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उपदेश

विषय ९ : रोमियों (रोमियों की पत्री किताब पर टिप्पणी)

[अध्याय 8-4] भौतिक मन का होना मृत्यु है, लेकिन आत्मिक मन का होना जीवन और शांति है (रोमियों ८:४-११)

( रोमियों ८:४-११ ) 
“इसलिये कि व्यवस्था की विधि हममें जो शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार चलते हैं, पूरी की जाए। क्योंकि शारीरिक व्यक्‍ति शरीर की बातों पर मन लगाते हैं; परन्तु आध्यात्मिक आत्मा की बातों पर मन लगाते हैं। शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है; क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्‍वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्‍वर की व्यवस्था के अधीन है और न हो सकता है; और जो शारीरिक दशा में हैं, वे परमेश्‍वर को प्रसन्न नहीं कर सकते। परन्तु जब कि परमेश्‍वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं। यदि मसीह तुम में है, तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु आत्मा धर्म के कारण जीवित है। यदि उसी का आत्मा जिसने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया, तुम में बसा हुआ है; तो जिसने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी नश्‍वर देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है, जिलाएगा।”  
 

साहित्य के माध्यम से किए जाने पर विदेशी मिशन प्रभावी होता है, जो हम अभी कर रहे हैं। जब हम परमेश्वर के वचन को पढ़ते हैं तो हम धन्य होते हैं और हमारा विश्वास बढ़ता हैं क्योंकि हम उसके वचन में विश्वास करते हैं।
लोग पिछली पांच शताब्दियों से पीड़ित हैं, ऐसे झूठे सिद्धांतों द्वारा उन्हें धोखा दिया गया है जैसे कि क्रमिक पवित्रता का सिद्धांत, धार्मिकता का सिद्धांत, और अन्य सिध्धांत जो दावा करते हैं कि पश्चाताप की प्रार्थनाओं के माध्यम से उद्धार संभव है। 
रोमियों ८:३ हमें बताता है कि व्यवस्था शरीर के कारण दुर्बल होकर जो न कर सकी वह कार्य परमेश्वर ने किया। परमेश्वर ने अपने पुत्र को पापमय शरीर की समानता में भेजा और उसके शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी, और हमें हमारे सभी पापों से छुड़ाने के लिए उसका न्याय किया।
आज, हम परमेश्वर के सत्य के लिए रोमियों ८:३-४ देखेंगे। रोमियों ८:३-४ कहता है, “क्योंकि जो काम व्यवस्था शरीर के कारण दुर्बल होकर न कर सकी, उस को परमेश्‍वर ने किया, अर्थात् अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में और पापबलि होने के लिये भेजकर, शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी। इसलिये कि व्यवस्था की विधि हममें जो शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार चलते हैं, पूरी की जाए।” अवश्य ही प्रश्न यह है की: इसका मतलब क्या है?
 


पहला, शरीर के अनुसार जीवन न जीने का क्या मतलब है?


इसका अर्थ है की देह के लाभ की खोज नहीं करनी है। यह आत्मा की इच्छाओं और देह की अभिलाषाओं के बीच भेद करना और उन लोगों से दूर रहना है जो परमेश्वर के वचन का पालन नहीं करते हैं। वचन ५ कहता है, "क्योंकि शारीरिक व्यक्ति शरीर की बातों पर मन लगाते है; परन्तु आध्यात्मिक आत्मा की बातों पर मन लगाते है।" “शरीर की बातों” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ यह है कि ऐसे लोग भी हैं जो कलीसिया जाने के बावजूद भी अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं।
सीधे शब्दों में कहें तो, मसीहीयों को जगत में लाभ कमाने वाले व्यवसायों के उद्देश्य से कलीसिया नहीं जाना चाहिए। यह देह के अनुसार जीवन जीना है। ये लोग नियमित और विश्वासयोग्य ग्राहकों को प्राप्त करने की उम्मीद में, अपने व्यवसायों को पेश करने और उनका विज्ञापन करने के लिए बड़ी मंडलियों वाली कलीसिया में जाते हैं। वे कलीसिया जाते हैं और अपनी देह के लिए यीशु में विश्वास करते हैं।
अन्य लोग भी हैं। जो लोग मसीही समुदाय के भीतर सांप्रदायिकता सिखाते हैं, और जो अपने अनुयायियों को केवल भौतिक आशीषों का अनुसरण करना सिखाते हैं, वह वे लोग हैं जो देह के अनुसार जीते हैं और जिन्होंने अपना मन देह की चीजों पर लगाया है।
हम अपने मसीही समुदाय में सांप्रदायिकता का आसानी से सामना कर सकते हैं। फिर ये संप्रदायवादी कौन हैं? ये वे लोग हैं जो अपने संप्रदाय की श्रेष्ठता में अपने गलत विश्वास से खुद को धोखा देते हैं। वे कहते हैं कि फलाने ने उनके पंथ की स्थापना की, कि उनके पास फलाने-फलाने धर्मशास्त्री हैं, कि वे इतने बड़े हैं और दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं और उनकी यह कड़ी परंपरा है, इत्यादि। ये सब अभिमान ही हैं जो इन लोगों के घमंड को बनाते हैं और अपने स्वयं के विश्वास का निर्माण करते हैं। इस संसार में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके पास ऐसा विश्वास है।
संप्रदायवादी अपने स्वयं की देह के लाभ के लिए यीशु में विश्वास करते हैं। जो लोग शरीर के अनुसार जीवन जीते हैं वे अभी भी अपनी कलीसिया पर अभिमान करते हैं और उनके बड़ी कलीसिया में भाग लेने के द्वारा भौतिक रूप से आशीष पाने पर अभिमान करते है। कुछ कलीसिया में ऐसे सामान्य सामुदायिक लक्ष्य हैं जैसे "अपनी पत्नी से प्रेम रखो।" लेकिन "शरीर के अनुसार जीने वालों" का यही अर्थ है। क्या कलीसियाओं को अपनी निगाहें अपनी पत्नियों को अपने लक्ष्य के रूप में प्रेम करने पर लगानी चाहिए? उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। तो क्या मैं यह कह रहा हूँ कि हमें अपनी पत्नियों से प्रेम नहीं करना चाहिए? बिलकूल नही! लेकिन ऐसे लक्ष्य, चाहे कितने ही अच्छे और आकर्षक हों, हमारी कलीसिया के मूल उद्देश्य नहीं हो सकते। 
जो शरीर के अनुसार जीते हैं, वे शरीर की बातों पर मन लगाते हैं। आज बहुत से सेवकों ने स्वयं को ऐसे लोगों में बदल लिया है जो केवल अपनी कलीसिया की सदस्यता, दान और भवन की संख्या को बढ़ाने में रुचि रखते हैं—ये अब उनके विश्वास का मुख्य उद्देश्य बन गए हैं। एक बड़ी, लम्बी और चौड़ी कलीसिया बनाना उनका सबसे बड़ा लक्ष्य बन गया है। यहाँ तक कि यदि वे बाहरी रूप से कहते हैं कि अधिक अनुयायियों को इकट्ठा करना उन्हें स्वर्ग की ओर ले जाना है और ऐसे अन्य बहाने पेश करते है, तो उनका अंतिम उद्देश्य कलीसिया के बड़े भवनों के निर्माण के लिए अधिक धन जुटाना है।
अपनी कलीसियाओं को देह की बातों का अनुसरण करवाने के लिए, उन्हें अपने अनुयायियों को धार्मिक कट्टरपंथियों में बदलना पड़ा। कुछ पादरियों ने अपनी मण्डली को कट्टर, आधे-पागल, भ्रमित और पूरी तरह से पथभ्रष्ट लोगों में बदलने की अपनी क्षमता पर अपनी सफलता का निर्माण किया है। 
 


वे जो परमेश्वर की आत्मा के अनुसार जीवन जीते है


हालाँकि, कुछ ऐसे लोग भी हैं जो वास्तव में मसीहीयों के बीच परमेश्वर की आत्मा के अनुसार जीते हैं। जो लोग आत्मा के अनुसार जीते हैं, वे परमेश्वर के वचन के अनुसार जीते हैं, अपने विचारों को नकारते हुए पवित्रशास्त्र में जो लिखा है उस पर विश्वास करते हैं, जैसा परमेश्वर चाहते हैं वैसा ही करते हैं, और पानी और आत्मा के सुसमाचार का प्रचार करते हैं।
बाइबल कहती है कि जो लोग आत्मा के अनुसार जीते हैं, वे आत्मा की बातों पर अपना मन लगाते हैं। यदि हमें परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा हमारे सभी पापों के लिए माफ़ी मिली है, तो हमें बिना सोचे-समझे नहीं जीना चाहिए, लेकिन आत्मा के कार्य पर मनन करते हुए जीवन जीना चाहिए। जो आत्मा के द्वारा जीते हैं वे आत्मिक रूप से सोचते हैं और विश्वास के द्वारा आत्मा की बातें करने को निकल पड़ते हैं। धन्य हैं वे जो आत्मा की बातों का अनुसरण करते हैं। ये वे लोग हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, दूसरों को जगत के पापों से बचाते हैं, और विश्वास से जीते हैं। हमें हमारे पापों के लिए माफ़ किया गया है और इसलिए हमें आत्मा की बातों पर ध्यान देना चाहिए और उसके अनुसार जीना चाहिए।
हमारे जीवन का लक्ष्य आत्मा के कार्य को पूरा करना है, जो कि पानी और आत्मा के सुसमाचार का प्रचार करना है। हमें अपना मन आत्मा की बातों पर लगाना चाहिए। आपने अपना मन आत्मा की बातों पर कितना लगाया है? हम आत्मिक युद्ध कर रहे हैं और हमें परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करके और उसका प्रचार करके आत्मा की बातों का अभ्यास करना चाहिए। भले ही हम कमजोर और कमियों से भरे हों लेकिन हमें हमेशा यह सोचना चाहिए कि प्रभु को क्या पसंद है और परमेश्वर के कार्य पर अपना मन लगाकर आत्मा के कार्य को चुनौती देनी चाहिए। जब कोई विशेष कार्य किया जाता है, तो हमें और अधिक कार्य के लिए फिर से प्रयास करना चाहिए जो प्रभु को प्रसन्न करे।
अब हम साहित्य के माध्यम से पूरी दुनिया को पानी और आत्मा के सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं। लगभग 200 से 300 व्यक्ति प्रतिदिन हमारी वेबसाइट पर जाकर हमारी मुफ्त मसीही पुस्तकें और ई-पुस्तकें प्राप्त करते हैं। दुनिया के हर देश में हर किसी के लिए पानी और आत्मा के सुसमाचार के प्रचार के लिए विश्वास के साथ प्रयास करके, हम परमेश्वर कलीसिया में आपके साथ सुसमाचार की सेवा कर रहे हैं। यदि हम आत्मा की बातों पर अपना मन नहीं लगाते, तो हमें आत्मा के ये फल नहीं प्राप्त होंगे। हमें आत्मा की बातों पर मन लगाकर एक-एक करके उसके कार्य को पूरा करना चाहिए। तब हम अपने आत्मिक दूल्हे, यीशु मसीह को नीतिवचन अध्याय ३१ में पाई गई भली पत्नी की तरह खुश करेंगे। 
वचन ८ कहता है, “जो शारीरिक दशा में है, वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते।” यह उन लोगों को दर्शाता है जिन्होंने पापों की माफ़ी को प्राप्त नहीं किया है। “क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्‍वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्‍वर की व्यवस्था के अधीन है और न हो सकता है; और जो शारीरिक दशा में हैं, वे परमेश्‍वर को प्रसन्न नहीं कर सकते” (रोमियों ८:७-८)। उसी प्रकार से, जिनके अन्दर आत्मा नहीं है वे ना तो परमेश्वर का कार्य कर सकते है और ना ही उसे प्रसन्न कर सकते है। 
पापी स्वयं को परमेश्वर की व्यवस्था के अधीन नहीं करते हैं। न ही वे परमेश्वर की धार्मिकता के अधीन हैं। वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे समझ नहीं सकते कि परमेश्वर की इच्छा क्या है, क्योंकि पवित्र आत्मा उनमें वास नहीं करता। पानी और आत्मा के सुसमाचार के द्वारा मनुष्यजाति के सभी पापों को माफ़ करने से प्रभु को प्रसन्नता होती है। वह पापियों की स्तुति और आराधना से प्रसन्न नहीं होता है। 
जब पापी परमेश्वर स्तुति करते हैं तो परमेश्वर प्रसन्न नहीं होते हैं। पापी कितना ही उसकी स्तुति करने के लिए हाथ उठाएँ और आराधना में आँसू बहाएँ, वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते। पापी मसीही भावनाओं के नशे में धुत होकर परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। वे प्रभु को प्रसन्न नहीं कर सकते। जो पापी हैं वे प्रभु को प्रसन्न नहीं कर सकते क्योंकि वे पापी हैं। पापी कितनी भी कोशिश कर लें, पापी कभी भी प्रभु को प्रसन्न नहीं कर सकते। यह मायने नहीं रखता कि वे प्रभु को प्रसन्न करने के लिए कितने इच्छुक हैं; लेकिन मायने यह रखता है की उनके लिए परमेश्वर को प्रसन्न करना असंभव है। 
यदि लोग बड़ी कलीसिया बनाए तो क्या परमेश्वर खुश होंगे? वह खुश नहीं होगा। यदि एक बड़ी कलीसिया भवन में जाना जरूरी है, तो ही इतनी बड़ी कलीसिया बनानी चाहिए। लेकिन सिर्फ इसे बनाने के लिए एक बड़ी कलीसिया बनाना परमेश्वर को बिल्कुल भी खुश नहीं करता है। 
उदाहरण के लिए, मेरे शहर की एक कलीसिया ने हाल ही में एक नई कलीसिया भवन बनाने के लिए US$3 मिलियन से अधिक खर्च किए, तब भी जब पिछली इमारत इसके ठीक बगल में खड़ी थी और अभी भी उत्कृष्ट आकार और आवास में थी। जब मण्डली की संख्या अधिकतम 200-300 ही थी, तो क्या वास्तव में ऐसी कलीसिया बनाना आवश्यक था? परमेश्वर की कलीसिया ईंटों से नहीं बनती है। परमेश्वर हमें बताता है कि हम परमेश्वर के मंदिर हैं और परमेश्वर की आत्मा धर्मी लोगों के ह्रदय में बसती है। 
एक आवश्यकता के रूप में एक बड़ी कलीसिया बनाना सही है, लेकिन क्या बड़ी कलीसिया का निर्माण अपने आप में परमेश्वर की महिमा करता है? नहीं वह नहीं करता। क्या कलीसिया में अधिक लोगों को इकट्ठा करना परमेश्वर को अधिक महिमा देता है? नहीं, केवल ऐसा करने से आप परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते। जो देह में हैं वे प्रभु को प्रसन्न नहीं कर सकते। 
कभी-कभी, धर्मी लोग भी ऐसे होते हैं जो केवल शरीर के लाभ के पीछे भागते हैं। ये लोग प्रभु को प्रसन्न नहीं कर सकते। धर्मी लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो पापियों के समान अपने शरीर के विचारों से बंधे हुए हैं। ये लोग परमेश्वर को खुश नहीं कर सकते। वे, वास्तव में, कलीसिया में विश्वास के स्वस्थ जीवन का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं होते, इसलिए शिकायत करते है, परमेश्वर की कलीसिया से नाराज होते है और अंततः कलीसिया छोड़ देते हैं।
इसलिए, हम जो धर्मी हैं, उन्हें धर्मी और परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन व्यतीत करना चाहिए, न कि ऐसा जीवन जो केवल देह के लाभ की तलाश में है। हमें परमेश्वर के कार्यों और उसकी धार्मिकता के बारे में सोचना चाहिए, उसकी धार्मिकता के कार्यों की सेवा करनी चाहिए, और अपने शरीर, दिमाग और संपत्ति का उपयोग परमेश्वर की धार्मिकता के उपकरणों के रूप में करना चाहिए। हमें ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए जो परमेश्वर को प्रसन्न करे।
 


वे जो मसीह की आत्मा में है


आइए हम एकसाथ मिलकर वचन ९ पढ़े। “परन्तु जब कि परमेश्‍वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं।”
पौलुस के अनुसार, इस भाग का अर्थ है कि यदि हम पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करते हैं - दूसरे शब्दों में, यदि हम परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं - और अपने पापों से छूटकारा पाते है, तो हम अब शरीर में नहीं लेकिन आत्मा में हैं। यदि किसी के हृदय में आत्मा है, तो यह व्यक्ति मसीह में है, और यदि किसी के पास मसीह की आत्मा नहीं है, तो यह व्यक्ति मसीह का नहीं है।
इसलिए हम शरीर में नहीं लेकिन आत्मा में हैं। हम, जो आत्मा में हैं और पानी और आत्मा के सुसमाचार के द्वारा पाप से छुड़ाए गए हैं, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम धार्मिकता के सिपाही हैं, जो मसीह में धर्मी के रूप में परमेश्वर को प्रसन्न करने की क्षमता रखते हैं। हमें अपने शरीर की कमजोरियों से निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि इस विश्वास के साथ परमेश्वर को प्रसन्न करना चाहिए कि, भले ही हम कमजोर हैं फिर भी हम परमेश्वर के हैं और हम उनमें हैं, और इसलिए हम उनके कार्यकर्ता हैं।
हमें पता होना चाहिए कि हमारे लिए यह अनुमति नहीं है कि हम नया जन्म प्राप्त करने के बाद केवल अपनी देह के लाभ का अनुसरण करें। हमें यह जानकर जीवन जीना चाहिए कि धर्मी केवल परमेश्वर की धार्मिकता के लिए जीवन जीने के लिए नियत है। वचन १० हमें दिखाता है कि मसीहियों को कैसे जीना चाहिए: “यदि मसीह तुम में है, तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु आत्मा धर्म के कारण जीवित है।”
सच में, हम, हमारे शरीर, हमारे पापों के कारण यीशु मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाए गए और मर गए। हम परमेश्वर के भले कार्य के द्वारा हमारे सभी पापों से बचाए गए हैं। इस धार्मिकता के कारण, धर्मियों की आत्माओं को इस प्रकार अनन्त जीवन प्राप्त होता है। अनन्त जीवन! हमें पता होना चाहिए कि जिन्हें धर्मी ठहराया गया है, उन्हें अब केवल अपनी देह के लिए जीने की अनुमति नहीं है। जो लोग नया जन्म प्राप्त करने के बाद परमेश्वर की धार्मिकता के लिए नहीं जीते हैं, वे उनकी आशीष से दूर हैं। 
हमें परमेश्वर की धार्मिकता के लिए जीने के लिए नियत किया गया था। हो सकता है कि आप में से कुछ लोगों ने, पानी और आत्मा से नया जन्म लेने के बाद, हताशा में सोचा हो, "बाइबल कहती है कि जो शरीर में हैं वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते। मैं शायद उनमे से एक हूँ।" पर ये सच नहीं है। परमेश्वर ने हमें उसकी धार्मिकता के सैनिकों के रूप में जीने के लिए पुनर्जीवित किया है।
कुछ लोग ऐसा शायद इसलिए सोचते हैं क्योंकि उन्होंने बाइबल को गलत समझा है। भले ही कुछ धर्मी सोचते हैं कि वे परमेश्वर के अनुसार नहीं जी सकते क्योंकि उनके शरीर शारीरिक जीवन जीते है और क्योंकि वे कमजोर हैं लेकिन सच्चाई यह है कि जिनके पास पवित्र आत्मा है वे परमेश्वर के कार्य करने से आनन्दित होते हैं। परमेश्वर के कार्य करने से वे खुश, प्रसन्न और अच्छे बनते हैं। दूसरी ओर, परमेश्वर के कार्यों को किए बिना का जीवन एक बिना प्रेरणा और बिना उद्देश्य का जीवन है, एक शापित जीवन है। 
जब हम पानी और आत्मा के सुसमाचार को स्वीकार कर लेते हैं और परमेश्वर की धार्मिकता में निवास करते हैं, तो पवित्र आत्मा हम में निवास करता है। पवित्र आत्मा उस पर आता है और उसमें निवास करता है जिसने छुटकारे को प्राप्त किया है। उन लोगों का क्या होता है जिनमें पवित्र आत्मा वास करता है? वे परमेश्वर की धार्मिकता की सेवा करने और उसके धर्मी कार्य करने के लिए नियत हैं। 
संक्षेप में, जिन्होंने पापों की माफ़ी प्राप्त की है और धर्मी ठहराए गए हैं, उन्हें केवल विश्वास से जीना चाहिए। धर्मी अपने विश्वास को तभी बनाए रख सकते हैं जब वे विश्वास से जीते हैं और परमेश्वर के कार्य करते हैं। यदि आप सोचते हैं कि धर्मी ठहराए जाने के बाद भी आप इस दुनिया में अपने शरीर के अनुसार जिएंगे, तो इसका कारण यह है कि आपने यह महसूस नहीं किया है कि आपको पापों की माफ़ी मिल गई है और आपका गंतव्य पहले ही बदल चुका है। 
धर्मी जन का गंतव्य बदल चुका है। नया जन्म प्राप्त करने से पहले, वे दुनिया के लिए और अपने उद्देश्यों के लिए जीते थे, और अपनी शारीरिक इच्छा के लिए जीते हुए खुश थे। हालाँकि, नया जन्म प्राप्त करने के बाद, फिर से उस तरह जीना असंभव है। हमें पापों की माफ़ी मिली है। यदि हमारी आमदनी लाखों रुपयों में हो तो भी क्या हम खुश होंगे? जब हमें इस दुनिया से दूसरी आत्माओं को छुड़ाने के लिए खुद को समर्पित करना है, तो हम केवल भौतिक चीजों से कैसे संतुष्ट हो सकते हैं? 
दूसरे शब्दों में, मैं आपसे शरीर की और आत्मा की बातों के बारे में सोचने के लिए कह रहा हूँ। उन्हें जानने के लिए आपको उन चीजों को करने की जरूरत नहीं है; आपको बस इतना करना है कि इस मामले पर कुछ गंभीरता से विचार करना है। 
मैंने अब तक रोमियों के बारे में अपनी पिछली उपदेश की पुस्तक में रोमियों के अध्याय १ से ६ तक और इस पुस्तक के अध्याय ७ से १६ तक प्रचार किया है। ये दो उपदेशों की पुस्तकें, मेरी मसीही पुस्तक श्रृंखला का ५वां और ६वां खंड, दुनिया भर के मसीहीयों को पढ़ने के लिए दिया जाएगा। मुझे यकीन है कि मेरी मसीही पुस्तक श्रृंखला के माध्यम से बहुत से लोग परमेश्वर की धार्मिकता को जान पाएंगे। मेरी पिछली तीन उपदेशों की पुस्तकों के माध्यम से, मैंने परमेश्वर के उद्धार पर मूलभूत शिक्षाओं के बारे में बात की है। पहला खंड सुसमाचार के बारे में बात करता है, दूसरा खंड धार्मिक मुद्दों पर चर्चा करता है, और तीसरा खंड पवित्र आत्मा और आत्मा को प्राप्त करने का सही तरीका क्या है उसके बारें में था। और रोमियों पर यह पाँचवाँ और छठा खंड इस बारे में गहराई से बात करता है कि कितने धार्मिक सिद्धांत गलत हैं, जब मसीही यीशु में विश्वास करते है फिर भी उनके पाप क्यों नहीं मिटते, और कैसे पानी और आत्मा का सुसमाचार परमेश्वर की धार्मिकता के रूप में प्रकट होता है . 
मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक के माध्यम से सुसमाचार दुनिया भर में अधिक व्यापक रूप से फैलेगा। जब हमने तीसरे खंड को उस समय की तुलना में प्रकाशित किया जब हमने पहले दो खंडों को प्रकाशित किया था तब सुसमाचार के प्रचार में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। अब, तीसरे खंड के बाद, अधिक से अधिक लोग मेरी मसीही पुस्तक श्रृंखला के पहले और दूसरे खंड के लिए पूछ रहे हैं। 
इन दो पुस्तकों के प्रकाशित होने के बाद, हम जानेंगे कि पानी और पवित्र आत्मा के सुसमाचार की सामर्थ कितनी महान है। मैं प्रार्थना करता हूँ कि जो लोग परमेश्वर की धार्मिकता को जानते हैं, उन्हें परमेश्वर द्वारा ढेर सारी आशीषें मिले। वे जानेंगे कि रोमियों की पुस्तक को कैसे समझा जाए, कि यह उस सुसमाचार में विश्वास के द्वारा समझा जाना है जिसमें परमेश्वर की धार्मिकता निहित है। 
हम सब मिलकर सुसमाचार के लिए काम कर रहे हैं। क्या आप भी परमेश्वर का कार्य नहीं कर रहे है? आप पापियों को उनके पापों से बचाने के लिए सुसमाचार प्रचार करने की सेवकाई का समर्थन कर रहे हैं। जब हम अपने कार्य में विश्वासयोग्य रहते है और सुसमाचार की सेवा करते हैं, तो पूरी दुनिया में बहुत सारी आत्माएं उनके सारे पापों से छूटकारा पाएगी। तो फिर, हम सांसारिक कार्य के लिए इस बहुमूल्य कार्य को कैसे त्याग सकते हैं? 
मैं आपको यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि हम, धर्मी लोग, अब केवल अपने शरीर के लिए न जीने के लिए नियत हैं। अब, हमारा गंतव्य परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा करने, आत्माओं को बचाने और इस धार्मिकता के लिए जीवन जीने के लिए निर्धारित किया गया है। आपको यह जानना चाहिए और अपना शेष जीवन परमेश्वर के लिए, सच्चे सुसमाचार के लिए, और पाप में खोई हुई आत्माओं के उद्धार के लिए जीना चाहिए। 
इस भाग में रोमियों की पुस्तक इस बारे में ही बात करती है। आइए हम वचन १० और ११ की ओर देखे। “यदि मसीह तुम में है, तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु आत्मा धर्म के कारण जीवित है। यदि उसी का आत्मा जिसने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया, तुम में बसा हुआ है; तो जिसने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी नश्‍वर देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है, जिलाएगा।”
उपरोक्त भाग का अर्थ है कि हम, हमारे शरीर, अपने पापों के कारण लंबे समय से मृत हैं। परन्तु हमारी आत्माएं परमेश्वर की धार्मिकता और विश्वास के कारण जीवित हैं। यदि कोई परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करता है, तो वह एक नया जीवन प्राप्त करेगा। हमने परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करके नया जीवन प्राप्त किया है। 
वचन ११ कहता है, “यदि उसी का आत्मा जिसने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया, तुम में बसा हुआ है; तो जिसने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी नश्‍वर देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है, जिलाएगा।” इसका मतलब है कि वह हमें दुनिया के अंत में पुनरुत्थित करेगा। जिस जीवन के साथ हम बहुत पहले केवल अपने शरीर और पाप के लिए जीते थे, वह अब बीत चुका है, और हमारा गंतव्य बदल गया है ताकि हम अपना शेष जीवन परमेश्वर और उसकी धार्मिकता के लिए जी सकें। 
आप यह सोचकर धर्मी के जीवन से ऊब सकते हैं, "निस्संदेह धर्मी लोग जो कुछ कहते हैं उसे कहने के लिए एकत्रित होंगे।" हालांकि, यहाँ तक कि यदि आप कलीसिया में रुकते है तो आपके बगल में बैठे एक नया जन्म पाए हुए विश्वासी की उबासी सुनना या यहाँ तक कि उनकी स्तुति और आवाजें सुनने से भी आपके मन में नयापन आ जाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि पवित्र आत्मा परमेश्वर कलीसिया में और विश्वासियों के हृदयों में कार्य करता है। आपका मन नया हो जाएगा, और आप अपने ह्रदय में नई सामर्थ प्राप्त करेंगे, जीवन की आत्मिक रोटी से पोषित होंगे, और बाहर जाने और आत्मिक कार्यों को करने के लिए आत्मिक कर्तव्यों को प्राप्त करेंगे। 
आप विश्वासियों की सभा में तरोताजा हो सकते हैं। आप दुनिया से अलग हो गए हैं यह तथ्य दर्शाता है कि आपका गंतव्य बदल गया है। इस कारण जो शरीर के अनुसार जीते हैं, उन्होंने अपना मन शरीर की बातों पर लगाया है, परन्तु जो आत्मा के अनुसार जीते हैं, वे आत्मा की बातों पर मन लगाया हैं। हम, जो अब धर्मी ठहरे हैं, अब शरीर के अनुसार नहीं जीते। धर्मी अब पाप के दास नहीं बनना चाहते। हम आत्मा के अनुसार जीना चाहते हैं और आत्मा की बातों पर अपना मन लगाना चाहते हैं। धर्मी आत्मा की बातें करते हैं, आत्माओं को मसीह के लिए जीतने का काम करते हैं।
हमें परमेश्वर के कार्य के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए, इसके लिए अपने विचारों को नकारना चाहिए, और अपना मन उस पर लगाना चाहिए। अब हमें अपना शेष जीवन इसी तरह जीना चाहिए। आपका गंतव्य केवल परमेश्वर की धार्मिकता के लिए जीने के लिए बदल दिया गया है क्योंकि आपने पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करके छुटकारे को प्राप्त किया है। मुझे आशा है कि आप इस सच्चाई को जानते हैं। 
मुझे खेद है, लेकिन आप अब दुनिया में नहीं लौट सकते और पाप के दास नहीं बन सकते। यदि आप अभी दुनिया में लौटते हैं, तो इसका मतलब आपकी अपनी मौत है। दैहिक मन होना मृत्यु है। आपकी आत्मा मर जाएगी, आपका मन मर जाएगा, और आपका शरीर मर जाएगा, यदि आप अभी भी अपनी शारीरिक इच्छाओं का अनुसरण करते रहेंगे। इस्त्राएली अपने निर्गमन पर मिस्र को नहीं लौटे; न ही वे लाल समुद्र पार करने के बाद किसी मिस्री से मिलकर प्रसन्न हुए थे। इसी तरह, हम जो धर्मी ठहरे हैं, वे फिर मिस्र नहीं लौट सकते, और न ही किसी आत्मिक मिस्री से मिलकर प्रसन्न हो सकते हैं।
यदि एक धर्मी, नया जन्म प्राप्त कारनेवाला व्यक्ति दुनिया में जाता है और दुनिया के पापियों के साथ रहता है, तो वह परमेश्वर की कलीसिया में वापस जाने के लिए पागल हो जाएगा। वह परमेश्वर की कलीसिया को याद करेंगे। इसलिए आइए हम आत्मा की बातों पर मन लगाकर जीवन व्यतीत करें। 
परमेश्वर के आत्मा की बातों का क्या अर्थ है? क्या वे परमेश्वर की बातें नहीं हैं? क्या वे परमेश्वर के सुसमाचार की सेवा करने की चीजें नहीं हैं? और फिर भी क्या हम कमजोर और अपरिपूर्ण नहीं हैं? आप दुर्बल है, और मैं भी। परन्तु क्या आपको पापों की माफ़ी तब भी नहीं मिली जब आप निर्बल और अपरिपूर्ण थे? बेशक आपको मिली है! तो क्या अब पवित्र आत्मा आप में वास करता है? जवाब एक जोरदार हाँ है!
तो क्या हम आत्मा की बातों पर अपना मन लगाने में सक्षम हैं या नहीं? निःसंदेह हम सक्षम हैं—हम सभी आत्मा की बातों पर अपना मन लगाने में सक्षम हैं। क्या आप जानते हैं कि परमेश्वर ने आपके गंतव्य को बदल दिया है ताकि आप आत्मा की बातें करें? क्या आप इस पर विश्वास करते हैं? 
अब हमारा मन बदल गया है। यदि वास्तव में आपका मन बदल गया है लेकिन आप नहीं जानते की आपका मन बदल गया है, तो यह आपके लिए केवल परेशानी का कारण बनता है। आपको अपना मन परमेश्वर की धार्मिकता पर स्थिर रखना चाहिए। तब परमेश्वर की कलीसिया आपका घर होगा। आपके संगी विश्वासी आपके भाई, बहनें, माता-पिता होंगे—दुसरे शब्दों में आपका परिवार—एक ही आत्मा में। आपकी कलीसिया में हर कोई आपका परिवार बन जाएगा। यदि आपने पहले ऐसा नहीं सोचा है, तो अब समय है इस पर पुनर्विचार करने और इस शिक्षा पर कुछ गंभीर विचार करने का।
यह मत सोचिए कि सिर्फ देह और लहू का परिवार ही आपका परिवार है। यहाँ आपका घर है और हर नए जन्म पाए हुए व्यक्ति का घर है। आप सभी परमेश्वर के परिवार का हिस्सा हैं। इसलिए हमें आत्मा के अनुसार जीना चाहिए। हमें परमेश्वर के लिए जीना चाहिए, क्योंकि आत्मिक रूप से मन लगाना शांति प्राप्त करना है।