकर्ता है? आमीन। विश्वास उस दृष्टिकोण से शुरू होता है और प्रभु उस समय से हमारे हृदय की अगुवाई करते हैं। प्रभु कहते हैं कि हम उसकी धर्मी संतान हैं और हमारे विश्वास सच्चे हैं। वह हमारे हृदय को आशीष देता है और चाहता है कि हम विश्वास के द्वारा अपने हृदय से उसका अनुसरण करें। जब हम अपने हृदय में विश्वास के द्वारा उसके साथ चलते हैं तो परमेश्वर हमारी अगुवाई करता है और हमें आशीष देता है।
"खतना वही है जो हृदय का है।" हम अपने हृदय से विश्वास करने के द्वारा बचाए गए थे। पृथ्वी पर बहुत से लोग कहते हैं कि अपने हृदय से सुसमाचार पर विश्वास करने के द्वारा उनका उद्धार हुआ है। हालाँकि, वे वास्तव में अपने कर्मों को विश्वास में जोड़ते हैं। वे बाहरी मनुष्य के कर्मों को अपने विश्वास की अनिवार्य शर्त मानते हैं। वे कहते हैं कि पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करना उन्हें उद्धार की ओर नहीं ले जा सकता क्योंकि वे हृदय से विश्वास करने को और अपने खुद के धर्मी कार्यों को साथ मिलाते है। 
परिणामस्वरूप, वे इस बात का अधिक ध्यान रखते है कि बाहरी व्यक्ति कितना अच्छा करता है और उन्होंने कितनी बार पश्चाताप की प्रार्थना की। भले ही उन्हें लगता है की उन्होंने अपने पापो से उद्धार प्राप्त किया है लेकिन वे उद्धार से दूर हैं।
 

परमेश्वर हृदय की ओर देखता है

हम अपने हृदय में धर्मी बनने में विश्वास करते हैं। यह शुध्ध रूप से बाहरी देह से अलग है और इसका हमारे कर्मों से कोई लेना-देना नहीं है। उद्धार का हमारे कर्मों से कोई संबंध नहीं है। क्या आप यह सिखकर तरोताजा हो गए हैं कि आपके सभी पाप धुल गए हैं? क्या आप खुशी-खुशी प्रभु की सेवा करना चाहते हैं? क्या आप खुशी से सुसमाचार का प्रचार करते हैं? क्या आप स्वयं को उसके सुंदर मिशन के साथ जोड़ना चाहते हैं? हृदय कृतज्ञ और आनंदित हो जाता है क्योंकि जब हम अपने हृदय से विश्वास करते हैं तो परमेश्वर हमारे विश्वास को स्वीकार करते हैं। इसलिए परमेश्वर के सामने हृदय बहुत महत्वपूर्ण है।