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उपदेश

विषय ९ : रोमियों (रोमियों की पत्री किताब पर टिप्पणी)

[अध्याय 3-2] केवल विश्वास के द्वारा पापों से उद्धार (रोमियों ३:१-३१)

( रोमियों ३:१-३१ )
“अत: यहूदी की क्या बड़ाई या खतने का क्या लाभ? हर प्रकार से बहुत कुछ। पहले तो यह कि परमेश्‍वर के वचन उनको सौंपे गए। यदि कुछ विश्‍वासघाती निकले भी तो क्या हुआ? क्या उनके विश्‍वासघाती होने से परमेश्‍वर की सच्‍चाई व्यर्थ ठहरेगी? कदापि नहीं! वरन् परमेश्‍वर सच्‍चा और हर एक मनुष्य झूठा ठहरे, जैसा लिखा है: 
“जिससे तू अपनी बातों में धर्मी ठहरे
और न्याय करते समय तू जय पाए।”
इसलिये यदि हमारा अधर्म परमेश्‍वर की धार्मिकता ठहरा देता है, तो हम क्या कहें? क्या यह कि परमेश्‍वर जो क्रोध करता है अन्यायी है? (यह तो मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूँ)। कदापि नहीं! नहीं तो परमेश्‍वर कैसे जगत का न्याय करेगा? यदि मेरे झूठ के कारण परमेश्‍वर की सच्‍चाई उसकी महिमा के लिये, अधिक करके प्रगट हुई तो फिर क्यों पापी के समान मैं दण्ड के योग्य ठहराया जाता हूँ? “हम क्यों बुराई न करें कि भलाई निकले?” जैसा हम पर यही दोष लगाया भी जाता है, और कुछ कहते हैं कि इनका यही कहना है। परन्तु ऐसों का दोषी ठहराना ठीक है। तो फिर क्या हुआ? क्या हम उनसे अच्छे हैं? कभी नहीं; क्योंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं। जैसा लिखा है: 
“कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।
कोई समझदार नहीं;
कोई परमेश्‍वर का खोजनेवाला नहीं।
सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए हैं;
कोई भलाई करने वाला नहीं, एक भी नहीं।
उनका गला खुली हुई कब्र है,
उन्होंने अपनी जीभों से छल किया है,
उनके होठों में साँपों का विष है।
उनका मुँह श्राप और कड़वाहट से भरा है।
उनके पाँव लहू बहाने को फुर्तीले हैं,
उनके मार्गों में नाश और क्लेश है,
उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना।
       उनकी आँखों के सामने परमेश्‍वर का भय नहीं।” 
हम जानते हैं कि व्यवस्था जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्था के अधीन हैं; इसलिये कि हर एक मुँह बंद किया जाए और सारा संसार परमेश्‍वर के दण्ड के योग्य ठहरे; क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके सामने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है। परन्तु अब व्यवस्था से अलग परमेश्‍वर की वह धार्मिकता प्रगट हुई है, जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्‍ता देते हैं, अर्थात् परमेश्‍वर की वह धार्मिकता जो यीशु मसीह पर विश्‍वास करने से सब विश्‍वास करनेवालों के लिये है। क्योंकि कुछ भेद नहीं; इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं, परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंतमेंत धर्मी ठहराए जाते हैं। उसे परमेश्‍वर ने उसके लहू के कारण एक ऐसा प्रायश्‍चित ठहराया, जो विश्‍वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किए गए और जिन पर परमेश्‍वर ने अपनी सहनशीलता के कारण ध्यान नहीं दिया। उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे। वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो कि जिससे वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्‍वास करे उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो। तो घमण्ड करना कहाँ रहा? उसकी तो जगह ही नहीं। कौन–सी व्यवस्था के कारण से? क्या कर्मों की व्यवस्था से? नहीं, वरन् विश्‍वास की व्यवस्था के कारण। इसलिये हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि मनुष्य व्यवस्था के कामों से अलग ही, विश्‍वास के द्वारा धर्मी ठहरता है। क्या परमेश्‍वर केवल यहूदियों ही का है? क्या अन्यजातियों का नहीं? हाँ, अन्यजातियों का भी है। क्योंकि एक ही परमेश्‍वर है, जो खतनावालों को विश्‍वास से और खतनारहितों को भी विश्‍वास के द्वारा धर्मी ठहराएगा। तो क्या हम व्यवस्था को विश्‍वास के द्वारा व्यर्थ ठहराते हैं? कदापि नहीं! वरन् व्यवस्था को स्थिर करते हैं।”
 


लोगों का अविश्वास परमेश्वर के उद्धार को प्रभाव रहित नहीं कर सकता


प्रेरित पौलुस कहता है कि व्यवस्था की पूर्ति और परमेश्वर के अनुग्रह का छुटकारा हमें हमारे कर्मो से नहीं, लेकिन विश्वास के द्वारा दिया गया है। हम अपने पापों से उद्धार पाते हैं और परमेश्वर के उद्धार के द्वारा धर्मी बन जाते हैं। “अत: यहूदी की क्या बड़ाई या खतने का क्या लाभ? हर प्रकार से बहुत कुछ। पहले तो यह कि परमेश्‍वर के वचन उनको सौंपे गए। यदि कुछ विश्‍वासघाती निकले भी तो क्या हुआ? क्या उनके विश्‍वासघाती होने से परमेश्‍वर की सच्‍चाई व्यर्थ ठहरेगी? कदापि नहीं!” (रोमियों ३:१-४)।
यहूदी का लाभ यह है कि परमेश्वर का वचन उनके लिए प्रतिबद्ध था। वे अपने पूर्वजों से उसका वचन सुनते हुए जीवित रहे। क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें अपना वचन दिया था और यह उनके द्वारा दिया गया था, वे सोचते थे कि वे अन्यजातियों से बेहतर थे। हालाँकि, बाइबल कहती है कि परमेश्वर ने यहूदियों को छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने यीशु पर विश्वास नहीं किया जिसने उन्हें उनके पापों से छुड़ाया था।
पौलुस कहता है, यदि कुछ विश्‍वासघाती निकले भी तो क्या हुआ? क्या उनके विश्‍वासघाती होने से परमेश्‍वर की सच्‍चाई व्यर्थ ठहरेगी? कदापि नहीं!” लोगों का अविश्वास परमेश्वर के उद्धार को व्यर्थ नहीं कर सकता। "परमेश्वर की सच्चाई" का अर्थ है "परमेश्वर की ईमानदारी।" उसका मतलब है कि परमेश्वर की ईमानदारी और पापों से मुक्ति व्यर्थ नहीं हो सकती, भले ही यहूदी इसे नहीं मानते। परमेश्वर की प्रतिज्ञा का वचन कि वह जो कोई विश्वास करता है उसे बचाता है, रद्द नहीं किया जाता है, भले ही वे उस पर विश्वास न करें। 
यहूदी विश्वास नहीं करेंगे तो अन्यजाती विश्वास करेंगे। परमेश्वर कहते हैं कि जो कोई विश्वास करेगा वह पापों सेउद्धार पाएगा। इसलिए, परमेश्वर ने यहूदियों को छोड़ दिया क्योंकि वे विश्वास नहीं करते थे कि सत्य का वचन परमेश्वर की प्रतिज्ञा के अनुसार पूरा हुआ, भले ही परमेश्वर ने उन्हें अपना वचन दिया हो।
प्रेरित पौलुस का दावा इस प्रकार है: परमेश्वर ने सब मनुष्यों को उद्धार का उपहार दिया। परमेश्वर कहता है कि उसने पुराने नियम में इसकी प्रतिज्ञा की थी और अपने एकलौते पुत्र यीशु मसीह को संसार में भेजकर इसे पूरा किया। कुछ लोग परमेश्वर के सुसमाचार को मानते हैं, लेकिन बाकी के लोग नहीं मानते। इसलिए, जो कोई विश्वास करता है, वह परमेश्वर की संतान होने का आशीष पाता है, जैसा उसने वादा किया था। और परमेश्वर की आशीषें रद्द नहीं होतीं, चाहे कितने ही लोग विश्वास न करें।
 


जो कोई भी सत्य पर विश्वास करता है वह परमेश्वर के महान प्रेम को प्राप्त कर सकता है


जो कोई सत्य के वचन को सुनता है और उस पर विश्वास करता है, वह परमेश्वर का महान प्रेम प्राप्त कर सकता है, लेकिन अविश्वासी दावा करते हैं कि परमेश्वर झूठा है। वास्तव में, परमेश्वर ने अपना वादा पूरा किया, फिर भी अविश्वासियों को परमेश्वर के उद्धार से बाहर रखा गया है क्योंकि वे पापों की माफ़ी के अनुग्रह में विश्वास नहीं करते हैं।
पौलुस कहता है, “क्या उनके विश्‍वासघाती होने से परमेश्‍वर की सच्‍चाई व्यर्थ ठहरेगी? कदापि नहीं!” परमेश्वर ने एकबार वायदा किया और विश्वासयोग्यता से लोगों को अपने उद्धार का उपहार और महिमा दी।
बाइबल किसे परमेश्वर का उपहार कहती है? बाइबल कहती है कि परमेश्वर पिता ने अपने प्रिय पुत्र को भेजा और उन लोगों को अपनी सन्तान बनने का अनुग्रह दिया जो उसके पुत्र के द्वारा पापों की माफ़ी में विश्वास करते हैं। संसार की उत्पत्ति से पहले ही, उसने योजना बनाई थी कि वह सभी मनुष्यों को अपनी संतान बनने की महिमा और अपनी धार्मिकता के द्वारा पाप से मुक्ति प्रदान करेगा। और उसने इसे ईमानदारी से पूरा किया। इसलिए, विश्वासी परमेश्वर के वचन के अनुसार आशीष पाते हैं, परन्तु अविश्वासियों का न्याय उसके अनुसार किया जाता है।
अविश्वासियों के लिए नरक में जाना बहुत उचित है। परमेश्वर ने एक व्यवस्था की स्थापना की ताकि हम उसके वचन में विश्वास के द्वारा बचाए जा सकें। वह यह भी कहता है कि परमेश्वर की विश्वासयोग्यता कभी भी व्यर्थ नहीं होगी, भले ही लोग विश्वास न करें। हम परमेश्वर के उद्धार की विश्वासयोग्यता को स्वीकार करके धन्य हैं। परमेश्वर कहते हैं, “वरन् परमेश्‍वर सच्‍चा और हर एक मनुष्य झूठा ठहरे, जैसा लिखा है: “जिससे तू अपनी बातों में धर्मी ठहरे और न्याय करते समय तू जय पाए” (रोमियों ३:४)।
प्रत्येक मनुष्य झूठा है। परमेश्वर सत्य है। क्यों? क्योंकि परमेश्वर कहता है, “जैसा लिखा है: “जिससे तू अपनी बातों में धर्मी ठहरे और न्याय करते समय तू जय पाए” परमेश्वर कहता है कि वह पहले से प्रतिज्ञा करता है और आशीष पानेवालों को आशीष देता है और शापित को शाप देते है। विश्वासियों को आशीष देना और अविश्वासियों को शाप देना परमेश्वर के लिए न्याय है। परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर सच्चा और हर एक मनुष्य झूठा ठहरे।"
“जिससे तू अपनी बातों में धर्मी ठहरे और न्याय करते समय तू जय पाए” वह कहता है कि वह अपने वचन के अनुसार लोगों को बचाएगा। वचन देहधारी हुआ, हमारे बीच डेरा डाला और हमें बचाया। इसलिए, प्रभु अपने वचनों के द्वारा धर्मी ठहराए जाते हैं।
परमेश्वर के लिखित वचन से प्रभु ने शैतान को पराजित किया। प्रभु अपने, शैतान और सभी आत्मिक प्राणियों के सामने न्यायी और ईमानदार हैं क्योंकि उन्होंने जो वादा किया था उसे पूरा किया। हालांकि, मनुष्य ईमानदार नहीं हैं। नुकसान होने पर उनका व्यवहार तुरंत बदल जाता है। इसके विपरीत, परमेश्वर ने अपने वादों को कभी नहीं तोड़ा है। इसलिए प्रेरित पौलुस कहता है कि हमारा विश्वास परमेश्वर के वचन पर आधारित होना चाहिए।
 

हमारी अधार्मिकता परमेश्वर की धार्मिकता का प्रदर्शन करती है

रोमियों ३:५ कहता है, “इसलिये यदि हमारा अधर्म परमेश्‍वर की धार्मिकता ठहरा देता है, तो हम क्या कहें? क्या यह कि परमेश्‍वर जो क्रोध करता है अन्यायी है? (यह तो मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूँ)। प्रत्येक मनुष्य अधर्मी है, लेकिन यदि उनका अधर्म परमेश्वर की धार्मिकता ठहरा देता है, तो हम क्या कहे? यदि हमारा पाप परमेश्वर की धार्मिकता को ठहरा देता है, तो हम क्या कहे?
हमारे पापों और अधर्म के कारण परमेश्वर की धार्मिकता और भी अधिक प्रगट होती है। परमेश्वर वास्तव में ईमानदार हैं। वह उद्धार का प्रभु है, उद्धारकर्ता और सच्चा परमेश्वर है जिसने हमें अपने वचन से बचाने का वादा किया था और जो उसने वादा किया था उसे पूरा किया। यदि हमारी कमजोरियों के कारण परमेश्वर की धार्मिकता प्रगट हो जाए तो हम क्या कहें? हमारी दुर्बलताएं परमेश्वर की धार्मिकता को और अधिक प्रकट करती हैं क्योंकि हम मरते दम तक पाप करते हैं। 
हम कैसे जानते हैं कि परमेश्वर प्रेम का प्रभु है? हम इसे अपनी कमजोरियों से जान सकते हैं। परमेश्वर का प्रेम हमारे द्वारा प्रकट होता है क्योंकि हम अपने जीवन के अंतिम दिन तक पाप करते हैं। प्रभु ने कहा हैं कि उन्होंने जगत के पापों को हमेशा के लिए मिटा दिया। यदि परमेश्वर केवल अच्छे लोगों को प्रेम करे जिन्होंने पाप नहीं किया है तो उनका का प्रेम अपूर्ण होगा। यह परमेश्वर के सच्चे प्रेम के कारण है कि परमेश्वर हम पापियों को स्वीकार करता है और उनके साथ व्यवहार करता है जिन्हें कभी प्रेम नहीं किया जा सकता।
हम मनुष्य अधर्मी हैं और परमेश्वर को धोखा देते हैं। हम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं और परमेश्वर के सामने हमारा कोई पक्ष नहीं है। पापी वे हैं जो केवल बुराई करते हैं, परन्तु यीशु, जिसने हमें हमारे सभी पापों और अधर्मों से बचाया है, उसने हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम को पूरा किया है।
परमेश्वर कहते हैं कि जब मनुष्यों ने पाप किया और शैतान के धोखे के तहत नरक में जानेवाले थे तब यह परमेश्वर की धार्मिकता और प्रेम के माध्यम से था कि उन्होंने हमें शैतान के अंधेरे और शाप से बचाने के लिए अपना एकलौता पुत्र भेजा। यह परमेश्वर का प्रेम और अनुग्रह है। 
प्रेरित पौलुस ने कहा, “इसलिये यदि हमारा अधर्म परमेश्‍वर की धार्मिकता ठहरा देता है, तो हम क्या कहें?” विश्वासियों और अविश्वासियों के विचारों को इस भाग में विभाजित किया गया है। स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने और परमेश्वर की आशीष पाने के लिए अविश्वासी अच्छा बनने का प्रयास करते हैं। परन्तु पौलुस ने इसके विपरीत टिप्पणी करते हुए कहा, “इसलिये यदि हमारा अधर्म परमेश्‍वर की धार्मिकता ठहरा देता है, तो हम क्या कहें?” पौलुस कहता है कि हम मनुष्य परमेश्वर की धार्मिकता नहीं कर सकते हैं, लेकिन केवल उसके सामने पाप करते हैं और यह कि हमारी बुराई परमेश्वर के सच्चे प्रेम को प्रगट करती है। हाँ यह सच है। सभी मनुष्य दुष्ट हैं और धर्मी नहीं हो सकते, परन्तु प्रभु ने उन्हें उनके सभी पापों से बचाया।
 

हम ने परमेश्वर की धार्मिकता के द्वारा उद्धार प्राप्त किया है

प्रेरित पौलुस कहता है कि मनुष्य धर्मी नहीं हो सकता और पापों के जाल में फँस जाता है। प्रभु ने ऐसे पापियों को उनके पापों से बचाया और उनसे प्रेम किया। हमें उसके पूर्ण प्रेम की आवश्यकता है क्योंकि हम प्रतिदिन पाप करने से नहीं बच सकते। हमने केवल यीशु के संपूर्ण प्रेम, उनके मुक्त अनुग्रह, और उद्धार के उपहार से यीशु मसीह के द्वारा उद्धार पाया है। 
प्रेरित पौलुस कहता है कि उसका बचाया जाना परमेश्वर की धार्मिकता के कारण है। परमेश्वर ने सभी पापियों को उनके पापों से बचाने के लिए जो किया वह उसकी धार्मिकता को दर्शाता है। पौलुस कहता है कि सुसमाचार में विश्वास करने से उसने उद्धार पाया। परमेश्वर की धार्मिकता पानी और आत्मा के सुसमाचार में प्रकट होती है। हमारा उद्धार उस धर्मी कार्य पर निर्भर करता है जो परमेश्वर ने हमारे लिए किया था। इसलिए, विश्वास के द्वारा पापियों को उनके सभी पापों से बचाया जाता है। जिन्होंने नया जन्म नहीं पाया है, वे सोचते हैं कि उन्हें अच्छा बनना चाहिए ताकि वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें।
पौलुस का मतलब यह नहीं है कि हम जानबूझकर बुरे काम कर सकते हैं, लेकिन लोग नरक में जाते हैं क्योंकि वे परमेश्वर की धार्मिकता प्राप्त किए बिना अच्छे काम करने की कोशिश करते हैं। उन्हें परिवर्तित होने के लिए पश्चाताप करना चाहिए और उस उद्धार में विश्वास करना चाहिए जो परमेश्वर ने उन्हें नरक में जाने से बचने के लिए दिया था। 
परमेश्वर के सामने कौन अच्छे कर्म कर सकता है? ऐसा कोई नहीं है। फिर एक पापी को उसके सारे पापों से कैसे छुड़ाया जा सकता है? उसे अपने खुद के विचार को बदलने होंगे। प्रेरित पौलुस कहता है कि वह विश्वास के द्वारा बचाया गया था। लेकिन लोग क्या सोचते हैं? लोग सोचते हैं कि अच्छे काम करने से उन्हें बचाया जा सकता है। इसलिए उनका छूटकारा नहीं हो पा रहा है। जो लोग यीशु पर विश्वास करने के द्वारा अपने पापों से बच जाते हैं और पापों की सम्पूर्ण माफ़ी प्राप्त करते हैं, वे केवल परमेश्वर की धार्मिकता पर घमण्ड करते हैं और उसे ऊंचा होने देते हैं।
हालाँकि, जिन्होंने नया जन्म नहीं प्राप्त किया हैं, वे यीशु पर विश्वास करने के बावजूद भी, सोचते हैं कि वे अच्छे कर्म करके स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं, और अगर वे अच्छे कर्म नहीं करेंगे तो वे नरक में जाएंगे। उनका विश्वास गलत है। प्रेरित पौलुस का विश्वास नए जन्म के विश्वास के समान ही है। जो लोग नया जन्म प्राप्त नहीं करते है, वे भले ही सोचते हैं कि वे यीशु पर विश्वास करते हैं, फिर भी उनका विश्वास गलत हैं क्योंकि वे अपने कर्मों को अपने विश्वासों में जोड़ने का प्रयास करते हैं। हम अपने धार्मिक कार्यों को अपने विश्वासों में जोड़ने से नहीं, लेकिन परमेश्वर की धार्मिकता पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करते है: यीशु का बपतिस्मा और क्रूस पर उनकी मृत्यु।
 

धर्मी जन जानबूझ कर पाप नहीं कर सकते

“इसलिए यदि हमारा अधर्म परमेश्वर की धार्मिकता ठहरा देता है, तो हम क्या कहे?” बाइबल कहती है की हमारा अधर्म केवल परमेश्वर की धार्मिकता और उसका प्रेम प्रगट करता है। बाइबल यह भी कहती है की, “यदि मेरे झूठ के कारण परमेश्‍वर की सच्‍चाई उसकी महिमा के लिये, अधिक करके प्रगट हुई तो फिर क्यों पापी के समान मैं दण्ड के योग्य ठहराया जाता हूँ? “हम क्यों बुराई न करें कि भलाई निकले?” जैसा हम पर यही दोष लगाया भी जाता है, और कुछ कहते हैं कि इनका यही कहना है। परन्तु ऐसों का दोषी ठहराना ठीक है” (रोमियों ३:७-८)। अविश्वासियों के नाम न्याय की पुस्तक में लिखे है और उन्हें आग की खाई में फेंक दिया जाएगा। इसलिए, उन्हें परिवर्तन होने के लिए पश्चाताप करना चाहिए और पानी और लहू से परिपूर्ण सुसमाचार पर विश्वास करना चाहिए।
प्रेरित पौलुस कहता है, "क्या यह की परमेश्वर जो क्रोध करता है अन्यायी है? (यह तो मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूँ)। कदापि नहीं।” लोग इसका खंडन करते हुए कहते हैं, "क्या परमेश्वर के लिए यह अन्याय नहीं है कि वह अविश्वासियों पर क्रोध करे और उन्हें नरक में भेज दे, क्योंकि वे यह विश्वास नहीं करते कि यीशु ने उन्हें पहले ही उनके पापों से बचा लिया है?" परन्तु पौलुस कहता है, "क्या यह की परमेश्वर जो क्रोध करता है अन्यायी है?” अविश्वासियों का नरक में जाना उचित है क्योंकि वे सत्य पर विश्वास नहीं करते। परमेश्वर अन्यायी नहीं है।
रोमियों ३:७ कहता है, "यदि मेरे झूठ के कारण परमेश्वर की सच्चाई उसकी महिमा के लिए, अधिक करके प्रगट हुई तो फिर क्यों पापी के समान मैं दण्ड के योग्य ठहराया जाता हूँ?” तब लोग यह कह सकते हैं, "क्या? क्या आप जानबूझकर पाप करेंगे क्योंकि आपके पास पापों की माफ़ी है? आप ओर अधिक झूठ बोलोगे क्योंकि आप परमेश्वर की धार्मिकता से बचाए गए हो। क्या आप जानबूझ कर अधिक पाप करेंगे?” लेकिन बाइबल कहती है कि वे दुष्ट हृदय से ऐसे काम करते हैं, न तो परमेश्वर के उद्धार को जानते हैं और न ही उसके प्रेम में विश्वास करते हैं। 
इसलिए, पौलुस कहता है कि हमारे पाप और झूठ के कारण, परमेश्वर की सच्चाई उसकी महिमा में ओर अधिक प्रगट हुई है। परन्तु लोगों ने अपने ही विचारों से पौलुस के विरुद्ध यह कहकर खण्डन कियाअधिक पाप कर सकते हो।” यह सच नहीं है कि लोग केवल पाप करने की इच्छा से ही पाप करते हैं। वे पाप करने से नहीं बच सकते क्योंकि वे पापियों के रूप में पैदा हुए थे। सेब के पेड़ के लिए सेब पैदा करना स्वाभाविक है। बाइबल कहती है कि पापी पैदा होने वाले मनुष्य के लिए भी पाप करना जारी रखना स्वाभाविक है। प्रभु ने ऐसे पापियों को अपनी धार्मिकता से बचाया, और उन्हें केवल प्रभु के उद्धार को स्वीकार करके ही बचाया जा सकता है।
“हम क्यों बुराई न करें कि भलाई निकले?” जैसा हम पर यही दोष लगाया भी जाता है, और कुछ कहते हैं कि इनका यही कहना है। परन्तु ऐसों का दोषी ठहराना ठीक है” (रोमियों ३:८)। जो लोग यीशु पर विश्वास करते हुए झूठे शिक्षकों के धोखे में हैं, वे इस तरह से सोचते हैं। रोमियों को पत्री लगभग २,००० वर्ष पूर्व प्रेरित पौलुस द्वारा लिखी गई थी। उस समय के बहुत से लोग ऐसा सोचते थे, जैसा कि आज के अविश्वासी लोग करते हैं। झूठे विश्वासी ठीक वैसे ही सोचते हैं जैसे पौलुस के समय के अविश्वासियों ने किया था, `यदि तुम्हारे पास पापों की माफ़ी हो और तुम जानते हो की तुम्हारे भविष्य के पाप भी माफ़ किए गए है तो क्या तुम जानबूझ कर पाप करोगे?` 
अविश्वासी देह के झूठे विचारों के अनुसार कार्य करते हैं। वे देह के बारे में अपने झूठे विचारों के कारण परमेश्वर के उद्धार के सत्य में प्रवेश नहीं कर सकते। बेशक, पापों की माफ़ी प्राप्त करने के बाद भी धर्मी अभी भी पाप करते हैं, लेकिन एक सीमा है। बाइबल कहती है कि पापी पाप करना जारी रखते हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि वे पाप कर रहे हैं और पानी और आत्मा से नया जन्म लेने से पहले यह नहीं जानते कि यह पाप है। हालाँकि, बाइबल कहती है कि धर्मी लोग लापरवाही से पाप नहीं कर सकते क्योंकि वे परमेश्वर के अधीन हैं।
कुछ लोगों ने प्रेरित पौलुस से कहा, “क्या तुम बुरे काम नहीं करते, कि भलाई आए, क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें तुम्हारे सब पापों से बचाया है? अच्छा होगा कि तुम ओर भी बुरे काम करो कि परमेश्वर की धार्मिकता ओर अधिक प्रगट हो।” पौलुस कहता हैं कि उनकी निंदा न्यायपूर्ण है। उसका मतलब है कि उनके लिए न्याय किया जाना और नरक में जाना सही है। क्यों? क्योंकि वे विश्वास पर नहीं, लेकिन अपने कर्मों पर निर्भर हैं।
 

परमेश्वर की धार्मिकता कभी भी अमान्य नहीं हो सकती

प्रेरित पौलुस कहता है, “यदि कुछ विश्वासघाती निकले भी तो क्या हुआ? क्या उनके विश्वासघाती होने से परमेश्वर की सच्चाई व्यर्थ ठहरेगी?” क्या उनका अविश्वास केवल इसलिए परमेश्वर के उद्धार को व्यर्थ करदेगा क्योंकि वे परमेश्वर के उद्धार पर विश्वास नहीं करते? यदि लोग विश्वास करते हैं तो वे बच जाते हैं, लेकिन यदि वे विश्वास नहीं करते हैं तो वे पापों की माफ़ी के अनुग्रह को खो देते हैं। परमेश्वर की धार्मिकता स्थिर रहती है। क्या आप समझ रहे है? जो लोग नरक में जाते हैं वे स्वेच्छा से नरक में जाते है क्योंकि उन्होंने विश्वास न करना चुना। परमेश्वर के कार्य और पाप से उद्धार की कृपा कभी भी व्यर्थ नहीं ठहरती। वे कायम रहते है।
व्यवस्था के कर्मों के आधार पर, परमेश्वर के उद्धार का मानवीय प्रयासों से कोई संबंध नहीं है। यह केवल विश्वासियों के संबंध में है। विश्वासियों को परमेश्वर की सच्चाई के अनुसार बचाया जाता है, लेकिन अविश्वासी नरक में जाएंगे क्योंकि वे परमेश्वर के सत्य को अस्वीकार करने से उद्धार नहीं पाते है। परमेश्वर ने "ठोकर का पत्थर और ठेस की चट्टान" भेजी (यशायाह ८:१४)। जो कोई भी यीशु में विश्वास करता है, वह धर्मी बना है और उसके पास अनन्त जीवन है, चाहे वह कितना भी दुष्ट क्यों न हो। जो कोई यीशु पर विश्वास नहीं करता है, वह पाप की मजदूरी के कारण नरक में जाएगा, चाहे वह कितना भी अच्छा क्यों न हो। यीशु उन लोगों के लिए ठोकर का पत्थर और ठेस की चट्टान है जो पापों की माफ़ी पर विश्वास नहीं करते हैं।
 

ऐसा कोई धर्मी नहीं है जिसने पाप किया हो

प्रेरित पौलुस उन लोगों से उद्धार के लिए विश्वास के बारे में बात करता है जो अच्छा होने का दिखावा करते हैं, इसलिए लोग रोमियों को परमेश्वर का वचन मानते हैं जो विश्वास के बारे में बताता है। कुछ लोग उन लोगों के बारे में आश्चर्य करते हैं जो खुद को धर्मी के रूप में पहचानते हैं। वास्तव में, जिनके पापों को यीशु ने माफ़ किया है वे धर्मी हैं क्योंकि उनके सभी पाप माफ़ किए गए हैं। "यीशु विश्वासयोग्य है" का अर्थ है "उसने विश्वासयोग्यता से पापियों को उनके पापों से बचाया।" कुछ लोग कहते हैं कि वे `छूटकारा पाए हुए` पापी हैं, लेकिन परमेश्वर के सामने ऐसे लोग नहीं हो सकते। पाप से छुटकारा पाने के बाद भी कोई व्यक्ति पापी कैसे हो सकता है? हम बच जाते हैं यदि यीशु हमें बचाता है और हम पापी हैं यदि यीशु ने हमें नहीं बचाया। उद्धार में कोई "मध्य" नहीं है।
क्या कोई धर्मी व्यक्ति है जिसके पास पाप है? ऐसा कोई धर्मी व्यक्ति नहीं जिसके पास पाप हो। यदि व्यक्ति के अन्दर पाप है तो वह पापी है, लेकिन यदि वह यीशु में विश्वास करता है तो वह धर्मी और पापरहित है। हम दैनिक और भविष्य के पापों की समस्या का समाधान कैसे कर सकते हैं? लोग सोचते हैं कि वे अपरिहार्य पापी हैं क्योंकि वे प्रतिदिन पाप करते हैं और मरते दम तक पाप करते रहेंगे। हालाँकि, हमें उस सुसमाचार में विश्वास करने के द्वारा धर्मी बनाया गया है जो कहता है कि यीशु ने यरदन नदी में भविष्य के पापों सहित जगत के पापों को उठा लिया और उसे क्रूस पर चढ़ा दिया गया। 
"एक धर्मी व्यक्ति जिसके पास पाप है" का कोई मतलब नहीं है। क्या यह सोचना उचित है कि एक व्यक्ति जिसने अपना कर्ज चूका दिया है वह अभी भी कर्ज में है? मान लीजिए कि एक बार एक आदमी था जिसके पास बहुत पैसा था, लेकिन उसका बेटा जैसे बड़ा होता गया वैसे उसे एक बुरी लत लग गई की वह नगर की प्रत्येक दूकान से उधार में टॉफी खरीदता था। हालाँकि, उनके अमीर पिता ने पहले से ही प्रत्येक दूकान को उतने पैसे चुकाए थे जो उसके बेटे के जीवन भर के कर्ज को चूका सके। इसलिए भले ही वह मरते दम तक बिना पैसे चुकाए टॉफी खाए फिर भी वह कभी भी कर्जदार नहीं हो सकता था। 
यरदन नदी में हमारे पापों को एक ही बार हमेशा के लिए अपने ऊपर लेने की धार्मिकता के साथ प्रभु ने हमें बचाया। उन्होंने हम सभी को पूरी तरह से बचाया। इसलिए, हम फिर कभी पापी नहीं बन सकते, चाहे हम कितने ही कमजोर क्यों न हों। परमेश्वर कहते हैं कि यदि हम उसके किए हुए कामों का इनकार नहीं करते है तो हम बचाए जाते है। 
 

लोग दैहिक मन के साथ न तो सुसमाचार पर विश्वास कर सकते है और ना ही नया जन्म प्राप्त कर सकते है

मसीही जो खुद को `छूटकारा पाए हुए` पापियों के रूप में पहचानते हैं, वे दैहिक मन से सोचते हैं। आत्मिक रूप से मन लगाने का अर्थ है परमेश्वर के वचन में विश्वास करना। दैहिक मन एक मानवीय मन है। यह मानवीय बुद्धि है। देह पाप कराती है, लेकिन हम यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर विश्वास करके धर्मी बन सकते हैं। बाइबल कहती है कि पाप न करने का प्रयास करके हम कभी भी धर्मी और पवित्र नहीं बन सकते। 
क्या कोई व्यक्ति जिसने यीशु पर विश्वास करने के बाद कभी पाप नहीं किया वो पवित्र व्यक्ति बनकर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है? या यह केवल एक बार हमेशा के लिए उद्धार के द्वारा ही सम्भव है? क्या पापियों को वास्तव में पापों की माफ़ी की कृपा से धर्मी बनाया गया है? आपके लिए अपने दैहिक मन के साथ धर्मी होना असंभव है। देह कभी धर्मी नहीं हो सकता। जब भी देह को भूख लगाती है तब वह कुछ न कुछ खाना चाहती है। 
देह का पवित्र होना असंभव है क्योंकि देह में वासनाएं और इच्छाएं हैं। उसके कारण, हम यीशु के पानी और लहू में विश्वास करने के द्वारा ही धर्मी बने हैं। क्या हम अब और पाप न करके और खुद को बर्फ की नाई शुध्ध करके स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं? जिस मनुष्य में देह की वासनाएं हैं उसके लिए पाप से बचकर पवित्र हो जाना घमंड की बात है। यह असंभव है।
लोग न तो सुसमाचार में विश्वास कर सकते हैं और न ही नया जन्म ले सकते हैं क्योंकि वे विश्वास के बारे में दैहिक मन से सोचते हैं। यीशु ने कहा, "क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है, और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है" (यूहन्ना ३:६)।
दैहिक मन से धर्मी बनना असंभव है। आप ऐसा भी सोच सकते हैं कि यह असंभव है क्योंकि आप कल पाप करेंगे, भले ही फिर आप कितनी अच्छी तरह से पश्चाताप करते हैं और आज तक यीशु में विश्वास करते हैं। आप सोच सकते हैं, `मैं कैसे कह सकता हूँ कि मैं पापरहित हूँ, जबकि मैं अभी भी पाप करता हूँ?` यदि आप देह की तरह दैहिक सोचते है तो क्या आपके लिए धर्मी बनना संभव है? शरीर से पवित्र होना असंभव है।
 

हालाँकि, परमेश्वर हमें धर्मी बना सकता है

हालाँकि, परमेश्वर हमें पूरी तरह से बचा सकता है, भले ही मनुष्य न कर सके। परमेश्वर हमारे विवेक को शुद्ध कर सकता है और हमारे द्वारा अंगीकार करवा सकता है की हम धर्मी है और वह हमारा पिता और उद्धारकर्ता है। आपको यह जानना होगा कि विश्वास सच्चे वचन पर अपने हृदय से विश्वास करने से शुरू होता है। यह सत्य के वचन से शुरू होता है। सच्चे वचन में अपने हृदय से विश्वास करने से हम धर्मी बन जाते है। हमें देह के कर्मों से कभी भी धर्मी नहीं बनाया जा सकता है। 
हालाँकि, जिनका नया जन्म नहीं हुआ है, वे अपने विचारों से खुद को स्वतंत्र नहीं कर सकते क्योंकि वे अपने विचारों में बंद हैं। वे कभी नहीं कह सकते कि वे धर्मी हैं क्योंकि वे दैहिक मन से सोचते हैं। इसके विपरीत, जिस विश्वास के द्वारा हम कह सकते हैं कि हम धर्मी हैं, वह परमेश्वर के वचन की सच्चाई को जानने से शुरू होता है। यदि आप वास्तव में नया जन्म प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप निश्चित रूप से नया जन्म पाए हुए व्यक्ति के माध्यम से सच्चे वचन को सुनकर ही नया जन्म ले सकते हैं क्योंकि नया जन्म पाए हुए संत में आत्मा सत्य के साथ काम करना पसंद करती है, “क्योंकि आत्मा सब बातें, वरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जाँचता है" (१ कुरिन्थियों २:१०)। लोग धर्मी व्यक्ति के द्वारा परमेश्वर के वचन सुनने से नया जन्म प्राप्त कर सकते है क्योंकि आत्मा धर्मी के अन्दर वास करता है जिसने नया जन्म प्राप्त किया है। मैं चाहता हूं कि आप इसे ध्यान में रखें। यदि आप नया जन्म प्राप्त करने की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको धर्मी लोगों से मिलना होगा जिन्होंने नया जन्म प्राप्त किया है। 
इब्राहीम ने इश्माएल और इसहाक को जन्म दिया। इश्माएल का जन्म एक दासी से हुआ था। इसहाक के जन्म के समय इश्माएल पहले से ही 14 वर्ष का था। इश्माएल ने इसहाक को सताया, जो एक स्वतंत्र स्त्री द्वारा पैदा हुआ था। वास्तव में उत्तराधिकार का अधिकार किसके पास था? इसहाक के पास उत्तराधिकार का अधिकार था, जो स्वतंत्र महिला सारा से पैदा हुआ था।
इसहाक के पास उत्तराधिकार का अधिकार था और उसे स्वीकृत किया गया था फिर भले ही इश्माएल इसहाक की तुलना में उम्र में बड़ा और शरीर में मजबूत था। क्यों? इसहाक का जन्म परमेश्वर के वचन के अनुसार हुआ था। मानवीय विचार से स्थापित विश्वास रेट के महल के समान है। लोगों का नया जन्म तभी हो सकता है जब वे परमेश्वर के वचन की सच्चाई को जानें और उस पर विश्वास करें।
"तो फिर क्या हुआ? क्या हम उनसे अच्छे हैं? कभी नहीं; क्‍योंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं। जैसा लिखा है: `कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं`` (रोमियों ३:९-१०)। इन भागो का क्या अर्थ है? क्या यह भाग व्यक्ति के नया जन्म लेने से पहले या नया जन्म लेने के बाद की स्थिति का संकेत करते हैं? नया जन्म लेने से पहले हम सब पापी थे। "कोई धर्मी नहीं" यह यीशु के जगत के पापों को मिटाने से पहले की मनुष्यों की स्थिति थी। यीशु पर विश्वास किए बिना कोई भी कभी भी पवित्र नहीं हो सकता।
शब्द "क्रमिक पवित्रीकरण" अन्यजाति धर्मों के मूर्तिपूजकों से आया है। बाइबल कहती है, "कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।" स्वयं को प्रशिक्षण देकर कोई व्यक्ति कैसे पवित्र हो सकता है? मनुष्य अपने आप से धर्मी नहीं बन सकता। ऐसा कोई नहीं है जो अपने आप धर्मी बनेगा या जो अपने आप धर्मी बना है। ऐसा कोई नहीं है जो अपने प्रयासों से पापरहित है। यह केवल परमेश्वर के वचन में विश्वास से ही संभव है। बाइबल कहती है, “कोई समझदार नहीं; कोई परमेश्वर का खोजनेवाला नहीं" (रोमियों ३:११)।
 

सब भटक गए है

“सब भटक गए हैं; सब के सब निकम्मे बन गए है" (रोमियों ३:१२)। क्या परमेश्वर के सामने मनुष्य उपयोगी है? परमेश्वर के सामने मनुष्य बेकार है। जिन्होंने अभी तक नया जन्म नहीं लिया है वे सब परमेश्वर के सामने बेकार हैं। क्या वे परमेश्वर के खिलाफ लड़ते और कोसते हुए स्वर्ग पर उंगलियां नहीं उठाते हैं, भले ही वे सब परमेश्वर के द्वारा बनाए गए है फिर भी बारिश न भेजने पर वे परमेश्वर से नाराज नहीं होते?
परमेश्वर कहता है, “सब भटक गए हैं; सब के सब निकम्मे बन गए है,”। जिस व्यक्ति के हृदय में पाप है, वह परमेश्वर की महिमा कैसे कर सकता है? जो पापी अपनी पाप की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता वह प्रभु की स्तुति कैसे कर सकता हैं? एक पापी कैसे प्रभु की स्तुति कर सकता है? पापी परमेश्वर की महिमा नहीं कर सकते। 
इन दिनों स्तुति की सेवकाई प्रचलित है। प्रकाशितवाक्य में पवित्रशास्त्र का हवाला देते हुए, पापी सुसमाचार गीतों के बोल लिखते है। “जो सिंहासन पर बैठा है उसका और मेम्ने का धन्यवाद और आदर और महिमा और राज्य युगानुयुग रहे!” (प्रकाशितवाक्य ५:१३)। प्रभु की स्तुति अवश्य ही की जानी चाहिए, परन्तु केवल धर्मी ही परमेश्वर की स्तुति कर सकते हैं। क्या आपको लगता है कि परमेश्वर पापियों की प्रशंसा को खुशी से स्वीकार करता है? पापियों की स्तुति कैन की भेंट के समान है। उनकी स्तुति व्यर्थ है और वे खाली आसमान की ओर गाते है, भले ही वे सोचते हैं कि वे परमेश्वर की स्तुति करते हैं। क्यों? क्योंकि परमेश्वर उन पर प्रसन्न नहीं होता। परमेश्वर पापियों की प्रार्थना कभी नहीं सुनता (यशायाह ५९:१-२)।
बाइबल कहती है कि वे सब भटक गए है, सब के सब निकम्मे बन गए है। वचन "सब भटक गए हैं" का अर्थ है कि उन्होंने अपने स्वयं के विचारों पर विश्वास किया और परमेश्वर के वचन को अस्वीकार कर दिया। सच्चा न्याय परमेश्वर के वचन के द्वारा किया जाता है। केवल परमेश्वर ही न्याय करते हैं। मनुष्य न्याय नहीं कर सकते। वचन "सब भटक गए है" का अर्थ है कि वे अपने स्वयं के विचारों में बदल गए हैं। वे हमेशा ऐसी बातें कहते हैं की, "मैं ऐसा सोचता हूँ और ऐसा ही विश्वास करता हूँ।" जो लोग अपने विचारों को नहीं छोड़ते हैं, वे अपने विचारों को बदल देते हैं, इसलिए वे परमेश्वर के वचन की ओर नहीं लौटते।
जिनका नया जन्म नहीं हुआ है, वे सोचते हैं कि वे अपने स्वयं के न्यायाधीश हैं। उनके लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि परमेश्वर के वचन में क्या लिखा है। वे अपने स्वयं के विचारों से चिपके रहते हैं और अपने हिसाब से सही या गलत का न्याय करते है और कहते है की, "मैं ऐसा सोचता हूं और इस तरह से विश्वास करता हूं। यह वैसा नहीं है जैसा मैं सोच रहा हूं।" वे सत्य को कैसे ढूंढ सकते हैं? परमेश्वर कहते हैं कि सब मनुष्य अपने विचारों से भटक गए है। हमें अपने विचारों की ओर नहीं भटकना चाहिए। इसके बजाय हमें प्रभु के पास लौटना चाहिए। हमें इसी तरह उद्धार पटापट करना है। हमें सच्चे वचन के सामने न्याय करना होगा। तो फिर धार्मिकता क्या है?
 

हमें परमेश्वर के वचन के द्वारा नया जन्म प्राप्त करना ही चाहिए’

धार्मिकता परमेश्वर का वचन है, जो सत्य है। परमेश्वर का वचन कैनन है, जो `मापने वाली छड़ी` को संदर्भित करता है। हमें पता होना चाहिए कि परमेश्वर का वचन एक मापदंड या मानदंड है। "आदि में वचन था" (यूहन्ना १:१)। परमेश्वर पिता और पवित्र आत्मा के साथ कौन था? वह परमेश्वर है, वचन। वचन परमेश्वर है। यीशु मसीह, हमारा उद्धारकर्ता और राजाओं का राजा, वचन है, हमारा परमेश्वर।
लिखा है कि आदि में वचन परमेश्वर के साथ था। परमेश्वर के साथ कौन था? वचन। तो वचन यीशु है, हमारा उद्धारकर्ता और परमेश्वर। उद्धारकर्ता परमेश्वर है। उसकी प्रकृति का एक सटीक प्रतिनिधित्व वचन है। इसलिए परमेश्वर का वचन हमारे अपने विचारों से भिन्न है क्योंकि वचन ही परमेश्वर है। मनुष्य के लिए अपने स्वयं के दैहिक विचारों से परमेश्वर के वचन को समझने की कोशिश करना बहुत ही मूर्खता है। 
इसलिए, परमेश्वर उस व्यक्ति का उपयोग कर सकता है जो उसके वचन और विश्वास में दृढ़ रहता है। जो व्यक्ति परमेश्वर के वचन में दृढ़ रहता है, वह परमेश्वर के सामने विश्वासयोग्य और उपयोगी होता है, और ऐसे व्यक्ति पर परमेश्वर कृपा करता है।
क्या व्यक्ति अच्छा कर सकता है? वचन, जो परमेश्वर है, कहता है कि कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं। हालाँकि, कुछ लोग सोचते हैं की, `ऐसा लगता है कि कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो अच्छा करता है।` वास्तव में लोग परमेश्वर के सामने पाखंडी की भूमिका निभाते हैं। हमें पता होना चाहिए कि नया जन्म लेने से पहले हमारे पास धार्मिकता का कोई पक्ष नहीं है।
सबी मनुष्य परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करते हैं। वे पवित्र, अच्छे और दयालु होने का नाटक करते हुए एक दूसरे को और यहां तक कि परमेश्वर को भी धोखा दे रहे हैं। उनके लिए अच्छा होने का दिखावा करना परमेश्वर को चुनौती देना है। केवल परमेश्वर ही अच्छा है। नया जन्म पाए बिना और परमेश्वर के प्रेम और धार्मिकता पर विश्वास किए बिना अच्छा होने का दिखावा करना परमेश्वर के विरुद्ध होना है और उसके सत्य के विरुद्ध विद्रोह करना है। 
क्या आपको लगता है कि परमेश्वर केवल गंभीर पापियों का न्याय करता है? जिन्होंने नया जन्म नहीं पाया है, भले ही वे मसीही हो फिर भी वे परमेश्वर के क्रोध से बच नहीं सकते। इसलिए, अपने पाखंडी जीवन का त्याग करें और परमेश्वर का वचन सुनें। नया जन्म प्राप्त करे। तब आप परमेश्वर के न्याय से बच सकते हो।
क्या आपने कभी किसी ऐसे दुष्ट व्यक्ति को देखा है जो उन लोगों के बीच अच्छा होने के जुनून से भरा नहीं है जिन्होंने नया जन्म प्राप्त नहीं किया है? लोग अच्छा बनने के जुनून से भरे हुए है। यह किसने सिखाया? शैतान ने। मनुष्य मूल रूप से कभी अच्छा नहीं बन सकता। जब मनुष्य के सारे पाप परमेश्वर के सामने मिटा दिए जाते है तब वह अच्छा जीवन जी सकता है। तब क्या परमेश्वर हमें जानबूझकर बुरे काम करने के लिए कहता है? नहीं, परमेश्वर हमें पापों की माफ़ी प्राप्त करने के लिए कहता है क्योंकि हम पैदा होने से पहले ही पाप से संक्रमित हो चुके थे और नरक में जाने के लिए नियत थे। परमेश्वर चाहता है कि हम सभी उसके सच्चे वचन को ग्रहण करें ताकि हम बचाए जा सकें।
 

शैतान हमेशा अविश्वासियों के द्वारा झूठ बोलता है

“उनका गला खुली हुई कब्र है, उन्होंने अपनी जीभों से छल किया है, उनके होठों में साँपों का विष है। उनका मुँह श्राप और कड़वाहट से भरा है। उनके पाँव लहू बहाने को फुर्तीले हैं, उनके मार्गों में नाश और क्लेश है, उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना। उनकी आँखों के सामने परमेश्‍वर का भय नहीं” (रोमियों ३:१३-१८)।
"उन्होंने अपनी जीभों से छल किया है।" सभी लोग धोखा देने में माहिर होते हैं। परमेश्वर शैतान के बारे में कहता है, "जब वह झूठ बोलता है, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है" (यूहन्ना ८:४४)। वे सभी जिनका नया जन्म नहीं हुआ है, कहते हैं, "मैं सच में सत्य कहता हूँ। यह सच है,” लेकिन उनकी बातें सब झूठ हैं।
जो लोग इस बात पर जोर देते हैं कि उनकी बातें सही हैं, वे झूठे हैं। क्या आपने कभी ठगों को यह कहते हुए देखा है, "मैं झूठा और ठग हूँ," जब वे दूसरों को धोखा देने की कोशिश करते हैं? वे ऐसे बोलते हैं जैसे की वे जो कुछ भी कहते हैं वह सच है। वे आश्वस्त रूप से कह सकते हैं, “मैं आपको कुछ बताता हूँ। अगर आप इसमें अपना पैसा लगाते हैं, तो आप अच्छा खासा पैसा कमा सकते हैं। यदि आप दस लाख डॉलर का निवेश करते हैं, तो आप जल्द ही मूलधन के रूप में ज्यादा कमा सकते हैं और आप कुछ वर्षों में एक करोड़ डॉलर कमाएंगे। यह एक शानदार निवेश है। क्या आप निवेश करना चाहते हैं?` जिन्होंने नया जन्म प्राप्त नहीं किया हैं वे हमेशा अपनी जीभ से धोखा देते हैं।
जब शैतान झूठ बोलता है, तो वह अपने स्वभाव ही से बोलता है। एक उपदेशक जिसका नयाजन्म नहीं हुआ है वह हमेशा झूठ बोलता है। उनका दावा है कि यदि कोई बड़ी मात्रा में दशमांश भेंट करता है तो वह अमीर हो सकता है। क्या बाइबल में कोई ऐसा भाग है जो कहता है कि यदि कोई व्यक्ति कलीसिया में प्राचीन बन जाता है तो वह अमीर बन सकता है? लोग प्राचीन बनने की कोशिश क्यों करते हैं? वे प्राचीन बनने की कोशिश करते हैं क्योंकि उन्हें यह विश्वास दिलाया जाता है कि यदि वे प्राचीन बन जाते हैं, तो परमेश्वर उन्हें सांसारिक आशीष देंगे। उन्हें धोखा दिया जाता है क्योंकि उनका मानना है कि यदि वे प्राचीन बन जाते हैं तो उन्हें धन की कृपा मिल सकती है। वे धोखे के जाल में फंस जाते हैं। 
क्या आप कभी ऐसे झूठ के धोखे में आकर प्राचीन बने हैं? बहुत से लोग प्राचीन बनाकर भिखारियों की तरह जीवन व्यतीत कर चुके हैं। मैं अपने आसपास उनमें से बहुतों को जानता हूं। झूठे भविष्यद्वक्ता जिनका नया जन्म नहीं हुआ है, वे धनी लोगों को अपनी कलीसियाओं के प्राचीनों के रूप में नियुक्त करते हैं। क्यों? क्योंकि वे चाहते हैं कि प्राचीन उनकी कलीसियाओं में बड़ा योगदान दें। कभी-कभी वे बिना पैसे वाले लोगों को प्राचीनों के रूप में नियुक्त करते हैं क्योंकि वे उन्हें अपना अंध अनुयायी बनाना चाहते हैं। 
आम कहावत है, "यदि कोई प्राचीन बन जाता है तो उसे धन की आशीष मिलेगी,” यह एक झूठ है। बाइबल में इसका कोई उल्लेख नहीं है। बाइबल कहती है कि धन का अनुग्रह पाने के बजाय परमेश्वर के सेवकों को सताया जाएगा। प्रभु कहते हैं, "इसलिए पहले तुम परमेश्वर के राज्य और उसके धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएगी" (मत्ती ६:३३)। 
बाइबल कहती है, “उनके होठों में साँपों का विष है।” मनुष्यों के पास वास्तव में साँप का विष है। जिन्होंने नया जन्म प्राप्त नहीं किया है वे धर्मियों से क्या कहते है? वे धर्मियों को श्राप देते है और और साँप की नाई बात करते है। बाइबल कहती है, “उनके पाँव लहू बहाने को फुर्तीले हैं, उनके मार्गों में नाश और क्लेश है, उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना। उनकी आँखों के सामने परमेश्‍वर का भय नहीं।”
 

व्यवस्था का उद्देश्य क्या है?

बाइबल का भाग, "जैसा लिखा है," का अर्थ है कि यह पुराने नियम का उद्धरण है। प्रेरित पौलुस ने पुराने नियम को कई बार उद्धृत किया। उस ने कहा, “उनके पाँव लहू बहाने को फुर्तीले हैं, उनके मार्गों में नाश और क्लेश है, उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना। उनकी आँखों के सामने परमेश्‍वर का भय नहीं।” मुझे उन पर दया आती है जो नया जन्म प्राप्त करने के तरीके को जाने बिना नरक में चले जाते हैं। 
रोमियों ३:१९ कहता है, “हम जानते हैं कि व्यवस्था जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्था के अधीन हैं; इसलिये कि हर एक मुँह बंद किया जाए और सारा संसार परमेश्‍वर के दण्ड के योग्य ठहरे” परमेश्वर का क्रोध व्यवस्था के अनुसार भड़कता है। पौलुस उसका कारण कहता है, "यह उन लोगों से कहती है जो व्यवस्था के अधीन हैं," क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें व्यवस्था दी है जिनका नया जन्म नहीं हुआ हैं, जो पाप को नहीं जानते हैं और जो पाप को पाप के रूप में नहीं समझते हैं, ताकि वे पापियों को उनके वास्तविक अस्तित्व के बारें में प्रबुध्ध कर सके, जो कभी भी व्यवस्था का पालन नहीं कर सकते। परमेश्वर ने हमें इसलिए व्यवस्था नहीं दी ताकि हम उसका पालन करे। तब क्या परमेश्वर कहता है कि उसने व्यवस्था को नष्ट कर दिया? नहीं। उसने हमें हमारे पापों का ज्ञान देने के लिए मूसा के द्वारा व्यवस्था दी। उसने हमें व्यवस्था इसलिए नहीं दी ताकि हम उसका पालन करे। हम कितने पापी हैं, यह सिखाने में परमेश्वर की व्यवस्था की भूमिका है।
 

कोई भी व्यक्ति व्यवस्था के कामों के द्वारा धर्मी नहीं बन सकता

रोमियों ३:२० कहता है, "क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके सामने धर्मी न ठहरेगा, इसलिए कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है।" नया जन्म पाए हुए मसीही जानते हैं कि व्यवस्था के कार्यों से कोई भी मनुष्य धर्मी नहीं ठहरता। प्रेरित पौलुस और परमेश्वर के सभी सेवक कहते हैं, "कोई भी मनुष्य व्यवस्था के कामों से धर्मी नहीं ठहरेगा।" ऐसा कोई नहीं है जो व्यवस्था का पालन करता है और जो भविष्य में इसका पालन करेगा। इसलिए, हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि हम व्यवस्था के कार्यों से कभी भी धर्मी नहीं बन सकते। हमारे कर्म हमें धर्मी नहीं बना सकते।
प्रेरित पौलुस इस बात को जानता था और विश्वास करता था। क्या हम व्यवस्था का पालन करने से धर्मी ठहरते है? क्या व्यवस्था हमें सही ठहरा सकती है? जब आप धर्मग्रंथों को पढ़ते हैं, तो क्या आपको लगता है कि यह विश्वास करना सही है कि हमारा शरीर धर्मी होने के लिए बदलता है और यीशु में विश्वास करने के बाद अच्छे कर्म करके स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करता है? नहीं, यह सच नहीं है। यह झूठ है। यह तथ्य कि कोई व्यक्ति धर्मी होने के लिए धीरे-धीरे रूपांतरित होकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करता है, एक झूठ है। वे सभी लोग जिनका नया जन्म नहीं हुआ है वे व्यवस्था के अधीन हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि उन्हें अपने कर्मों के साथ परमेश्वर के वचन का पालन करना चाहिए। यह उन्हें व्यवस्था का पालन करने और प्रतिदिन माफ़ी के लिए प्रार्थना करने का प्रयास कराता है। यह इसलिए है क्योंकि उन्होंने पहला बटन ही गलत लगाया है। व्यवस्था हमें पापी होने का ज्ञान देती है। पापियों का व्यवास्था का पालन करने का प्रयास उनकी अज्ञानता और उनके अपने विचारों के कारण होता है, जो सत्य के उद्धार के खिलाफ हैं और देह से बाहर हैं। यह एक गलत विश्वास है।
पवित्रीकरण का सिद्धांत, जो कहता है कि हम धर्मी होने के लिए क्रमिक रूप से बदलते हैं, यह जगत के अन्य धर्मनिरपेक्ष धर्मों में भी पाया जाता है। बौद्ध धर्म का एक समान सिद्धांत है, निर्वाण का सिद्धांत, क्रमिक पवित्रीकरण के मसीही सिद्धांत के रूप में। बहुत से लोग कहते हैं कि उनके शरीर को अधिक से अधिक पवित्र हो सकते है और वे अंततः स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि प्रभु ने हमारी आत्माओं को हमेशा के लिए पवित्र कर दिया। 
यहाँ तक की धर्मी भी देह से पवित्र नहीं हो सकते। जिनके पास आत्मा नहीं है वे पवित्र नहीं हो सकते। वे जितने अच्छे कर्म करने की कोशिश करते हैं, वे उतने ही गंभीर पापी होते जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके हृदय में पाप है। उनमें से अक्सर कुछ गंदा निकलता है और उन्हें गंदा कर देता है, चाहे वे बाहरी रूप से खुद को शुद्ध करने की कितनी भी कोशिश कर लें, क्योंकि वे अंदर से पाप से भरे हुए हैं। यह एक पापी का वास्तविक अस्तित्व है। 
यह अवस्था उन लोगों के विपरीत है जिन्होंने सम्पूर्ण पापों की माफ़ी को प्राप्त किया है। भले ही वे अपनी देह से पाप करते हो लेकिन वे शुद्ध जीवन जी सकते हैं। पापी जो पाप से संक्रमित पैदा हुए हैं, वे जीवन भर पाप फैलाते हैं क्योंकि पाप उनकी इच्छा के विरुद्ध उनमें से निकलता है। उनके पास ठीक होने के अलावा ओर कोई विकल्प नहीं है जो उनके पापों को हमेशा के लिए समाप्त कर सकता है। वह है परमेश्वर के सत्य का सुसमाचार। पापों की माफ़ी का वचन सुनकर उन्हें उनके पापों से उद्धार मिल सकती है। मैं चाहता हूँ कि आप नया जन्म लेने का वचन सुनें और पापों की माफ़ी प्राप्त करें।
कौन पूरी तरह से व्यवस्था के द्वारा जी सकता है? कौन व्यवस्था के अनुसार सम्पूर्ण रीती से जीवन जी सकता है फिर भले ही उसका नया जन्म हुआ हो? कोई भी नहीं। रोमियों में लिखा है, "व्यवस्था से पाप का ज्ञान होता है।" ये इतना सरल है। आदम और हव्वा को पवित्रता के समय शैतान ने धोखा दिया था और पाप के अधीन बेच दिया गया था। पाप उनके वंशजों को सौंप दिया गया जो परमेश्वर के वचन को नहीं जानते थे। भले ही उन्हें पाप विरासत में मिला हो लेकिन फिर भी वे नहीं जानते थे कि वे पापी पैदा हुए थे।
इब्राहीम और याकूब के समय के बाद, इस्राएली लोग विश्वास और अपने पापी अस्तित्व के बारे में भूल गए, हालाँकि उनके पूर्वज इब्राहीम को विश्वास से धर्मी बनाया गया था। इसलिए परमेश्वर ने उन्हें अपनी व्यवस्था दी ताकि उन्हें पाप का ज्ञान हो और वे चाहते थे कि वे उसकी प्रतिज्ञा पर विश्वास करके पापों की माफ़ी प्राप्त करें। क्या आप इस पर विश्वास करते हैं?
 

परन्तु अब व्यवस्था से अलग परमेश्वर की यह धार्मिकता प्रगट हुई है

रोमियों ३:२१ कहता है, "परन्तु अब व्यवस्था से अलग परमेश्वर की वह धार्मिकता प्रगट हुई है, जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं।" प्रेरित पौलुस कहता है कि व्यवस्था के अतिरिक्त परमेश्वर की धार्मिकता प्रगट होती है। वचन, “जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते है," पुराने नियम को दर्शाता है। पानी और आत्मा का सुसमाचार परमेश्वर की धार्मिकता है, जिसे बलिदान प्रणाली के माध्यम से प्रकट किया गया था। सुसमाचार उस धार्मिकता को प्रकट करता है जो हमें पापबलि के द्वारा पापों की माफ़ी प्राप्त करने की ओर ले जाती है। 
रोमियों ३:२२ कहता है, “अर्थात् परमेश्‍वर की वह धामिर्कता जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करनेवालों के लिए है। क्योंकि कोई भेद नहीं है।" हमारा विश्वास हमारे हृदय में है। विश्वास का कर्ता और सिध्ध करनेवाला यीशु मसीह है। इब्रानियों १२:२ में कहा गया है, “और विश्वास के कर्ता और सिध्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें।" विश्वास का कर्ता और सिध्ध करनेवाला यीशु है और हम सच्चे वचन पर विश्वास करते हैं, जो परमेश्वर है। हमें अपने सभी पापों से बचने और विश्वास से जीने के लिए नया जन्म पाए हुए सेवकों से बाइबल के सच्चे वचनों को सीखना और उन पर विश्वास करना चाहिए। हमें अपने हृदय से यीशु पर विश्वास करना चाहिए। 
परमेश्वर कहता हैं, “अर्थात् परमेश्‍वर की वह धामिर्कता जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करनेवालों के लिए है। क्योंकि कोई भेद नहीं है।" इसलिए, हम सच्चे वचन पर अपने हृदय से विश्वास करने के द्वारा धर्मी बने हैं और हमारे मुँह से अंगीकार करने के द्वारा पूर्ण उद्धार की पुष्टि हुई है। हमें अपने कर्मों से नहीं, लेकिन विश्वास के द्वारा उद्धार प्राप्त कर सकते है। हम केवल प्रभु और परमेश्वर की कलीसिया को धन्यवाद देते हैं।
क्या आप के सारे पाप मिटने के बावजूद भी आप अपने कर्मों से बंधे हुए हैं? यदि आप अपने हृदय से परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, तो आप अपने शरीर की कमजोरियों की परवाह किए बिना धर्मी हैं। पवित्र आत्मा यह कहते हुए आपके हृदय में परमेश्वर के वचन की गवाही देता है, "तुम धर्मी हो," क्योंकि जब हम वचन सुनते हैं तो वह हमें सच्चे वचन को समझने के लिए प्रेरित करता है। क्या आप परमेश्वर के वचन को सुनने के बाद विश्वास से बचाए गए थे?
“अर्थात् परमेश्‍वर की वह धामिर्कता जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करनेवालों के लिए है। क्योंकि कोई भेद नहीं है।" जो कोई भी परमेश्वर के वचन को जो सत्य है, सिखाता और विश्वास करता है, वह अपने सारे पापों से बच सकता है।
 

यीशु ने जगत की उत्पत्ति से अन्त तक के सभी पापों को साफ़ किया है

रोमियों ३:२३-२५ में लिखा है, “इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं, परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंतमेंत धर्मी ठहराए जाते हैं। उसे परमेश्‍वर ने उसके लहू के कारण एक ऐसा प्रायश्‍चित ठहराया, जो विश्‍वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किए गए और जिन पर परमेश्‍वर ने अपनी सहनशीलता के कारण ध्यान नहीं दिया। उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे।”
बाइबल कहती है कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं। हमने परमेश्वर की कृपा और प्रेम के द्वारा पापों की माफ़ी प्राप्त की और धर्मी बन गए जबकि पापी नरक में जाते हैं। हम परमेश्वर की महिमा तक पहुंचे और धर्मी ठहरे। परमेश्वर ने विश्वास के द्वारा यीशु को उसके लहू से प्रायश्चित करने के लिए ठहराया। 
वचन २५ और २६ कहता है, “उसे परमेश्‍वर ने उसके लहू के कारण एक ऐसा प्रायश्‍चित ठहराया, जो विश्‍वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किए गए और जिन पर परमेश्‍वर ने अपनी सहनशीलता के कारण ध्यान नहीं दिया। उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे। वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो कि जिससे वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्‍वास करे उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो।” यहाँ वचन, “ठहराया” मतलब की परमेश्वर ने अपने पुत्र यीशु को पूरे ब्रह्मांड के पापों के प्रायश्चित के लिए ठहराया।
यीशु ने अपने बपतिस्मा के द्वारा जगत के सारे पापों को ले लिया। यीशु अल्फा और ओमेगा है। आइए जगत की शुरुआत और अंत के बारे में सोचें। परमेश्वर ने हमें उस विश्वास से छुड़ाया जिसने जगत की शुरुआत से लेकर अन्त तक के हमारे सब पापों को धो दिया। परमेश्वर ने यीशु को सत्य में विश्वास के द्वारा प्रायश्चित करने के लिए ठहराया। मुझे तब तक एहसास नहीं हुआ जब तक मैंने सुसमाचार के इन वचनों पर विश्वास नहीं किया की, “कि जो पाप पहले किए गए और जिन पर परमेश्‍वर ने अपनी सहनशीलता के कारण ध्यान नहीं दिया। उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे।”
जब हम इस वचन पर विश्वास करते है जो कहता है की यीशु ने हमारे सभी पापों को अपने बपतिस्मा और लहू से धो दिया तब हमारे सारे पाप मिट जाते है। हमने एक ही बार और हमेशा के लिए पापों की माफ़ी प्राप्त की, लेकिन हमारी देह अभी भी पाप कर रही है। हमारी कमजोरी के कारण देह पाप करता है। हालाँकि, बाइबल कहती है की, “जो पाप पहले किए गए थे उस पर परमेश्‍वर ने ध्यान नहीं दिया।” जो पाप शरीर अब भी करता है और भविष्य में भी करेगा वो वे पाप हैं जो पहले परमेश्वर के दृष्टिकोण से किए गए थे।
क्यों? परमेश्वर ने यीशु के बपतिस्मा को हमारे उद्धार का मुख्य प्रारंभिक बिंदु बनाया। इसलिए, देह के वर्तमान पाप वे पाप हैं जो परमेश्वर के दृष्टिकोण में अतीत हैं, क्योंकि पापों की माफ़ी यीशु मसीह के द्वारा एक बार और हमेशा के लिए पूरी की गई थी। वर्तमान पाप वे पाप हैं जिन्हें पहले ही मिटा दिया गया था। वचन, “जो पाप पहले किए गए थे उस पर परमेश्वर ने ध्यान नहीं दिया" का अर्थ है कि "उसने पहले ही जगत के पापों की कीमत चूका दी थी।" जगत के सभी पापों को पहले ही यीशु के बपतिस्मा और क्रूस के द्वार माफ़ कर दिया गया था।
इसलिए, परमेश्वर ने पहले ही जगत के शुरुआत से लेकर अन्त तक के सभी पापों को मिटा दिया। इसलिए सभी पाप परमेश्वर की दृष्टि में पहले किए गए थे। जगत में लोग पाप कर रहे हैं जो पहले से ही परमेश्वर के पुत्र द्वारा मिटाए गए थे। २००२ की साल में किए गए पाप यीशु ने लगभग २,००० वर्ष पहले ही मिटा दिए थे। क्या आप इस बात को समझ रहे है?
परमेश्वर ने आपके और मेरे पापों सहित जगत के पापों को पहले ही मिटा दिया है। क्या आप समझते हैं इसका क्या मतलब है? यदि आप अन्य लोगों को सुसमाचार का प्रचार नहीं करते हैं, तो आप भ्रमित हो सकते हैं। वचन, “जो पाप पहले किए गए थे उस पर परमेश्वर ने ध्यान नहीं दिया," का मतलब है कि परमेश्वर सभी पापों को अनदेखा करता है क्योंकि उसने लगभग 2,000 वर्ष पहले ही उन्हें मिटा दिया था। सभी मनुष्यों के पापों का न्याय पहले ही किया जा चुका था क्योंकि यीशु ने यरदन नदी में बपतिस्मा लिया था और उसे क्रूस पर चढ़ाया गया था। परमेश्वर ने पापों पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि यीशु को जगत में भेजा गया था और सभी मनुष्यों को एक बार हमेशा के लिए न्यायी ठहराया। इसलिए, परमेश्वर उन पापों पर दोष नहीं लगाता है जो जगत के सभी लोगों द्वारा किए गए हैं और पहले से ही उसके द्वारा मिटा दिए गए थे, लेकिन यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उनके अविश्वास पर दोष लगाता है।
क्या आप समझते हैं कि प्रेरित पौलुस का क्या अर्थ है? यह हम उद्धार पाए हुए लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जिन्होंने नया जन्म नहीं पाया हैं वे नरक में जाएंगे क्योंकि वे इसे अनदेखा करते हैं। हमें वचन को सुनना चाहिए और हमारे पास वचन का सही ज्ञान होना चाहिए। यह आपके विश्वास के लिए और अन्य लोगों को सुसमाचार प्रचार के लिए बहुत सहायक होगा।
 

तो घमण्ड करना कहा रहा?

बाइबल कहती है, “कि जो पाप पहले किए गए और जिन पर परमेश्‍वर ने अपनी सहनशीलता के कारण ध्यान नहीं दिया। उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे।” परमेश्वर हमें सिखाता है कि अतीत के पाप पहले ही मिटा दिए गए थे क्योंकि परमेश्वर ने यीशु को प्रायश्चित करने के लिए निर्धारित किया था। इसलिए, हम विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरे हैं। 
वचन २६ में कहा गया है, "वरन इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो की जिसने यह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो।" “इसी समय” परमेश्वर ने जगत को अनन्त जीवन दिया ताकि जगत का नाश न हो। इसी समय, परमेश्वर ने यीशु मसीह को उसकी धार्मिकता को प्रगट करने के लिए भेजा और जो उसने वादा किया था उसे पूरा किया। यहोवा ने अपनी धार्मिकता को प्रगट किया। परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को भेजा और उसे बप्तिस्मा दिया और क्रूस पर चढ़ाया ताकि वह सत्य के उद्धार के द्वारा अपना प्रेम प्रगट कर सके। 
प्रभु पापियों के पास उनका उद्धारकर्ता बनकर आया। "वरन इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो की जिसने यह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो।" परमेश्वर धर्मी है और जगत के पापों को हमेशा के लिए मिटा दिया है। हम अपने हृदय से यीशु पर विश्वास करते हैं, इसलिए हमारे पास कोई पाप नहीं है। जो लोग यीशु पर सच्चाई से विश्वास करते हैं वे पाप रहित हैं क्योंकि उसने उनके पापों को धो दिया और यहाँ तक कि उन्हें उनके भविष्य के पापों से भी बचाया है। यीशु ने हमारे लिए जी किया उस पर हृदय से विश्वास करने के द्वारा हमारा उद्धार होता है। उसके उद्धार पर हमारे विश्वास में हमारे कर्म शामिल नहीं हैं, 0.1% भी नहीं।
रोमियों ३:२७-३१ कहता है, “तो घमण्ड करना कहाँ रहा? उसकी तो जगह ही नहीं। कौन–सी व्यवस्था के कारण से? क्या कर्मों की व्यवस्था से? नहीं, वरन् विश्‍वास की व्यवस्था के कारण। इसलिये हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि मनुष्य व्यवस्था के कामों से अलग ही, विश्‍वास के द्वारा धर्मी ठहरता है। क्या परमेश्‍वर केवल यहूदियों ही का है? क्या अन्यजातियों का नहीं? हाँ, अन्यजातियों का भी है। क्योंकि एक ही परमेश्‍वर है, जो खतनावालों को विश्‍वास से और खतनारहितों को भी विश्‍वास के द्वारा धर्मी ठहराएगा। तो क्या हम व्यवस्था को विश्‍वास के द्वारा व्यर्थ ठहराते हैं? कदापि नहीं! वरन् व्यवस्था को स्थिर करते हैं।” 
शब्द, "हम व्यवस्था को स्थिर करते हैं," का अर्थ है कि हम अपने कर्मों से उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते हैं। हम अपरिपूर्ण और कमजोर हैं और व्यवस्था के सामने हमें नर्क में जाना था। हालाँकि, परमेश्वर के वचन ने हमें धर्मी और सिद्ध बनाया क्योंकि हम उसके वचन से बचाए गए थे। प्रभु हमें बताता है कि हमारे सभी पापों से बचाए जाने के बाद भी हमारा शरीर अभी भी अपूर्ण है, लेकिन उसने हमें हमारे सभी पापों से पूरी तरह से मुक्त कर दिया। हम यह विश्वास करके परमेश्वर के निकट आ सकते हैं कि यीशु ने हमें बचाया।
“तो घमण्ड करना कहाँ रहा? उसकी तो जगह ही नहीं। कौन–सी व्यवस्था के कारण से? क्या कर्मों की व्यवस्था से? नहीं, वरन् विश्‍वास की व्यवस्था के कारण।” हमें उस व्यवस्था को जानना चाहिए जिसे परमेश्वर ने स्थापित किया है और यह कि व्यवस्था उसके राज्य में हमेशा के लिए है। परमेश्वर कहता है, “कौन–सी व्यवस्था के कारण से? क्या कर्मों की व्यवस्था से? नहीं, वरन् विश्‍वास की व्यवस्था के कारण।” क्या आप यह समझते हैं? परमेश्वर ने हमें जगत के सभी पापों से बचाया। जब हम सत्य के अनुसार विश्वास करते हैं तो हम बच जाते हैं। हमें यह याद रखना होगा कि व्यवस्था के काम हमें नहीं बचा सकते। 
रोमियों अध्याय 3 में परमेश्वर प्रेरित पौलुस के माध्यम से विश्वास की व्यवस्था के बारे में बात करता है। परमेश्वर कहता है, "क्या उनके विश्वासघाती होने से परमेश्वर की सच्चाई व्यर्थ ठहरेगी?" (रोमियों ३:३) विश्वासी विश्वास से दृढ़ रहते हैं, लेकिन अविश्वासी नीचे गिर जाते हैं। जिन्हें सत्य के सुसमाचार में पूर्ण विश्वास नहीं है, वे नरक में जाएंगे, भले ही उन्हें लगता हो की वे यीशु पर विश्वास करते हैं।
 

परमेश्वर ने हम सब को सभी पापों से उत्तम रीति से बचाया है

परमेश्वर ने परमेश्वर की व्यवस्था को स्थिर किया ताकि जो लोग अपने ही विचारों के अनुसार विश्वास करते हैं, वे विश्वास की व्यवस्था पर ठोकर खा सकें। परमेश्वर ने हम सभी को हमारे पापों से पूरी तरह से बचाया। रोमियों अध्याय ३ विश्वास की व्यवस्था के बारे में बात करता है। सच्चे वचन पर विश्वास करने से हम बच जाते हैं। हम स्वर्ग के राज्य के वारिस हैं और विश्वास से शांति प्राप्त करते हैं। अविश्वासियों को शांति नहीं मिल सकती। इसके बजाय, वे नरक में जाते हैं। इसका क्या कारण है? पहला, उनका न्याय परमेश्वर की सच्चाई की व्यवस्था के अनुसार किया जाता है क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के सत्य के वचन को ग्रहण नहीं किया था। उद्धार परमेश्वर के प्रेम से आता है और सत्य को जानने और प्रभु ने हमारे लिए जो किया है उस पर हृदय से विश्वास करने से हमारा उद्धार होता है। क्या आप समझ रहे हो? 
मैं उस प्रभु की स्तुति करता हूँ जो हमें इस पृथ्वी पर यह विश्वास और अपनी कलीसिया देता है। मैं उस प्रभु का धन्यवाद करता हूं जो हमें सच्चाई, विश्वास और वचन देता है, जो प्रेरित पौलुस के पास था, और जिसने अपनी कलीसिया के सामने पापों की माफ़ी का रहस्य प्रकट किया। मैं हृदय की गहराई से उसकी स्तुति करता हूँ। 
हम प्रभु का धन्यवाद करते हैं क्योंकि उन्होंने अपने बपतिस्मा और क्रूस पर मृत्यु के द्वारा हमें बचाया। हमारे पास इस विश्वास और उसकी कलीसिया के बिना नरक में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हम पापी थे, जिन्हें स्वभाव से कभी नहीं बचाया जा सकता था, लेकिन हमने अपने हृदय से धार्मिकता पर विश्वास किया। हम उसकी सन्तान बन जाते हैं, जो हृदय से धार्मिकता पर विश्वास करते हैं, और मुँह से उद्धार का अंगीकार करते है (रोमियों १०:१०)।