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उपदेश

विषय ९ : रोमियों (रोमियों की पत्री किताब पर टिप्पणी)

[अध्याय 7-6] पापियों के उद्धारक, प्रभु की स्तुति हो (रोमियों ७:१४-८:२)

( रोमियों ७:१४-८:२ )
“हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है, परन्तु मैं शारीरिक और पाप के हाथ बिका हुआ हूँ। जो मैं करता हूँ उस को नहीं जानता; क्योंकि जो मैं चाहता हूँ वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है वही करता हूँ। यदि जो मैं नहीं चाहता वही करता हूँ, तो मैं मान लेता हूँ कि व्यवस्था भली है। तो ऐसी दशा में उसका करनेवाला मैं नहीं, वरन् पाप है जो मुझ में बसा हुआ है। क्योंकि मैं जानता हूँ कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती। इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते। क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ। अत: यदि मैं वही करता हूँ जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है। इस प्रकार मैं यह व्यवस्था पाता हूँ कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूँ, तो बुराई मेरे पास आती है। क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्‍वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूँ। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है। मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर का धन्यवाद हो। इसलिये मैं आप बुद्धि से तो परमेश्‍वर की व्यवस्था का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूँ। अत: अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं। [क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार चलते हैं।] क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया।” 
 


मनुष्य पापी है जिसे पाप विरासत में मिला है


सभी मनुष्यों को आदम और हव्वा से पाप विरासत में मिला और वे पाप के बीज बन गए। इस प्रकार हम मूल रूप से पाप की संतान के रूप में पैदा होते हैं और अनिवार्य रूप से पापी प्राणी बन जाते हैं। दुनिया में सभी लोग एक पूर्वज आदम के कारण पापी बन जाते हैं, हालांकि उनमें से कोई भी पापी बनना नहीं चाहता।
पाप का मूल क्या है? यह हमारे माता-पिता से विरासत में मिला है। हम अपने ह्रदय में पाप के साथ पैदा हुए हैं। यह पापियों की विरासत में मिली प्रकृति है। हमारे पास १२ प्रकार के पाप हैं जो आदम और हव्वा से विरासत में मिले हैं। ये पाप—व्यभिचार, परस्त्रीगमन, हत्या, चोरी, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान और मूर्खता—हमारे जन्म के समय से ही हमारे हृदयों में अंतर्निहित हैं। मनुष्य का मूल स्वभाव पाप है।
इस प्रकार हम बारह प्रकार के पापों के साथ पैदा हुए हैं। हम केवल यह स्वीकार कर सकते कि हम पापी हैं क्योंकि हम अपने ह्रदय में पाप के साथ पैदा हुए हैं। मनुष्य जन्म से ही पापी है और अनिवार्य रूप से पापी है क्योंकि भले ही वह जीवनभर पाप न करे लेकिन मूल रूप से उसके भीतर पाप है। व्यक्ति पापी बन जाता है क्योंकि वह अपने हृदय में पाप के साथ पैदा होता है। यदि हम अपनी देह से पाप न भी करें, तो भी हम पापी बनने से नहीं बच सकते क्योंकि परमेश्वर हृदय को जाँचता है। इसलिए सभी मनुष्य परमेश्वर के सामने पापी हैं। 
 

मनुष्य अपराध का पाप करता है

मनुष्य अपराध का पाप भी करता है। वह देह से पाप करता है जो भीतर में मूल पाप से अंकुरित होता है। हम इन पापों को "अधर्म" या "अपराध" कहते हैं। वे हमारे बाहरी व्यवहारों के अपराध हैं जो हमारे ह्रदय में बारह प्रकार के पापों से उत्पन्न होते हैं। भीतर से दुष्ट पाप मनुष्य को अधर्म के कार्य करवाता है और इस प्रकार सभी मनुष्यों को बिना किसी अपवाद के पापी बना देता है। जब एक मनुष्य बहुत छोटा होता है तब वह पापी नहीं लगता। एक शिशु जब बहुत छोटा होता है तब उसमें से पाप विशेष रूप से नहीं निकलता है, जैसे कि एक छूता ख़ुरमा का पेड़ ख़ुरमा नहीं लाता है। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, पाप भीतर से अधिक से अधिक बाहर आने लगता है, और हमें पता चलता है कि हम पापी हैं। हम इन पापों को अधर्म या अपराध कहते हैं, और ये वे पाप हैं जो व्यवहार के द्वारा किए जाते हैं। 
परमेश्वर कहते हैं कि ये दोनों पाप हैं। मन का पाप और हमारे शरीर के अधर्म के काम दोनों पाप हैं। परमेश्वर इंसान को पापी कहता हैं। सभी पाप हृदय के पापों में और व्यवहार के पापों में शामिल हैं। इसलिए, सभी लोग परमेश्वर की दृष्टि में पापी पैदा होते हैं, चाहे वे अपने व्यवहार से पाप करते हों या नहीं। 
अविश्वासी इस बात पर जोर देते हैं कि मनुष्य मूल रूप से अच्छा पैदा होता है, और यह कि कोई भी जन्म से बुरा नहीं होता है। परन्तु दाऊद ने परमेश्वर के सामने अंगीकार किया, “मैं ने केवल तेरे ही विरुद्ध पाप किया, और जो तेरी दृष्‍टि में बुरा है, वही किया है; ताकि तू बोलने में धर्मी और न्याय करने में निष्कलंक ठहरे। देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा” (भजन संहिता ५१:४-५)। इस भाग का अर्थ है, "मैं इस तरह पाप करता हूँ, क्योंकि मैं मूल रूप से पाप का बीज हूँ। मैं घोर पापी हूँ। इसलिए, यदि आप मेरे पापों को दूर करते हैं, तो मैं अपने सभी पापों से छुटकारा पा सकता हूँ और धर्मी बन सकता हूँ। लेकिन यदि आप मेरे पापों को नहीं लेते है तो मुझे मुझे नरक में जाना होगा। यदि आप कहते है की मुझ में पाप है तो मुझ में पाप है। परन्तु यदि आप कहते है की मेरे अन्दर कोई पाप नहीं है तो मेरे अन्दर को पाप नहीं। परमेश्वर सब कुछ आप पर और आपके न्याय पर निर्भर करता है।" 
सच कहू तो, परमेश्वर की दृष्टि में, सभी मनुष्य पापी हैं क्योंकि उन्हें अपने माता-पिता से पाप विरासत में मिला है। वे अपने व्यवहार की परवाह किए बिना पापी पैदा होते हैं। पाप से बचने का एकमात्र तरीका यीशु के उद्धार में विश्वास करना है। सार्वजनिक शिक्षा हमारे बच्चों को झूठा दावा सिखाती है, जिसका मुख्य संदेश निम्नलिखित तरीके से अभिव्यक्त किया जा सकता है: "सभी लोग अच्छे स्वभाव के साथ पैदा होते हैं। अतः मनुष्य के अच्छे स्वभाव के अनुसार सदाचारी जीवन व्यतीत करें। यदि आप सिर्फ कोशिश करते हैं तो आप अच्छा कर सकते हैं।" वे केवल सकारात्मक बातें कहते हैं। मनुष्य नैतिक सिद्धांतों की शिक्षाओं के तहत जीता हैं। लेकिन वे अपने ह्रदय में या अपनी देह से अपने समाज में या अपने घर में पाप क्यों करते हैं? वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे मूल रूप से पाप के साथ पैदा हुए हैं। मनुष्य पाप के बीज के रूप में जन्म लेता है। भले ही मनुष्य अच्छा करना चाहता हो लेकिन वह पाप ही करता है। यह साबित करता है कि हम पाप के साथ पैदा हुए हैं।
 


आपको खुद को जानना ही चाहिए


लोग जीवन भर देह के द्वारा पाप करते है क्योंकि वे पाप के साथ पैदा हुए हैं। यह मनुष्यजाति की मूल स्थिति है - हमें पहले स्वयं को जानना चाहिए। सोक्रेटिस ने कहा, "अपने आप को जानो!" और यीशु ने कहा, “तू पापी है, क्योंकि तू ने पाप के साथ गर्भ धारण किया और अधर्म में उत्पन्न हुआ। इसलिए तुम्हें अपने पापों की माफ़ी प्राप्त करनी चाहिए।" खुद को जानें। ज्यादातर लोग खुद को गलत समझते हैं। लगभग सभी लोग खुद को जाने बिना जीवन जीते है और मरते हैं। बुद्धिमान लोग ही खुद को जानते हैं। जो लोग यह जानकर यीशु की सच्चाई को समझते हैं और विश्वास करते हैं कि वे कुकर्मियों का बीज हैं, वे बुद्धिमान हैं। उन्हें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का अधिकार है।
जो लोग खुद को नहीं जानते वे लोगों को पाखंडी बनाना और पाप न करने के बारे में सिखाते है। वे लोगों को सिखाते हैं कि वे अपने भीतर के पापों को व्यक्त न करें। जब भी वे उनसे बाहर निकलने की कोशिश करते हैं तो धार्मिक शिक्षक उन्हें पाप न करने और अपने पापों को दबाने के लिए प्रशिक्षित करते हैं। वे सभी नरक की ओर जा रहे हैं। वे कौन हैं? वे शैतान के सेवक हैं, झूठे चरवाहे। वे जो सिखाते हैं वह वो नहीं है जो हमारे परमेश्वर ने हमें सिखाया है। बेशक, हमारे परमेश्वर ने हमें पाप करने के लिए नहीं कहा। परन्तु वह हमें बताता है, "तू ने पाप किया है, तू पापी है, और पाप की मजदूरी मृत्यु है। आप अपने पापों के कारण विनाश के रास्ते पर हैं। इसलिए पापों से मुक्त होना चाहिए। उद्धार का उपहार प्राप्त करें जो आपको आपके सभी पापों से बचाता है। तब, तुम्हारे सारे पाप माफ़ किए जाएँगे और तुम अनन्त जीवन पाओगे। आप एक धर्मी, अनमोल संत और परमेश्वर की संतान बनेंगे। ” 
 


परमेश्वर ने मनुष्यजाति को व्यवस्था क्यों दी?


पौलुस ने कहा, “व्यवस्था बीच में आ गई कि अपराध बहुत हो, परन्तु जहाँ पाप बहुत हुआ वहाँ अनुग्रह उससे भी कहीं अधिक हुआ” (रोमियों ५:२०)। परमेश्वर ने हमें व्यवस्था दी है ताकि उसके द्वारा हमारे पाप और भी अधिक पापमय रूप से प्रगट हों (रोमियों ७:१३)। उसने पापियों को अपनी व्यवस्था दी ताकि वे अपने पापों को गंभीरता से पहचानें। 
जब याकूब के वंशज निर्गमन के बाद जंगल में रहते थे तब परमेश्वर ने इस्राएलियों को व्यवस्था दी। उसने ६१३ प्रकार की आज्ञाएँ दीं। परमेश्वर ने मनुष्य को व्यवस्था क्यों दिया? परमेश्वर ने उन्हें व्यवस्था दी, क्योंकि सबसे पहले वह चाहता था की मनुष्य अपने पाप पहिचाने, क्योंकि वे अपने पापों के बारे में नहीं जानते थे, और दूसरा, क्योंकि वे पाप के साथ पैदा हुए थे। 
व्यवस्था की दस आज्ञाए दिखाती है की पापी मनुष्य कैसे होते है। “तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्‍वर करके न मानना। तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी की प्रतिमा बनाना… तू अपने परमेश्‍वर का नाम व्यर्थ न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्थ ले वह उसको निर्दोष न ठहराएगा। तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखना… तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, जिससे जो देश तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझे देता है उसमें तू बहुत दिन तक रहने पाए। तू खून न करना। तू व्यभिचार न करना। तू चोरी न करना। तू किसी के विरुद्ध झूठी साक्षी न देना। तू किसी के घर का लालच न करना… न किसी की किसी वस्तु का लालच करना” (निर्गमन २०:३-१७)।
परमेश्वर ने हम सभी को व्यवस्था दी, और इसके द्वारा उसने हमें सिखाया कि हमारे हृदय में किस प्रकार का पाप है। परमेश्वर ने हमें सिखाया कि हम परमेश्वर के सामने सम्पूर्ण पापी हैं, और उसने हमें इस सच्चाई से अवगत कराया कि हम पापी हैं क्योंकि हम व्यवस्था का पालन नहीं कर सकते।
क्या कोई मनुष्य संभवतः परमेश्वर की व्यवस्था का पालन कर सकता है? जब परमेश्वर ने इस्राएलियों और अन्यजातियों से कहा कि वे उसके आगे और कोई ईश्वर न बनाए, तो वह उन्हें प्रबुद्ध करना चाहता था कि वे पापी थे, जो शुरू से ही पहली आज्ञा का पालन भी नहीं कर सकते थे। आज्ञाओं के द्वारा, उन्हें पता चला कि वे सृष्टिकर्ता से अधिक अन्य प्राणियों से प्रेम करते थे। उन्होंने महसूस किया कि उन्होंने व्यर्थ में परमेश्वर का नाम लिया, कि उन्होंने ऐसी मूर्तियाँ बनाईं और उनकी सेवा की, जिनसे परमेश्वर घृणा करता था, और जब परमेश्वर ने उन्हें उनके लिए विश्राम दिया तो उन्होंने विश्राम भी नहीं किया। उन्होंने यह भी पाया कि उन्होंने अपने माता-पिता का सम्मान नहीं किया, उन्होंने हत्या की, उन्होंने व्यभिचार किया, और उन्होंने सभी अधर्म के काम किए जो परमेश्वर ने उन्हें करने के लिए मना किया था। संक्षेप में, वे परमेश्वर की व्यवस्था का पालन नहीं कर सकते थे।
 

व्यवस्था उन लोगों पर राज करती है जिनके पाप माफ़ नहीं हुए है

क्या अब आप को समझ में आया कि परमेश्वर ने हमें व्यवस्था क्यों दी? परमेश्वर ने पहले उन्हें व्यवस्था दी, जिनका नया जन्म नहीं हुआ है। “हे भाइयो, क्या तुम नहीं जानते – मैं व्यवस्था के जाननेवालों से कहता हूँ – कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तब तक उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है?” (रोमियों ७:१) परमेश्वर ने उन्हें व्यवस्था दी है, जिन्हें उनके पूर्वजों से पाप विरासत में मिला है और जिन्होंने अब तक नया जन्म प्राप्त नहीं किया है, ताकि वे पाप के कारण शोक करें। एक व्यक्ति पर व्यवस्था का प्रभुत्व तब तक है जब तक वह जीवित है। आदम के प्रत्येक वंशज के हृदय में बारह प्रकार के पाप हैं। परमेश्वर ने उन्हें व्यवस्था दी जिनके दिलों में पाप है और परमेश्वर ने उनसे कहा कि उनके पाप घातक है। इस प्रकार, जब भी हत्या या व्यभिचार के पाप हम में से निकलते हैं और हमें पापी बनाते हैं, तो व्यवस्था हमें बताती है, “परमेश्वर ने तुम से व्यभिचार न करने को कहा था। लेकिन तुमने फिर से व्यभिचार किया। इसलिए तुम पापी हो। परमेश्वर ने तुमसे कहा है कि हत्या मत करो, परन्तु तुमने अपनी घृणा से हत्या की है। तुम एक पापी हो जो हत्या करता है और व्यभिचार करता है। परमेश्वर ने तुमसे कहा था कि चोरी मत करो, लेकिन तुमने फिर से चोरी की। इसलिए तुम चोर हो।" इस तरह, पाप वहाँ अस्तित्व में आता है जहाँ व्यवस्था मौजूद है।
इस कारण पौलुस ने कहा, हे भाइयो, क्या तुम नहीं जानते – मैं व्यवस्था के जाननेवालों से कहता हूँ – कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तब तक उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है?” जिन लोगों के पाप अभी तक माफ़ नहीं हुए हैं, उन पर व्यवस्था का अधिकार है। अन्यजातियों के लिए, जो परमेश्वर की व्यवस्था को नहीं जानते, उनका विवेक उनके लिए व्यवस्था बन जाता है। जब वे बुराई करते हैं, तो उनका विवेक उन्हें बताता है कि उन्होंने पाप किया है। उसी तरह, अविश्‍वासियों का विवेक उनके लिए व्यवस्था के रूप में कार्य करता है, और वे अपने विवेक के द्वारा पापों को पहचानते हैं (रोमियों २:१५)।
आप सृष्टिकर्ता की सेवा क्यों नहीं करते, जबकि आपका विवेक भी आपको बताता है कि सृष्टिकर्ता है? आप परमेश्वर की खोज क्यों नहीं करते? आप क्यों अपने ह्रदय को धोखा देते है? आपको अपने पापों पर शर्म आनी चाहिए और डरना चाहिए कि दूसरे लोग आपके पापों के बारे में पता लगा लेंगे। परन्तु पापी जो परमेश्वर को स्वीकार नहीं करते और अपने हृदयों को धोखा देते हैं, उन्हें कोई शर्म नहीं है।
जब हम पाप करते हैं तो आकाश, पृथ्वी, अन्य लोग, या किसी अन्य प्राणी को देखते हुए हमें अपने आप पर शर्म आती है। परमेश्वर ने मनुष्य को विवेक दिया है और विवेक की व्यवस्था पाप की ओर इशारा करता है। लेकिन उनमें से ज्यादातर परमेश्वर के बिना रहते हैं, परमेश्वर की दृष्टि में पाखंडी की भूमिका निभाते हैं और अपनी मर्जी से जीवन जीते हैं। वे नरक में बंधे हैं। जैसा कि पौलुस उन्हें व्यवस्था पर ध्यान देने की याद दिलाता है, हे भाइयो, क्या तुम नहीं जानते – मैं व्यवस्था के जाननेवालों से कहता हूँ – कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तब तक उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है?” मनुष्य को दो बार जन्म लेना चाहिए—एक बार पापी के रूप में, और फिर धर्मी व्यक्ति के रूप में जीने के लिए परमेश्वर के छुटकारे के अनुग्रह से नया जन्म लेना चाहिए।
पौलुस निम्नलिखित बातों के द्वारा हमें बताता है की प्रभु ने किस प्रकार हमें पापों की व्यवस्था के श्राप से बचाया है: “क्योंकि विवाहिता स्त्री व्यवस्था के अनुसार अपने पति के जीते जी उस से बन्धी है, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह पति की व्यवस्था से छूट गई। इसलिये यदि पति के जीते जी वह किसी दूसरे पुरुष की हो जाए, तो व्यभिचारिणी कहलाएगी, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह उस व्यवस्था से छूट गई, यहाँ तक कि यदि किसी दूसरे पुरुष की हो जाए तौभी व्यभिचारिणी न ठहरेगी” (रोमियों ७:२-३)। 
यदि किसी विवाहित स्त्री का प्रेम संबंध चल रहा हो तो उसे व्यभिचारिणी कहा जाता है। लेकिन यदि उसका पति मर गया है और वह फिर किसी दूसरे आदमी से शादी कर लेती है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। यही तर्क पाप की व्यवस्था से हमारे छुटकारे पर लागू होता है। आदम के सभी वंशजों पर व्यवस्था का अधिकार है जिनके पाप अभी तक माफ़ नहीं हुए हैं। यह उन्हें बताता है, "तुम पापी हो।" इसलिए वे व्यवस्था के अधीन अपने पाप का अंगीकार करते है और कहते हैं, “मुझे नरक में जाना चाहिए। मैं एक पापी हूँ। मेरे पापों की मजदूरी के कारण मेरा नरक में जाना स्वाभाविक है।" परन्तु यदि हम मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के प्रति मरे हुए हो जाते हैं, तो व्यवस्था का हम पर और अधिक अधिकार नहीं रह सकता, क्योंकि हमारा पुराना मनुष्यत्व मसीह में बपतिस्मा लेने के द्वारा उसके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया था। 
 

हमारा पुराना मनुष्यत्व मर चुका है

हमारे परमेश्वर ने हमारे पुराने पतियों की देखभाल की और उन्होंने हमें उनसे विवाह करने के लिए सक्षम बनाया। “वैसे ही हे मेरे भाइयो, तुम भी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के लिये मरे हुए बन गए, कि उस दूसरे के हो जाओ, जो मरे हुओं में से जी उठा : ताकि हम परमेश्‍वर के लिये फल लाएँ” (रोमियों ७:४)। परमेश्वर ने उन सभी मनुष्यों को व्यवस्था दी, जो अपने पूर्वज आदम के कारण पाप के साथ पैदा हुए थे, ताकि आज्ञा के द्वारा पाप और भी अधिक प्रकट हो सके। उसने उन्हें परमेश्वर के न्याय के अधीन रखा था, परन्तु परमेश्वर उन्हें मसीह की देह के द्वारा बचाया। यीशु मसीह हमारे स्थान पर मरा। क्या परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार नरक में जाना हमारे लिए उचित नहीं है? सही बात है। हालाँकि, प्रभु जगत में आया, यरदन नदी में अपने बपतिस्मा के द्वारा हमारे सभी पापों को ले लिया, हमारे स्थान पर व्यवस्था के क्रोध के कारण क्रूस पर चढ़ाया गया, न्याय किया गया और शाप दिया गया। केवल इसी के द्वारा ही अब हम इस पर विश्वास करके उद्धार पा सकते हैं और नया जन्म प्राप्त कर सकते हैं।
जिनका नया जन्म नहीं हुआ उन्हें नरक में जाना ही होगा। उन्हें यीशु पर विश्वास करना चाहिए और उद्धार पाना चाहिए। हमें एक बार यीशु मसीह के साथ मरना चाहिए। यदि हमारा पुराना मनुष्यत्व एक बार नहीं मरता हैं, तो हम नई सृष्टि नहीं बन सकते और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। यदि यीशु में हमारे संयुक्त विश्वास के द्वारा व्यवस्था के अनुसार हमारे पुराने मनुष्यत्व का न्याय नहीं किया गया है, तो हमें न्याय किया जाना चाहिए और नरक में भेजा जाना चाहिए। वे सभी जिनका नया जन्म नहीं हुआ है, उन्हें नरक में जाना चाहिए। 
अविश्वासी अच्छी तरह जीते हैं, एक अच्छा जीवन प्रदान करने वाली हर चीज का आनंद लेते हैं, लेकिन वे अपने अनंत दंड की परवाह नहीं करते हैं। इस पृथ्वी पर रहते हुए सभी मनुष्यों को प्रभु यीशु द्वारा पापों की माफ़ी प्राप्त करनी चाहिए। प्रत्येक पुराने मनुष्यत्व को विश्वास के द्वारा यीशु के साथ एक बार मरना है क्योंकि हम इस दुनिया से जाने के बाद फिर से जन्म नहीं ले सकते हैं। हमें एक बार मरना चाहिए और यीशु मसीह में हमारे विश्वास के द्वारा हमारे पापों से मुक्त होना चाहिए। किसके द्वारा? यीशु मसीह की देहर के द्वारा। कैसे? यह विश्वास करके कि यीशु इस जगत में आया और हमारे सभी पापों को उठा लिया। क्या अप मरे हुए है? क्या कोई है जो अभी तक मरा नहीं है? आप सोच सकते हैं, "मैं कैसे मर सकता हूँ? यदि मैं मर गया होता तो अब कैसे ज़िंदा हूँ?” यह रहस्य है; यह वह रहस्य है जिसे कोई भी धर्म कभी नहीं सुलझा सकता।
केवल नया जन्म लेने वाला व्यक्ति ही कह सकता है कि यीशु के साथ एकता में उसका पुराना मनुष्यत्व पहले ही मर चुका हैं। पापी जब नया जन्म पाए हुए व्यक्ति के द्वारा परमेश्वर के वचन को सुनता है केवल तभी वह नया जन्म प्राप्त कर सकता है और उसका पुराना मनुष्यत्व मर सकता है। और इसके द्वारा वे परमेश्वर के सेवक बन सकते हैं। सभी मनुष्यों को नया जन्म पाए हुए संतों से परमेश्वर के वचन को सुनना चाहिए। जब आप उनकी शिक्षाओं की उपेक्षा करते हैं तो आप नया जन्म प्राप्त नहीं कर सकते। यहाँ तक कि पौलुस भी मसीह के बिना नया जन्म नहीं ले सकता था, भले ही फिर उसने गमलीएल से परमेश्वर का वचन सीखा था, जो उस समय के सबसे प्रमुख व्यवस्था के शिक्षकों में से एक था। हम कितने आभारी हैं! जब हम विश्वास के द्वारा यीशु मसीह की देह के साथ मर जाए तब हम यीशु मसीह में विश्वास करके परमेश्वर के लिए धार्मिकता के फल को ला सकते हैं, जो मृतकों में से फिर से जी उठा है। तब हम पवित्र आत्मा के नौ प्रकार के फलों को ला सकते हैं।
 

पापों की अभिलाषाए मृत्यु का फल उत्पन्न करने के लिए हमारे अंगों में काम करती थी

“क्योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापों की अभिलाषाएँ जो व्यवस्था के द्वारा थीं, मृत्यु का फल उत्पन्न करने के लिये हमारे अंगों में काम करती थीं” (रोमियों ७:५)। "जब हम शारीरिक थे" का अर्थ है "हमारे नए जन्म से पहले।" जब हमारे पास यीशु मसीह की देह के द्वारा विश्वास नहीं था, तब हमारे अंगों में मृत्यु तक पाप करने का जूनून था। उस समय हमारे अंगों में पापी वासनाएँ लगातार काम कर रही थीं। हमारे हृदय में बारह प्रकार के पाप होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इसका मतलब है कि हमारे ह्रदय में बारह तरह के पाप हैं। आज, उदाहरण के लिए, व्यभिचार का पाप अन्दर से निकल सकता है और हृदय को उत्तेजित कर सकता है। तब हृदय सिर को आज्ञा देता है, "व्यभिचार अपनी जगह से निकलता है, और यह मुझे व्यभिचार करने के लिए कहता है।" फिर, सिर जवाब देता है, "ठीक है। मैं इसे कार्य में लाने के लिए हाथ और पैर को आज्ञा दूंगा। सुनो, हाथ और पैर, जो चाहो करो। जल्दी करो!" सिर अपने अंगों को उस स्थान पर जाने की आज्ञा देता है जहां देह व्यभिचार करती है। फिर, देह जाती है और सिर के आदेश के अनुसार करती है। इसी तरह जब हत्या का पाप अन्दर से निकल आता है तो वह हृदय को उकसाता है और हृदय अपने सिर को किसी पर क्रोधित कर देता है। फिर, सिर शरीर को इसके लिए तैयार होने का आदेश देता है। पाप हमारे अंगों में इस तरह काम करता है।
यही कारण है कि हमें अपने पापों की माफ़ी प्राप्त करनी चाहिए। यदि हमारे पास पाप की माफ़ी नहीं है, तो हम जैसा हृदय आदेश देता है वैसा ही करते हैं, हालाँकि यह वो नहीं है जो हम करना चाहते हैं। सभी को सच्चे सुसमाचार के द्वारा नया जन्म प्राप्त करना चाहिए। जब कोई व्यक्ति नया जन्म प्राप्त करता है तो वह सम्पूर्ण बन जाता है, ठीक वैसे जैसे कि एक कीड़ा एक सिकाडा बन जाता है। पादरी वास्तव में प्रभु की सेवा तभी कर सकते हैं जब उनका नया जन्म हुआ हो। नया जन्म लेने से पहले, वे केवल इतना कह सकते हैं, "प्रिय संतों, आपको भलाई करनी चाहिए।" यह बीमारों को खुद को ठीक करने के लिए कहने के समान है। वे अपनी मंडलियों से आग्रह करते हैं कि वे अपने ह्रदय को अपने लिए शुद्ध करें, हालाँकि वे स्वयं नहीं जानते कि उनके पापी हृदयों को कैसे शुद्ध किया जाए।
हमारे अंगों में पापमय जुनून मृत्यु का फल देने के लिए कार्य कर रहा था। क्या कोई व्यक्ति इसलिए पाप करता है क्योंकि वह पाप करना चाहता है? हम पाप के दासों के रूप में पाप करते हैं क्योंकि हम पाप के साथ पैदा हुए थे, क्योंकि हमारे सभी पाप अभी तक मिटाए नहीं गए हैं, और हम अभी तक यीशु मसीह की देह के द्वारा मरे नहीं हैं। हम पाप करते हैं, यद्यपि हम ऐसा करने से घृणा करते हैं। इसलिए सभी को पाप की माफ़ी प्राप्त करनी चाहिए। 
जिन पादरियों के पाप अभी तक मिटाए नहीं गए है उनके लिए बेहतर यही होगा की वे प्रभु की सेवा करना छोड़ दे। उनके लिए बेहतर होगा कि वे सब्जिया बेचे। मैं उन्हें ऐसा करने की सलाह देता हूँ। उनके लिए ऐसा करना बेहतर होगा बजाए उसके कि वे झूठ बोलकर लोगों को धोखा देकर मोटी कमाई करें और खुद के लिए दान लेकर सूअरों की तरह मोटे हो जाए। 
यदि कोई व्यक्ति अपने सभी पापों से उद्धार नहीं पाया है, तो उसके अंगों में पाप और उसका जुनून मृत्यु का फल देने के लिए कार्य कर रहा है। हम अपने सभी पापों के दूर होने के बाद पवित्र आत्मा प्राप्त करके उसके अनुग्रह के तहत प्रभु की सेवा कर सकते हैं। परन्तु हम व्यवस्था के अधीन प्रभु की सेवा नहीं कर सकते। हमारा प्रभु हमें इस प्रकार बताता है, “परन्तु जिस के बन्धन में हम थे उसके लिये मर कर, अब व्यवस्था से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं, वरन् आत्मा की नई रीति पर सेवा करते हैं” (रोमियों ७:६)।
 

व्यवस्था के द्वारा हमारे पाप बहुत ही पापमय ठहरे

“तो हम क्या कहें? क्या व्यवस्था पाप है? कदापि नहीं! वरन् बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहिचानता : व्यवस्था यदि न कहती, कि लालच मत कर तो मैं लालच को न जानता। परन्तु पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझ में सब प्रकार का लालच उत्पन्न किया, क्योंकि बिना व्यवस्था पाप मुर्दा है। मैं तो व्यवस्था बिना पहले जीवित था, परन्तु जब आज्ञा आई, तो पाप जी गया, और मैं मर गया। और वही आज्ञा जो जीवन के लिये थी, मेरे लिये मृत्यु का कारण ठहरी। क्योंकि पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझे बहकाया, और उसी के द्वारा मुझे मार भी डाला। इसलिये व्यवस्था पवित्र है, और आज्ञा भी ठीक और अच्छी है। तो क्या वह जो अच्छी थी, मेरे लिये मृत्यु ठहरी? कदापि नहीं! परन्तु पाप उस अच्छी वस्तु के द्वारा मेरे लिये मृत्यु का उत्पन्न करनेवाला हुआ कि उसका पाप होना प्रगट हो, और आज्ञा के द्वारा पाप बहुत ही पापमय ठहरे” (रोमियों ७:७-१३)। 
पौलुस ने कहा कि परमेश्वर ने हमें व्यवस्था इसलिए दी है कि हमारे पाप बहुत ही पापमय ठहरे। उसने यह भी कहा, “क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके सामने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है” (रोमियों ३:२०)। हालाँकि, अधिकांश मसीही व्यवस्था की धार्मिकता का पालन करते हुए व्यवस्था के अनुसार जीने की कोशिश कर रहे हैं। इतने सारे पादरी, जिनका नया जन्म नहीं हुआ है, उन्हें यकीन है कि लोग व्यवस्था का पालन न करने से बीमार हो गए हैं, और यह कि वे अपनी बीमारी से ठीक हो सकते हैं यदि वे केवल व्यवस्था के द्वारा जीवन जीते हैं। 
क्या हम वास्तव में यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि व्यवस्था की अवज्ञा हमारे सभी रोगों का कारण बनती है? कई मसीही, सेवक और साथ ही उनके अनुयायी सोचते हैं कि चीजें ठीक नहीं चल रही हैं क्योंकि वे परमेश्वर के वचन के अनुसार जीने में असफल रहे थे। वे सोचते हैं कि वे अपने पापों के कारण बीमार हैं। इसलिए वे पाप से डरते हैं। वे रोज रोते हैं। वे बाइबल का एक भाग भी जोड़ते है जो कहता हो की, “हमेशा रोते रहो। निरंतर रोओ। हर बात में रोओ," भले ही बाइबल हमें बताती है, "हमेशा आनन्दित रहो, निरंतर प्रार्थना करो, हर बात में धन्यवाद करो; क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है" (१ थिस्सलुनीकियों ५:१६-१८)। लेकिन झूठे पादरी लोगों को हमेशा रोना सिखाते हैं, निरंतर रोते रहो, मानो इतने रोने से जो झुर्रियाँ उठी है वे उनके विश्वास का संकेत करती हो।
विधि सम्मत विश्वास रखने वालों का दावा है कि रोने वालों का विश्वास अच्छा होता है। झूठे पादरी, जिनका नया जन्म नहीं हुआ है, वे एक ऐसी महिला को डिकन के रूप में नियुक्त करते हैं जो अच्छी तरह रोती है और एक रोने वाले पुरुष मसीह को प्राचीन के रूप में नियुक्त करते है। यदि आपको वास्तव में रोना है तो घर पर रोओ, कलीसिया में मत रोओ। यीशु को सूली पर क्यों चढ़ाया गया? हमें डरपोक बनाने के लिए? बिलकूल नही! यीशु ने हमारे सभी दुखों, शापों, बीमारियों और पीड़ाओं को एक ही बार हमेशा के लिए दूर कर दिया ताकि उनके क्रूस पर चढाने से हम अब और न रोएं और इसके बजाय खुशी से रहें। तो वे क्यों रोते हैं? यदि वे परमेश्वर की नया जन्म पाई हुई कलीसिया में रोने की कोशिश करते हैं तो उन्हें उनके घर वापस भेज दिया जाना चाहिए।
 

जिनका नया जन्म हुआ है और जिनका नया जन्म नहीं हुआ है उन दोनों में क्या अंतर है?

व्यवस्था कभी गलत नहीं होती। व्यवस्था पवित्र है। यह वास्तव में धर्मी है जबकि हम बिल्कुल भी धर्मी नहीं हैं। हम व्यवस्था के विपरीत हैं क्योंकि हम आदम के वंशज के रूप में पाप के साथ पैदा हुए हैं। हम वह करते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए, जबकि हम वह नहीं कर सकते जो हमें करना चाहिए। इसलिए व्यवस्था हमें अत्यधिक पापी बनाती है।
“हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है, परन्तु मैं शारीरिक और पाप के हाथ बिका हुआ हूँ। जो मैं करता हूँ उस को नहीं जानता; क्योंकि जो मैं चाहता हूँ वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है वही करता हूँ। यदि जो मैं नहीं चाहता वही करता हूँ, तो मैं मान लेता हूँ कि व्यवस्था भली है। तो ऐसी दशा में उसका करनेवाला मैं नहीं, वरन् पाप है जो मुझ में बसा हुआ है। क्योंकि मैं जानता हूँ कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती। इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते। क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ। अत: यदि मैं वही करता हूँ जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है। इस प्रकार मैं यह व्यवस्था पाता हूँ कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूँ, तो बुराई मेरे पास आती है। क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्‍वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूँ। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है। मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?” (रोमियों ७:१४-२४)। 
इस भाग से पहले, पौलुस कहता है कि हम सभी को, जिसमें वह खुद भी शामिल है, एक बार व्यवस्था के द्वारा न्याय किया जाना चाहिए। वह कहता है कि केवल वे ही जिन्होंने यीशु मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के सारे क्रोध और न्याय को प्राप्त किया है, परमेश्वर के लिए धार्मिकता का फल ला सकते हैं। वह यह भी कहता है कि उसके अन्दर कोई भी अच्छी वस्तु नहीं है, और जो नया जन्म प्राप्त नहीं करता, वह पाप के अलावा कुछ नहीं करता। और नया जन्म पाया हुआ भी वही करता है। लेकिन दोनों के बीच एक स्पष्ट अंतर है। जो नया जन्म लेते हैं उनके पास देह और आत्मा दोनों होते हैं, इसलिए उनमें दो प्रकार की इच्छाएँ होती हैं। लेकिन जिन्होंने अभी तक नया जन्म नहीं लिया हैं, उनमें केवल देह की वासना है, और वे केवल पाप करना चाहते हैं। इसलिए, वे केवल इस बात से चिंतित हैं कि वे कितनी खूबसूरती से और लगातार पाप करते हैं। यह उनके जीवन का लक्ष्य है, जो उन लोगों के लिए सामान्य है जिनका नया जन्म नहीं हुआ है।
पाप लोगों को पाप करवाता है। रोमियों ७:२० कहता है, “अत: यदि मैं वही करता हूँ जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है।” क्या नया जन्म प्राप्त करनेवालों के ह्रदय में पाप है? नहीं, क्या नया जन्म प्राप्त न करनेवालों के मन में पाप है? हाँ! यदि आपके हृदय में पाप है, तो पाप शरीर में कार्य करता है और यह आपको और भी अधिक पाप करने के लिए प्रेरित करता है। “क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ। अत: यदि मैं वही करता हूँ जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है।” मनुष्य जीवन भर पाप करने के अलावा कुछ नहीं करता, क्योंकि वे पाप के साथ पैदा हुए हैं। 
नया जन्म प्राप्त करनेवाले स्वतः ही आत्मा के फल लाते है। लेकिन जिनका नया जन्म नहीं हुआ, वे ऐसे फल नहीं ला सकते। उन्हें दूसरों पर दया नहीं आती है। उनमें से कुछ लोग अपने बच्चों को भी मार डालते हैं, यदि उनके बच्चे उनकी अवज्ञा करते हैं। उनके ह्रदय से क्रूरताएँ निकलती हैं और जब उनके बच्चे उनकी अवज्ञा करते हैं तो उनके बच्चों को उनके हृदयों में मार डालते हैं। हालाँकि वे वास्तव में अपने बच्चों को नहीं मारते, अपने ह्रदय से वे अनगिनत बार उनकी हत्या करते हैं। 
क्या आप समझ रहे हैं कि मैं यहाँ क्या कहना चाह रहा हूँ? लेकिन धर्मी ऐसा कुछ नहीं कर सकते। वे तर्क-वितर्क में पड़ सकते हैं, लेकिन उनके पास इतना क्रूर ह्रदय नहीं है और न ही होगा, जो दूसरों के लिए इतनी कड़वाहट और क्रोध से भरा होगा। 
इसके बजाय, धर्मी अपने ह्रदय से लोगों पर दया करना चाहते हैं, यहाँ तक कि उन पर भी जिनके साथ वे अपने अलग-अलग विचारों पर बहस करते है। “इस प्रकार मैं यह व्यवस्था पाता हूँ कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूँ, तो बुराई मेरे पास आती है।” मनुष्य अच्छा करना चाहता है क्योंकि वह परमेश्वर के स्वरुप में बनाया गया है। लेकिन जबकि उनके पाप अभी भी उनके ह्रदय में मौजूद हैं इसलिए उनमें से केवल बुरी बातें ही निकलती हैं। 
मसीही जिनका नया जन्म नहीं हुआ हैं वे एक दूसरे से बात करते हुए विलाप हैं की, "मैं वास्तव में अच्छा करना चाहता हूँ, लेकिन मैं नहीं कर सकता। मुझे नहीं पता कि मैं क्यों नहीं कर सकता।" उन्हें पता होना चाहिए कि वे ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि वे पापी हैं जिन्होंने अभी तक उद्धार नहीं पाया है। वे अच्छा नहीं कर सकते क्योंकि उनके ह्रदय में पाप है। नया जन्म लेने वालों में आत्मा की अभिलाषाएं और शरीर की अभिलाषाएं होती हैं, परन्तु जो नया जन्म नहीं लेते, उनके पास आत्मा नहीं होती। यह मुख्य अंतर है जो नया जन्म पाए हुए लोगों को नया जन्म न पाए हुए लोगों से अलग करता है।
पौलुस अध्याय ७ में अपने नया जन्म न लेने की स्थिति के बारे में बात करता है। रोमियों ७:१ और आगे की व्यवस्था की व्याख्या करते हुए, वह कहता है कि जिस अच्छे काम की वह इच्छा करता है, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता है। दूसरे शब्दों में, पौलुस को पाप करने की कोई इच्छा नहीं थी और वह केवल अच्छा करना चाहता था, और फिर भी वह वही कर सकता था जो वह नहीं करना चाहता था, जबकि वास्तव में उसके लिए अपने ह्रदय में जो करना चाहता था उसे करना असंभव था। “मई कैसा अभागा मनुष्यहूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छूदायेगा?” वह अपने इस अभागे भाग्य पर शोक करता है, लेकिन यह कहते हुए तुरंत प्रभु की स्तुति करता है, "हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ!" 
क्या आप इसका मतलब समझते हैं? हम, नया जन्म प्राप्त किए हुए, उसकी बातों को समझ सकते हैं, लेकिन जिन्होंने नया जन्म नहीं प्राप्त किया, वे इसे कभी नहीं समझ सकते हैं। एक कीड़ा जो कभी सिकाडा नहीं बना, वह कभी नहीं समझ सकता कि सिकाडा क्या कहता है। "बहुत खूब! मैं दिन में कई घंटे पेड़ पर गाने गाता हूँ। हवा कितनी ठंडी है!" एक कीड़ा जमीन से जवाब दे सकता है, “सचमुच? हवा क्या है?" यह कभी नहीं समझ सकता कि सिकाडा क्या कह रहा है, लेकिन सिकाडा जानता है कि हवा क्या है।
क्योंकि पौलुस ने नया जन्म प्राप्त किया था इसलिए वह ठीक-ठीक समझा सकता था कि जो नया जन्म लेते हैं और जो नहीं लेते हैं, उनके बीच क्या अंतर है। वह कहता है कि जिस उद्धारकर्ता ने उसे बचाया वह यीशु मसीह है। क्या यीशु मसीह ने हमें बचाया है? बेशक उसने बचाया है! “इसलिये मैं आप बुद्धि से तो परमेश्‍वर की व्यवस्था का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूँ।” 
जिनके पाप दूर हो गए हैं, वे अपने हृदय से परमेश्वर की व्यवस्था की सेवा करते हैं। तो फिर, वे देह के साथ क्या सेवा करते हैं? वे अपनी देह से पाप की व्यवस्था की सेवा करते हैं। देह को पाप करना पसंद है क्योंकि यह बिल्कुल भी नहीं बदलती है। देह शारीरिक बातों की इच्छा करती है और आत्मा आत्मा की बातों की इच्छा करता है। इसलिए जिनके पाप दूर हो गए हैं वे प्रभु का अनुसरण कर सकते हैं और करना चाहते हैं क्योंकि पवित्र आत्मा अब उनमें वास करता है। लेकिन जिनके पाप दूर नहीं हुए हैं वे अपने मन और देह दोनों के साथ पाप का अनुसरण करते हैं। नया जन्म प्राप्त करनेवाला व्यक्ति, जिनके पाप अब दूर हो गए हैं, उनकी देह भले ही पाप का अनुसरण करती हो लेकिन वे अपने मन से परमेश्वर का अनुसरण करते है।
 

क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया

आइए अभी के लिए रोमियों ८:१ पर चलते हैं। जिन लोगों के पाप यीशु के उद्धार में विश्वास करने से दूर हो गए हैं, उन्हें अब परमेश्वर की व्यवस्था द्वारा न्याय नहीं दिया जाता है भले ही फिर वे पापियों के रूप में पैदा हुए थे। “अत: अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं। [क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार चलते हैं।] क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया” (रोमियों ८:१-२)। 
सो अब जो मसीह यीशु में हैं उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं। कोई दण्ड नहीं है! जो नया जन्म लेते हैं उनके अन्दर कोई पाप नहीं है, और उन पर कोई दण्ड नहीं हो सकता। उनके ह्रदय में कोई पाप नहीं है, क्योंकि मसीह यीशु में जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने उन्हें पाप और मृत्यु की व्यवस्था से मुक्त कर दिया है। हमारे प्रभु जीवन का मूल हैं। वह परमेश्वर का मेम्ना बन गया, पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ धारण किया गया, और यरदन नदी में यूहन्ना द्वारा अपने बपतिस्मा के माध्यम से जगत के सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया। हमारे स्थान पर न्याय किया गया, वह हमारे लिए क्रूस पर चढ़ाया गया। इसके द्वारा, उसने हमारे सभी पापों को पूरी तरह से दूर कर दिया। 
तो क्या हमें अपने पापों के कारण फिर से मरना होगा? क्या हमारे पास न्याय होने के लिए कुछ है? यदि हमारे सभी पाप यीशु मसीह के बपतिस्मा के द्वारा पारित किए गए थे, तो क्या हमारे भीतर पाप है? बिलकूल नही! हमारा न्याय होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि प्रभु ने यरदन नदी में बपतिस्मा लिया था, हमारे स्थान पर क्रूस पर चढ़ाया गया था, और सभी पापियों को बचाने के लिए तीसरे दिन मृतकों में से जी उठा था।
परमेश्वर का उद्धार हमें उसके न्याय से मुक्त करता है जबकि व्यवस्था क्रोध लाती है। “क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया।” पाप करने वालों पर परमेश्वर का क्रोध प्रगट होता है। परमेश्वर उन्हें नर्क में भेजता है। परन्तु प्रभु ने हमारे हृदयों से सब पापों को दूर करके हमें पाप और मृत्यु की व्यवस्था से मुक्त किया है। उसने उन विश्वासियों को, जो यीशु मसीह में हैं, पाप से मुक्त किया है। क्या आपके पाप दूर हुए हैं? 
“क्योंकि जो काम व्यवस्था शरीर के कारण दुर्बल होकर न कर सकी, उस को परमेश्‍वर ने किया, अर्थात् अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में और पापबलि होने के लिये भेजकर, शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी। इसलिये कि व्यवस्था की विधि हममें जो शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार चलते हैं, पूरी की जाए” (रोमियों ८:३-४)। 
परमेश्वर ने हमें बचाने के लिए अपने इकलौते पुत्र को भेजा। परमेश्वर ने हमारे पापों के कारण अपने पुत्र को पापी देह की समानता में भेजकर हमें अपनी धार्मिकता दी। यीशु को देह की समानता में संसार में भेजा गया था। "शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी।" परमेश्वर ने हमारे सभी पापों को यीशु पर पारित कर दिया ताकि व्यवस्था की धार्मिक आवश्यकता हम में पूरी हो, जो शरीर के अनुसार नहीं, वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं। हमारे हृदय से यीशु मसीह में हमारे विश्वास के द्वारा हमारे पाप दूर हो जाते हैं। हमारे पाप तब धुल जाते हैं जब हम उस बात स्वीकार करते हैं जो यीशु मसीह ने हमारे लिए की है।
 

वे जो आत्मा के अनुसार जीते है और वे जो देह के अनुसार

मसीही दो प्रकार के होते हैं: वे जो अपने विचारों का अनुसरण करते हैं और वे जो सत्य के वचन का अनुसरण करते हैं। दुसरे वाले को बचाया जा सकता है और धर्मी बन सकता है, जबकि पहला वाला नाश हो जाएगा।
“क्योंकि शारीरिक व्यक्‍ति शरीर की बातों पर मन लगाते हैं; परन्तु आध्यात्मिक आत्मा की बातों पर मन लगाते हैं। शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है” (रोमियों ८:५-६)। जो लोग सोचते है की परमेश्वर पर विश्वास करना ही व्यवस्था का पालन करना है वे कभी भी सिध्ध नहीं हो सकते। “क्योंकि शारीरिक व्यक्ति शरीर की बातों पर मन लगाते है।” 
केवल बाहरी मनुष्यत्व को शुद्ध करना ही "शरीर की बातें" है। जो लोग ऐसा करते हैं, वे बाइबल को फिर से शुरू करते हैं और हर रविवार को अपने पवित्र चाल-चलन के साथ कलीसिया जाते हैं, जब की वे अपनी पत्नियों से लड़ते हैं और घर में दुष्ट होते हैं। वे रविवार को फरिश्ते बन जाते हैं। 
“नमस्ते, आप कैसे है?” 
“आप से दुबारा मिलके अच्छा लगा।” 
जब भी उनका पादरी पवित्र आवाज और दयालु तरीके से प्रचार करता है, तब वे कई बार "आमीन" बोलते हैं। आराधना के बाद वे धीरे से कलीसिया से बाहर आ जाते हैं, लेकिन जैसे ही कलीसिया उनकी दृष्टि से गायब हो जाती है, वे अलग बन जाते हैं। 
“परमेश्वर के वचन ने मुझसे क्या कहा था? मुझे याद नहीं है; आओ थोडा जाते है और शराब पिटे है?” 
वे कलीसिया में स्वर्गदूत हैं, परन्तु जब वे कलीसिया से दूर होते हैं तो वे कुछ ही समय में शारीरिक प्राणी बन जाते हैं। 
इसलिए, पापियों को निम्नलिखित की तरह परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए: "परमेश्वर, कृपया मुझ अभागे मनुष्य को बचाइए। यदि आप मुझे नहीं बचायेंगे तो मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाउँगा और नरक में जाऊँगा। परन्तु यदि आप मेरे मरने तक के मेरे सारे पापों को धो दे, तो मैं विश्वास के द्वारा स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता हूँ।" उन्हें पूरी तरह से परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए।
प्रत्येक विश्वासी अपने पापों से छूटकारा प्राप्त कर सकता है और एक आत्मिक जीवन जी सकता है जब वह परमेश्वर के वचन का पालन करता है। “क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्‍वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्‍वर की व्यवस्था के अधीन है और न हो सकता है; और जो शारीरिक दशा में हैं, वे परमेश्‍वर को प्रसन्न नहीं कर सकते” (रोमियों ८:७-८)। जिनके पाप अभी तक दूर नहीं हुए हैं और जो अभी भी देह में हैं, वे कभी भी परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते हैं।
“परन्तु जब कि परमेश्‍वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं” (रोमियों ८:९)। लोग इन भागो से भ्रमित होते हैं क्योंकि पौलुस गहन आत्मिक शब्दों में बोलता है। जो लोग नया जन्म प्राप्त नहीं करते वे रोमियों अध्याय ७ और ८ से भ्रमित होते हैं। वे बाइबल के इस भाग को कभी नहीं समझ सकते हैं। लेकिन हम, नया जन्म पाए हुए, देह में नहीं हैं और केवल देह के लिए नहीं जीते हैं। 
ऊपर दिए गए भाग में पौलुस जो कहता है उसे ध्यान से पढ़ें। क्या पवित्र आत्मा आप में वास करता है? यदि किसी के पास मसीह की आत्मा नहीं है, तो वह व्यक्ति परमेश्वर का जन नहीं है। यदि परमेश्वर का नहीं है, तो इसका अर्थ है कि यह व्यक्ति शैतान का है और पापी है जो नरक में बंधा हुआ है। 
“यदि मसीह तुम में है, तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु आत्मा धर्म के कारण जीवित है। यदि उसी का आत्मा जिसने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया, तुम में बसा हुआ है; तो जिसने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी नश्‍वर देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है, जिलाएगा” (रोमियों ८:१०-११)। आमीन। 
हमारे प्रभु को पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ धारण किया गया था, देह में जगत में भेजा गया था, और हमारे सभी पापों को दूर किया। प्रभु उन विश्वासियों के ह्रदय में आ गए हैं जो पापों के छुटकारे में विश्वास करते हैं, और हर एक के ह्रदय में बैठे हैं। पवित्र आत्मा ह्रदय में आता है और साबित करता है कि हमारे प्रभु यीशु ने हमारे सभी पापों को हिम के नाई श्वेत कर दिया है। जब यीशु फिर से जगत में आयेगा तो परमेश्वर हमारी देह को भी जीवन देगा। “जिसने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी नश्‍वर देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है, जिलाएगा।”
 

आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान है

हमारे नया जन्म लेने के बाद हमें परमेश्वर पर अपने विश्वास और पवित्र आत्मा के द्वारा जीवन जीना चाहिए। “इसलिये हे भाइयो, हम शरीर के कर्जदार नहीं कि शरीर के अनुसार दिन काटें, क्योंकि यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे तो मरोगे, यदि आत्मा से देह की क्रियाओं को मारोगे तो जीवित रहोगे। इसलिये कि जितने लोग परमेश्‍वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्‍वर के पुत्र हैं। क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली कि फिर भयभीत हो, परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिससे हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं। आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्‍वर की सन्तान हैं; और यदि सन्तान हैं तो वारिस भी, वरन् परमेश्‍वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, कि जब हम उसके साथ दु:ख उठाएँ तो उसके साथ महिमा भी पाएँ” (रोमियों ८:१२-१७)। हम पुकारते है, “अब्बा, पिता,” क्योंकि हमने अंगीकार की आत्मा को ग्रहण किया है, न की दासत्व और भय की आत्मा।
"आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं।" सबसे पहले, पवित्र आत्मा गवाही देता है कि हमने परमेश्वर के ठोस वचन के माध्यम से पापों की माफ़ी प्राप्त की है। दूसरी गवाही यह है कि हममें कोई पाप नहीं है। आत्मा ने गवाही दी है कि हमने उद्धार पाया हैं। पवित्र आत्मा ने ऐसा उनके हृदयों में किया है जिनके पाप मिटाए गए हैं। "कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं" (रोमियों ३:१०)। सच है, लेकिन यह परमेश्वर ने हमें बचाया उसके पहले की बात है। उस भाग के नीचे, यह लिखा है कि हम "उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, स्वतंत्र रूप से धर्मी ठहराए गए हैं" (रोमियों ३:२४)। यह भी लिखा है कि आत्मा स्वयं इस बात की गवाही देता है कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं। आत्मा हमारे पास तब आता है जब हम अपने ह्रदय में वो स्वीकार करते हैं जो परमेश्वर ने हमारे लिए किया है, लेकिन यदि हम इस पर विश्वास नहीं करते हैं, तो आत्मा हमारे भीतर कहीं नहीं है। यदि हम वह प्राप्त करते हैं जो परमेश्वर ने हमारे लिए हमारे हृदय में किया है, तो आत्मा गवाही देता है, "तू धर्मी है। तुम मेरी संतान हो। तुम न्यायी हो। तुम मेरी प्रजा हो।" “यदि सन्तान हैं तो वारिस भी, वरन् परमेश्‍वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, कि जब हम उसके साथ दु:ख उठाएँ तो उसके साथ महिमा भी पाएँ।” परमेश्वर की संतानों के लिए प्रभु के साथ कष्ट सहना, साथ ही उसके साथ महिमा पाना पूरी तरह से उचित है। जिनके पास पवित्र आत्मा है, वे आत्मा के नेतृत्व में, स्वर्ग के राज्य में उनके प्रवेश पर अपनी आशा को टिकाते हैं।
 

हम इस वर्त्तमान समय के दुःख और क्लेश के बजाए हजार वर्ष के राज्य और स्वर्ग के राज्य की आशा में जीते है

आइये हम रोमियों ८:१८-२५ को देखे। “क्योंकि मैं समझता हूँ कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं। क्योंकि सृष्‍टि बड़ी आशाभरी दृष्‍टि से परमेश्‍वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है। क्योंकि सृष्‍टि अपनी इच्छा से नहीं पर अधीन करनेवाले की ओर से, व्यर्थता के अधीन इस आशा से की गई कि सृष्‍टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्‍त करेगी। क्योंकि हम जानते हैं कि सारी सृष्‍टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है; और केवल वही नहीं पर हम भी जिनके पास आत्मा का पहला फल है, आप ही अपने में कराहते हैं; और लेपालक होने की, अर्थात् अपनी देह के छुटकारे की बाट जोहते हैं। इस आशा के द्वारा हमारा उद्धार हुआ है; परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है, जब वह देखने में आए तो फिर आशा कहाँ रही? क्योंकि जिस वस्तु को कोई देख रहा है उसकी आशा क्या करेगा? परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उसकी आशा रखते हैं, तो धीरज से उसकी बाट जोहते भी हैं।”
हम आत्मा के पहले फल हैं। हम जिन्होंने नया जन्म प्राप्त किया है, वे पुनरुत्थान के पहले फल हैं। हम पहले पुनरुत्थान में भाग लेंगे। यीशु मसीह पुनरुत्थान का पहला फल है और हम वही हैं जो उससे जुड़े रहते हैं। जो मसीह के हैं वे पहले पुनरुत्थान में भाग लेते हैं; उसके बाद फिर अंत होगा। अधर्मी लोग न्याय प्राप्त करने के लिए दूसरे पुनरुत्थान में भाग लेंगे। इसलिए पौलुस कहता है, “क्योंकि मैं समझता हूँ कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं।” यहाँ महिमा के द्वारा, वह हजार साल के राज्य और स्वर्ग के राज्य की बात कर रहा है। जब वह धन्य समय आएगा तो हम सब बदल जाएंगे। परमेश्वर की सन्तान पूरी तरह मरे हुओं में से जी उठेगी और उनमें से प्रत्येक को प्रभु का अनन्त जीवन प्राप्त होगा। देह वास्तव में मरे हुओं में से फिर से जी उठेगा (हमारी आत्मा पहले से ही मृतकों में से फिर से जी उठी है।) परमेश्वर सभी चीजों का नया करेगा और धर्मी लोग एक हजार साल तक राजाओं के रूप में खुशी से रहेंगे। 
ब्रह्मांड के सभी जीव परमेश्वर की संतान के प्रकट होने की प्रतीक्षा करते हैं। जिस प्रकार हम बदलेंगे वैसे ही सृष्टि भी बदल जाएगी। हजार साल के राज्य के समय में दर्द, पीड़ा या मृत्यु जैसी कोई चीज नहीं होगी। लेकिन अभी हम कराहते हैं। क्यों? क्योंकि देह अभी भी कमजोर है। हमारी आत्मा किस लिए कराहती है? वे हमारी देह के छुटकारे के लिए कराहती हैं। 
“और केवल वही नहीं पर हम भी जिनके पास आत्मा का पहला फल है, आप ही अपने में कराहते हैं; और लेपालक होने की, अर्थात् अपनी देह के छुटकारे की बाट जोहते हैं। इस आशा के द्वारा हमारा उद्धार हुआ है; परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है, जब वह देखने में आए तो फिर आशा कहाँ रही? क्योंकि जिस वस्तु को कोई देख रहा है उसकी आशा क्या करेगा? परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उसकी आशा रखते हैं, तो धीरज से उसकी बाट जोहते भी हैं” (रोमियों ८:२३-२५)।
हम स्वीकार होने की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं, क्योंकि हम इस आशा में बचाए गए हैं। हम, जिनके पाप पूरी तरह से दूर हो गए हैं, हजार साल के राज्य और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे। हम नाश नहीं होंगे, भले ही यदि संसार अचानक से खत्म हो जाए। हमारे प्रभु दुनिया के अंत में फिर से इस दुनिया में आएंगे। वह सब कुछ नया करेगा, और धर्मियों की देह को नए सिरे से जीवित करेगा। वह उन्हें एक हजार साल तक राज्य करने देगा। 
इस संसार का अंत पापियों के लिए निराशा है, परन्तु धर्मियों के लिए नई आशा है। पौलुस को इसकी आशा थी। क्या आप कराहते हैं, और क्या आप अपनी देह के छुटकारे की प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या आत्मा भी इंतज़ार कर रही है? हम यीशु मसीह के पुनरुत्थित शरीर की तरह आत्मिक शरीरों में बदल जाएंगे, और न तो दर्द और न ही कमजोरी महसूस करेंगे। 
 

पवित्र आत्मा धर्मी जन को विश्वास करने के लिए मदद करता है

पवित्र आत्मा हमें विश्वास करने के लिए मदद करता है। क्या हम जो देखते है उसकी आशा करते है? नहीं, हम उसकी आशा करते है जिसे हमने अभी तक देखा भी नहीं। “इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है : क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए, परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर, जो बयान से बाहर हैं, हमारे लिये विनती करता है; और मनों का जाँचनेवाला जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है? क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार विनती करता है” (रोमियों ८:२६-२७)। 
आत्मा वास्तव में हमारे भीतर क्या चाहता है? वह हमें क्या करने में मदद करता है? आप क्या उम्मीद करते हैं? हम "नए आकाश और नई पृथ्वी" (२ पतरस ३:१३), स्वर्ग के राज्य की आशा करते हैं। हम अब इस नाशवान दुनिया में नहीं रहना चाहते। हम थके हुए हैं और इस प्रकार अपने प्रभु के दिन की आशा करते हैं। हम बिना किसी पाप, बिना किसी बीमारी, बिना किसी दुष्ट आत्मा के अनंतकाल के लिए जीना चाहते हैं; हम वहाँ प्रभु यीशु के साथ और एक दूसरे के साथ पूर्ण सहभागिता में आनंद, शांति, प्रेम और नम्रता के साथ खुशी से रहना चाहते हैं। 
इसलिए, आत्मा कराहता है और हमारे लिए विनती करता है जो नए आकाश और नई पृथ्वी की प्रतीक्षा कर रहा है। सच कहूँ तो, हम, धर्मी के लिए, इस दुनिया में कोई आनंद नहीं हैं, सिवाय इसके कि, शायद, अपने साथी परमेश्वर के सेवकों के साथ कभी-कभार फुटबॉल खेलना। हम पृथ्वी पर रहते हैं क्योंकि हम सुसमाचार का प्रचार करने में रुचि रखते हैं। लेकिन इस महान आदेश के सिवा, धर्मी लोगों के पास इस दुनिया में रहने का कोई कारण नहीं होता।
 

परमेश्वर कहता है कि नया जन्म पाए हुए लोग जो परमेश्वर से प्रेम रखते है उनके लिए सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है

आइए हम रोमियों ८:२८-३० पढ़े। “हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्‍वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती हैं; अर्थात् उन्हीं के लिये जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं। क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है उन्हें पहले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों, ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे। फिर जिन्हें उसने पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी; और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है; और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है।” 
रोमियों 8:28 में पौलुस कहता है, “हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्‍वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती हैं; अर्थात् उन्हीं के लिये जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।” यह भाग बहुत ही महत्वपूर्ण है। बहुत से लोग सोचते हैं, "मैं पैदा क्यों हुआ? परमेश्वर को मुझे ऐसी जगह रखना चाहिए था जहाँ शैतान नहीं था, और उसे मुझे शुरू से ही स्वर्ग के राज्य में रहने देना चाहिए था। उसने मुझे ऐसा क्यों बनाया?” कुछ लोग जो बुरी परिस्थितियों में पैदा हुए है, वे पहले अपने माता-पिता के खिलाफ, और फिर परमेश्वर के खिलाफ द्वेष रखते हैं। "आपने मुझे इतनी पीड़ा के साथ जन्म लेने के लिए क्यों बनाया?"
यह भाग हमें ऐसी पूछताछ का सही उत्तर प्रदान करता है। हम परमेश्वर की सृष्टि के रूप में पैदा हुए थे। क्या यह सही है? हम उनकी सृष्टि के हैं। परमेश्वर ने हमें अपने स्वरूप में परमेश्वर की समानता के अनुसार बनाया, लेकिन हम अभी भी उसकी सृष्टि हैं। हमें इस दुनिया में भेजने के पीछे परमेश्वर का एक उद्देश्य है। पवित्रशास्त्र कहता है, “हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्‍वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती हैं; अर्थात् उन्हीं के लिये जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।” हमारे पूर्वज आदम और हव्वा जिन्हेँ शैतान ने बहकाया था, उनसे विरासत में मिले मूल पाप के कारण हम पापियों के रूप में पैदा हुए और पीड़ित हुए। परन्तु परमेश्वर ने यीशु मसीह को हमारे लिये इसलिये भेजा कि विश्वास के द्वारा हमें उसकी सन्तान बनायें। उसके हमें बनाने का यही उद्देश्य है। वह हमें हजार साल के राज्य और स्वर्ग के राज्य में यीशु मसीह और पिता परमेश्वर के साथ, हमें ईश्वरों का सुखी और अनन्त जीवन देने के लिए भी तैयार है।
“हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्‍वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती हैं; अर्थात् उन्हीं के लिये जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।” जब हमारे पापों को दूर किया गया तब हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा पूरी हुई। क्या यह सही नहीं है? क्या हमें खुश नहीं होना चाहिए कि हम इस दुनिया में पैदा हुए हैं? जब हम उस महिमा के बारे में सोचते हैं जिसका हम भविष्य में आनंद लेंगे, तब हम जन्म लेने की वजह से खुश होते है। लेकिन अधिकांश लोग खुश नहीं हैं, और इसका कारण यह है कि वे परमेश्वर के प्रेम को अस्वीकार करते हैं। 
क्या आप जानते हैं कि पाप और रोग क्यों होते हैं, और दुष्ट लोगों के लिए सब कुछ अच्छा क्यों होता है, जबकि जो लोग अच्छा करने की कोशिश करते हैं, वे केवल पीड़ित होते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि जब हम पीड़ित होते हैं केवल तभी हम परमेश्वर को खोजेंगे, उनसे मिलेंगे और अपने पापों की माफ़ी प्राप्त करके उनकी संतान बनेंगे। परमेश्वर ने दुष्ट लोगों को अभी भी दुनिया में रहने दिया ताकि सभी चीजें एक साथ उन लोगों की भलाई के लिए काम करें जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं। 
ऐसा मत सोचिए की: “मुझे नहीं पता कि परमेश्वर ने मुझे ऐसा क्यों बनाया। परमेश्वर ने मुझे इतने गरीब परिवार में जन्म क्यों दिया और पीड़ित क्यों होने दिया?” परमेश्वर हमें इस संसार में शैतान और व्यवस्था के अधीन जन्म इसलिए दिया, ताकि हम उसकी सन्तान बन सकें और अपने प्रभु के साथ उसके राज्य में राजा के रूप में अनन्तकाल तक जीवित रह सके। सभी चीजों ने मिलकर भलाई ही उत्पन्न की और परमेश्वर ने हमें अपनी संतान बनाया। हमें इस तरह से बनाने में परमेश्वर का यही उद्देश्य है। हमारे पास परमेश्वर के खिलाफ शिकायत करने और बड़बड़ाने के लिए कुछ भी नहीं है। "मुझे ऐसा क्यों बनाया गया? मैं ऐसा क्यों हूँ?" इन कठिनाई के द्वारा परमेश्वर की भली इच्छा पूरी होती है। 
अपने कष्टों के बारे में शिकायत न करें। अपने जीवन के बारे में अब ऐसे निराशावादी गीत मत गाओ। “और जैसे मनुष्यों के लिये एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्‍त है” (इब्रानियों ९:२७)। व्यक्ति के जन्म और न्याय के बीच परमेश्वर के उद्धार का अनुग्रह है। हम यीशु मसीह में विश्वास करते हैं, हमारे सभी पाप परमेश्वर के अनुग्रह से दूर हो गए हैं, और हम अनंतकाल तक हजार साल के राज्य और स्वर्ग के राज्य में राज्य करेंगे। हमें "सारी सृष्टि का स्वामी" कहा जाना चाहिए। क्या अब आप समझ गए हैं कि परमेश्वर ने आपको कष्ट क्यों दिया? उसने हमें परमेश्वर के पास वापस आने के द्वारा हमें उसकी संतान बनने की आशीष देने के लिए कष्ट और कठिनाइयाँ दीं।
 

परमेश्वर ने हमें अपने पुत्र के स्वरुप में ठहराया है

हमें पापों की माफ़ी प्राप्त करने, परमेश्वर के न्याय से बचने और धर्मी बनने में थोड़ा भी समय नहीं लगता है। हमें एक बार और हमेशा के लिए धर्मी बन गए है, और हम विश्वास के द्वारा तुरंत परमेश्वर की सन्तान बन सकते हैं। परमेश्वर का उद्धार हमारे अपने पवित्रीकरण की लंबी अवधि की प्रक्रिया का परिणाम नहीं है। परमेश्वर ने हमें एक बार और हमेशा के लिए बचाया और हमें एक ही बार में धर्मी बना दिया।
“क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है उन्हें पहले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों, ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे। फिर जिन्हें उसने पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी; और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है; और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है” (रोमियों ८:२९-३०)। 
बहुत से लोग "केल्विनवाद के पाँच सिद्धांत" को इन भाग पर आधारित करते हैं। लेकिन वे गलत हैं। यहाँ, पौलुस कहता है, “क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है उन्हें पहले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों।” परमेश्वर ने हमें यीशु में उसकी सन्तान होने के लिए ठहराया है। परमेश्वर ने हमें अपनी योजना के तहत इस संसार में जन्म लेने के लिए ठहराया है। उसने हमें बनाया। किसके स्वरुप के अनुसार होने के लिए? परमेश्वर के स्वरुप, उसके पुत्र के स्वरुप के अनुरूप होने के लिए। 
परमेश्वर ने हमें जन्म लेने की अनुमति दी, और अपनी इच्छा के अच्छे आनंद के अनुसार हमें यीशु मसीह के माध्यम से अपनी संतान के रूप में अपनाने के लिए तैयार किया। उसने अपने पुत्र के स्वरुप में हमें होने के द्वारा अपनी संतान बनाने के लिए अपने पुत्र को भेजने का वायदा किया। जब हम पापी थे, तब परमेश्वर ने हमें यीशु मसीह के द्वारा आदम के वंशज के रूप में चुना। "हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए, मेरे पास आओ,मैं तुम्हें विश्राम दूँगा" (मत्ती ११:२८)। उसने हमारे सभी पापों को दूर करने के बाद हमें बुलाया। उसने हमें विश्वास के द्वारा धर्मी बनाने के लिए बुलाया है।
 

परमेश्वर ने हमें धर्मी बनाया और हमें महिमा दी

परमेश्वर ने पापियों को बुलाया और एक ही बार और हमेशा के लिए उन्हें धर्मी बना दिया। हमें यीशु मसीह हमारे उद्धारकर्ता पर विश्वास करने के द्वारा एक ही बार में हमेशा के लिए धर्मी बनने के लिए बनाया गया है, न कि धीरे धीरे पवित्र होने के द्वारा, जैसा कि धर्मशास्त्री जोर देते हैं। परमेश्वर पापियों को बुलाता है और उन्हें धर्मी बनाता है - यही कारण है कि वह पापियों को बुलाता है।
"जिन्हेँ उस ने बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया।" वे जो परमेश्वर के द्वारा बुलाए गए हैं और जो यीशु मसीह में विश्वास करते हैं वे धर्मी बन गए है। आदम के वंशजों के रूप में हमारे पास निश्चित रूप से पहले पाप थे, लेकिन जब हमने इस सच्चाई में विश्वास किया की यीशु ने वास्तव में उन पापों को ले लिया है तब हमारे सभी पाप दूर हो गए। तो क्या अब आप पाप करते हो या नहीं? बिलकूल नही! अब हममें कोई पाप नहीं बचा। "जिन्हेँ उस ने बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया।"
धर्मी वे हैं जो परमेश्वर की सन्तान बने। यह सच नहीं है कि हम धीरे धीरे करके परमेश्वर की संतान बनाते है। इसके बजाय, हम तुरंत उसके छुटकारे के द्वारा परमेश्वर की सन्तान के रूप में महिमा पाते हैं।
“और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है।” परमेश्वर ने हमें अपनी संतान बनाया। मैं यह नहीं समझ सकता कि इतने सारे मसीही तथाकथित "उद्धार के लिए पाँच कदम" पर क्यों विश्वास करते हैं। उद्धार और परमेश्वर की संतान बनना एक ही बार और हमेशा के लिए किया जाता है। हमारी देह के पुनरुत्थान में भाग लेने में हमें कुछ समय लगता है, क्योंकि हमें अपने प्रभु के दूसरे आगमन की प्रतीक्षा करनी है, लेकिन पाप से मुक्ति पलक झपकते ही प्राप्त हो जाती है। जब हम अपने पापों की माफ़ी के वचन के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं, जो हमें बुलानेवाले हमारे परमेश्वर ने हमें दिया है, और हमें बचाने के लिए उसने जो किया है उसे स्वीकार करते हैं, तो हम तुरंत छुटकारे को प्राप्त कर सकते हैं। "धन्यवाद प्रभु। हाल्लेलूयाह! आमीन! मैं बच गया क्योंकि आपने मुझे बचाया। यदि आप मेरे सारे पापों को न धोते तो मैं छुटकारा प्राप्त नहीं कर पाता। धन्यवाद, मेरे प्रभु! हाल्लेलूयाह!" इस प्रकार हमारे पाप धुल जाते हैं।
छुटकारे के लिए न तो हमारे कर्मों की आवश्यकता होती है और न ही हमारे समय की। हमारे छुटकारे में हमारे कर्मों की कोई भूमिका नहीं है, यहां तक कि ०.१% भी नहीं। केल्विनवादियों का कहना है कि छुटकारा पाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए धीरे धीरे धर्मी होना आवश्यक है। जिस प्रकार एक कीड़ा एक सेकंड में 100 मीटर नहीं दौड़ सकता, चाहे वह कितनी भी कोशिश कर ले, लोग अपने स्वयं के प्रयास से धर्मी नहीं बन सकते, चाहे वे कितने भी अच्छे हों, या फिर चाहे वे व्यवस्था का पालन करने की कितनी भी कोशिश कर लें। एक कीड़ा अभी भी एक कीड़ा है, चाहे वह कितना भी खुद को धोले और कितना ही महँगे सौंदर्य प्रसाधनों से मेकअप करे। इसी तरह, जब तक पापियों के मन में पाप है, तब तक वे पापी ही हैं चाहे वे कितने भी अच्छे क्यों न दिखते हो। 
एक पापी धीरे धीरे पवित्र होकर सम्पूर्ण धर्मी कैसे बन सकता है? क्या समय बीतने के साथ देह बेहतर होती जाती है? नहीं, देह अधर्मी है और जीतनी पुरानी होती जाती है उतनी ही ज्यादा बुरी बनती जाती है। परन्तु बाइबल कहती है, “फिर जिन्हें उसने पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी; और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है; और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है”। यह भाग एक ही वाक्य में बताता है की परमेश्वर के अनुग्रह से क्या होता है; यह नहीं कहता है की छूटकारा और न्याय धीरे धीरे प्राप्त होता है। प्रभु में विश्वास रखने से एक ही बार और हमेशा के लिए धर्मी बन जाता है, न की धीरे धीरे। 
कई धर्मशास्त्री, यह नहीं जानते हुए कि वे क्या कर रहे हैं, अनुचित सिद्धांतों पर जोर देते हैं और लोगों को नरक में भेजते हैं। परमेश्वर ने हमें छुटकारे का वादा किया और हमें यीशु मसीह के माध्यम से बुलाया, हमें धर्मी बनाया, और उन लोगों की महिमा की जो उनकी बुलाहट का प्रत्युत्तर देते है। "परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं" (यूहन्ना १:१२)। क्या परमेश्वर ने हमारी महिमा की? बेशक! क्या अच्छे कर्मो और परीक्षाओं के द्वारा हमारी महिमा हो सकती है? क्या हमें धर्मी बनने के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है? बिलकूल नही! हम पहले ही धर्मी बन चुके हैं।
 

परमेश्वर के प्रेम से हमें कोई भी अलग नहीं कर सकता

यदि परमेश्वर हमारी ओर है तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? कोई नहीं। “अत: हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि परमेश्‍वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? जिसने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया, वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्यों न देगा? परमेश्‍वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्‍वर ही है जो उनको धर्मी ठहरानेवाला है। फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह ही है जो मर गया वरन् मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्‍वर के दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है। कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार? जैसा लिखा है, “तेरे लिये हम दिन भर घात किए जाते हैं; हम वध होनेवाली भेड़ों के समान गिने गए हैं। परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिसने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं। क्योंकि मैं निश्‍चय जानता हूँ कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएँ, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य, न ऊँचाई, न गहराई, और न कोई और सृष्‍टि हमें परमेश्‍वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी” (रोमियों ८:३१-३९)।
हमें परमेश्वर के प्रेम से कोई अलग नहीं कर सकता। कोई भी हम धर्मियों को फिर से पापी नहीं बना सकता। जो लोग परमेश्वर की संतान बन गए हैं और जो हजार साल के राज्य और स्वर्ग के राज्य में रहेंगे, उन्हें कोई नहीं रोक सकता। क्या क्लेश हमें पापी बना सकता हैं? क्या संकट हमें पापी बना सकता है? क्या सताव हमें पापी बना सकता है? क्या अकाल, नंगापन, संकट, या तलवार हमें फिर से पापी बना सकते हैं? “जिसने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया, वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्यों न देगा?” परमेश्वर हमें स्वर्ग का राज्य देता है। वह हमें सब कुछ स्वतंत्र रूप से देता है क्योंकि उसने हमें बचाने के लिए अपने एकलौते पुत्र को भी नहीं रख छोड़ा। जब परमेश्वर हमारे लिए सबसे बड़ा बलिदान देने को तैयार था, तो वह हमें अपनी संतान क्यों नहीं बनाएगा?
 

वह छूटकारा जो परमेश्वर हमें प्रदान करता है…

परमेश्वर कहता हैं कि हमारे पापों से छुटकारा पाने के लिए, हमें सबसे पहले यह स्वीकार करना होगा कि यीशु मसीह को पिता परमेश्वर की इच्छा के अनुसार देह में भेजा गया था। दूसरा, हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि यरदन नदी में अपने बपतिस्मा के द्वारा यीशु ने हमारे सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया। तीसरा, हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि यीशु को हमारे लिए क्रूस पर चढ़ाया गया था, और अंत में, वह पुनरुत्थित हुआ। यदि हम उपरोक्त सभी आवश्यकताओं में से प्रत्येक पर विश्वास नहीं करते हैं तो हम उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते है। 
जो लोग यह विश्वास नहीं करते कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है, या वह परमेश्वर और सृष्टिकर्ता है, उन्हें परमेश्वर के उद्धार से बाहर रखा गया है। यदि कोई व्यक्ति यीशु मसीह की दिव्यता को नकारता है, तो वह शैतान की संतान बन जाता है। जो लोग इस तथ्य से इनकार करते हैं कि यीशु ने यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के द्वारा बपतिस्मा लेने के द्वारा हमारे सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया था उन्हें भी बचाया नहीं जा सकता है। यीशु उनका उद्धारकर्ता नहीं बन सकता। भले ही वे अपने विचारों से यीशु पर विश्वास करते हो लेकिन उन्हें उनके हृदयों में उद्धार प्राप्त नहीं हो सकता। वे यीशु को जानने के बावजूद भी नरक में जाते हैं। यीशु मसीह हमारे स्थान पर मरा क्योंकि उसने अपने बपतिस्मा के द्वारा हमारे सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया था। यीशु हमारे पापों के कारण मरा, न कि उसके पापों के कारण। फिर वह मरे हुओं में से जी उठा कि उन सब को जो विश्वास करते हैं उन्हें धर्मी ठहराए और उन्हें पुनरुत्थान में जिलाए।
 

हमने उसके बपतिस्मा पर विश्वास के द्वारा उद्धार प्राप्त किया है

मैंने अब तक अध्याय ७ में अध्याय ८ के संबंध में उपदेश दिया है। अध्याय ७ कहता है कि जिसके पास पाप है वह भलाई नहीं कर सकता। परन्तु अध्याय ८ कहता है कि अब जो मसीह यीशु में हैं उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं, और यीशु मसीह में हमारा विश्वास हमें पापरहित बनाता है। हम कमजोर हैं और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार नहीं जी सकते हैं, इसलिए परमेश्वर पिता ने यीशु मसीह को हमारे उद्धारकर्ता के रूप में भेजा, और जब हम पापी थे तब उन्होंने अपने बपतिस्मा के साथ हमारे सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया। हम अपने सभी पापों से बचाए गए हैं और यीशु मसीह के द्वारा धर्मी बनाए गए हैं। यह वो सत्य है जो पौलुस अध्याय ७ और ८ के द्वारा सिखाता है। 
"अत: अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं, जो शरीर के अनुसार नहीं परन्तु आत्मा के अनुसार चलते हैं।" अब हमारे पास कोई पाप नहीं है। क्या आप यीशु मसीह में हैं? क्या आप यिश्हू मसीह ने आपके लिए जो किया उसका स्वीकार करते हैं? जैसे पौलुस को उसके पापों से छुड़ाया गया था, वैसे ही हमारे सभी पापों को भी यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसके लहू में हमारे विश्वास के द्वारा दूर किया गया है। हमें यीशु के बपतिस्मा, लहू और पुनरुत्थान में विश्वास करने से छुटकारा मिला है। यदि कोई व्यक्ति अहंकार से यीशु मसीह के बपतिस्मा में विश्वास करने से इनकार करता है, और यदि वह व्यक्ति इस बात पर जोर देता है कि यीशु ने बपतिस्मा केवल हमें उसकी विनम्रता दिखाने के लिए लिया था, तो परमेश्वर उस व्यक्ति को नरक में भेज देगा। परमेश्वर के वचन के आगे अभिमानी मत बनिए। पादरी और सेवक यीशु के बपतिस्मा को कैसे नज़रअंदाज कर सकते हैं जब स्वयं पौलुस ने इसके बारे में इतना कुछ कहा? वे विश्वास के सबसे महान पिताओं में से एक, पौलुस के विश्वास की उपेक्षा कैसे कर सकते थे? वे परमेश्वर के सेवक, जिसे स्वयं परमेश्वर ने प्रेरित बनाया, उसकी शिक्षाओं की उपेक्षा कैसे कर सकते हैं?
यदि हम यीशु मसीह के बारे में प्रचार करना चाहते हैं, तो हमें वैसे ही प्रचार करना चाहिए जैसा बाइबल में लिखा है, और हमें बाइबल के अनुसार विश्वास करना चाहिए। प्रभु हमें कहता है, “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। तुम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा" (यूहन्ना ८:३१-३२)। आपने और मैंने पौलुस की तरह यीशु के बपतिस्मा में विश्वास किया है। 
आपके पाप यीशु मसीह के शरीर पर कब पारित हुए थे? जब उन्होंने यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से बपतिस्मा लिया था तब हमारे सभी पाप यीशु मसीह पर पारित किए गए थे। यीशु ने यूहन्ना से कहा, “अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है।” यहाँ, "इसी रीती से" ग्रीक में "हू`-तोस गार" है, जिसका अर्थ है "इसी रीती से," "सबसे उचित," या "इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।" यह शब्द दिखाता है कि यीशु ने यूहन्ना से लिए हुए बपतिस्मा के माध्यम से मनुष्यजाति के पापों को अपरिवर्तनीय रूप से अपने ऊपर ले लिया। बपतिस्मा का अर्थ है "धोना।" हमारे हृदयों के सभी पापों को साफ़ करने के लिए, हमारे पापों को यीशु मसीह पर पारित किया जाना चाहिए।
यीशु मसीह ने हमारे पापों को अपने ऊपर ले लिया, हमारे स्थान पर क्रूस पर चढ़ाया गया, और हमारे साथ एकता में दफनाया गया। पौलुस ने इस प्रकार घोषित किया, "मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ" (गलातियों २:२०)। हमें क्रूस पर पर चढ़ाया जा सकता है, जबकि वास्तव में यह यीशु ही थे जिन्हें क्रूस पर मौत के घाट उतार दिया गया था? हम मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाए गए हैं क्योंकि हम मानते हैं कि यीशु ने हमारे सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया और इन पापों के लिए क्रूस पर चढ़ाया गया। 
मैं प्रभु की स्तुति करता हूँ, जिसने मुझे मेरे सभी पापों से बचाया है। हम साहसपूर्वक सुसमाचार का प्रचार कर सकते हैं क्योंकि यीशु ने हमें धर्मी बनाया है। मैं अपने प्रभु को धन्यवाद देता हूँ कि उसने हमें अपने सारे पापों से बचाया जिनकी देह इतनी कमजोर है और जो परमेश्वर की महिमा से रहित है।