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विषय ९ : रोमियों (रोमियों की पत्री किताब पर टिप्पणी)

[अध्याय 9-2] हमें जानना चाहिए की प्रारब्ध की योजना परमेश्वर की धार्मिकता के भीतर की गई थी (रोमियों ९:९-३३)

( रोमियों ९:९-३३ )
“क्योंकि प्रतिज्ञा का वचन यह है : “मैं इस समय के अनुसार आऊँगा, और सारा के पुत्र होगा।” और केवल यही नहीं, परन्तु जब रिबका भी एक से अर्थात् हमारे पिता इसहाक से गर्भवती थी, और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था; इसलिये कि परमेश्‍वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं परन्तु बुलानेवाले के कारण है, बनी रहे : उसने कहा, “जेठा छोटे का दास होगा।” जैसा लिखा है, “मैं ने याकूब से प्रेम किया, परन्तु एसाव को अप्रिय जाना।” इसलिये हम क्या कहें? क्या परमेश्‍वर के यहाँ अन्याय है? कदापि नहीं। क्योंकि वह मूसा से कहता है, “मैं जिस किसी पर दया करना चाहूँ उस पर दया करूँगा, और जिस किसी पर कृपा करना चाहूँ उसी पर कृपा करूँगा।” अत: यह न तो चाहनेवाले की, न दौड़नेवाले की परन्तु दया करनेवाले परमेश्‍वर की बात है। क्योंकि पवित्रशास्त्र में फ़िरौन से कहा गया, “मैं ने तुझे इसी लिये खड़ा किया है कि तुझ में अपनी सामर्थ्य दिखाऊँ, और मेरे नाम का प्रचार सारी पृथ्वी पर हो।” इसलिये वह जिस पर चाहता है उस पर दया करता है, और जिसे चाहता है उसे कठोर कर देता है। अत: तू मुझ से कहेगा, “वह फिर क्यों दोष लगाता है? कौन उसकी इच्छा का सामना करता है?” हे मनुष्य, भला तू कौन है जो परमेश्‍वर का सामना करता है? क्या गढ़ी हुई वस्तु गढ़नेवाले से कह सकती है, “तू ने मुझे ऐसा क्यों बनाया है?” क्या कुम्हार को मिट्टी पर अधिकार नहीं कि एक ही लोंदे में से एक बरतन आदर के लिये, और दूसरे को अनादर के लिये बनाए? तो इसमें कौन सी आश्‍चर्य की बात है कि परमेश्‍वर ने अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ्य प्रगट करने की इच्छा से क्रोध के बरतनों की, जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे, बड़े धीरज से सही; और दया के बरतनों पर, जिन्हें उसने महिमा के लिये पहले से तैयार किया, अपने महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की? अर्थात् हम पर जिन्हें उसने न केवल यहूदियों में से, वरन् अन्यजातियों में से भी बुलाया। जैसा वह होशे की पुस्तक में भी कहता है,
“जो मेरी प्रजा न थी, उन्हें मैं अपनी प्रजा कहूँगा;
और जो प्रिया न थी, उसे प्रिया कहूँगा।
और ऐसा होगा कि जिस जगह में उनसे यह 
कहा गया था कि
तुम मेरी प्रजा नहीं हो,
उसी जगह वे जीवते परमेश्‍वर की सन्तान कहलाएँगे।”
और यशायाह इस्राएल के विषय में पुकारकर कहता है,
“चाहे इस्राएल की सन्तानों की गिनती
समुद्र के बालू के बराबर हो,
तौभी उनमें से थोड़े ही बचेंगे।
क्योंकि प्रभु अपना वचन पृथ्वी पर पूरा
करके,
धार्मिकता से शीघ्र उसे सिद्ध करेगा।”
जैसा यशायाह ने पहले भी कहा था,
“यदि सेनाओं का प्रभु हमारे लिये कुछ वंश न छोड़ता,
तो हम सदोम के समान हो जाते, और अमोरा के सदृश ठहरते।”
अत: हम क्या कहें? यह कि अन्यजातियों ने जो धार्मिकता की खोज नहीं करते थे, धार्मिकता प्राप्‍त की अर्थात् उस धार्मिकता को जो विश्‍वास से है; परन्तु इस्राएली, जो धर्म की व्यवस्था की खोज करते थे उस व्यवस्था तक नहीं पहुँचे। किस लिये? इसलिये कि वे विश्‍वास से नहीं, परन्तु मानो कर्मों से उसकी खोज करते थे। उन्होंने उस ठोकर के पत्थर पर ठोकर खाई, जैसा लिखा है,
“देखो, मैं सिय्योन में एक ठेस लगने का
पत्थर,
और ठोकर खाने की चट्टान रखता हूँ, और जो उस पर विश्‍वास करेगा वह
लज्जित न होगा।”
 


परमेश्वर के द्वारा नियोजित सच्चा प्रारब्ध क्या है?

 
आइए अब हम अपना ध्यान इस ओर मोड़ें कि `परमेश्वर द्वारा प्रारब्ध की योजना` क्या है। प्रारब्ध क्या है, इसे ठीक-ठीक समझने के लिए, हमें लिखित वचन को परमेश्वर का वचन मानना चाहिए, और यदि हमारे विश्वासों में कुछ भी गलत है, तो खुद को सुधारें। इसके लिए, हमें पहले यह समझना होगा कि परमेश्वर ने याकूब से प्रेम क्यों किया जबकि वह एसाव से घृणा करता था। हमें यह भी पता लगाने की आवश्यकता है कि प्रारब्ध की समकालीन मसीही समझ पवित्रशास्त्र से अलग है या नहीं। हम सब को परमेश्वर द्वारा स्थापित प्रारब्ध की सही समझ होनी चाहिए।
परमेश्वर से आशीषें प्राप्त करने के लिए, हम मसीहीयों को यह पता लगाने की आवश्यकता है कि कैसे प्रारब्ध परमेश्वर की योजना में फिट बैठता है। परमेश्वर की योजना के बारे में सोचते समय, कई समकालीन मसीही सोचते हैं कि उनकी नियति उनके जन्म से पहले पूर्व निर्धारित थी, उनके विश्वासों की कोई प्रासंगिकता नहीं थी, जैसे कि याकूब और एसाव की नियति परमेश्वर के द्वारा बिना किसी शर्त के निर्धारित की गई थी। पर ऐसा नहीं है। हमें परमेश्वर द्वारा प्रेम किया जाता है या नहीं यह इस बात से निर्धारित होता है कि हम उसकी धार्मिकता में विश्वास करते हैं या नहीं। यह वो सत्य है जो परमेश्वर ने हमें अपनी योजना में दिया है।
 

यदि आप सही रीती से परमेश्वर के प्रारब्ध को समझना चाहते है, तो आपको अपने विचार को त्यागना होगा और परमेश्वर की धार्मिकता पर ध्यान केन्द्रित करना होगा

क्योंकि बहुत से लोग यीशु मसीह के माध्यम से प्रकट परमेश्वर की धार्मिकता के बारे में सोच और विश्वास नहीं कर सकते हैं, फिर चाहे वे किसी भी तरीके से परमेश्वर के प्रेम के बारे में सोचते हो, और कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि परमेश्वर का प्रेम न्यायसंगत नहीं है। उन्हें यह समझना चाहिए कि यह सोचने का सही तरीका नहीं है। हमें यीशु मसीह के द्वारा प्रकट की गई परमेश्वर की धर्मी योजना पर विचार न करने के द्वारा अपने गलत विश्वास को दूर करने की आवश्यकता है। यदि आप केवल यह सोचते हैं कि परमेश्वर कुछ लोगों से प्रेम करता है जबकि वह दूसरों से घृणा करता है, तो आपको यह समझना चाहिए कि यह एक गलत प्रकार का विश्वास है, जो आपकी अपनी गलत सोच के द्वारा बना है। 
मनुष्य का मन गलत विचारों से त्रस्त है। कई समकालीन मसीहीयों के पास सही विश्वास नहीं है क्योंकि उनके मन अक्सर गलत विचारों से भर जाते हैं। यही कारण है कि आपको अपने बेकार विचारों को दूर करने और परमेश्वर के वचन का पालन करने और उसकी धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा अपने विश्वास को सही रास्ते पर लाने की आवश्यकता है। 
क्योंकि प्रारब्ध की योजना परमेश्वर की धार्मिकता के भीतर है, इसलिए जाब हम परमेश्वर की धार्मिकता पर विश्वास करते है तब इसे सही ढंग से समझा और विश्वास किया जा सकता है। इसलिए, हमें उसकी योजना और उसकी धार्मिकता में विश्वास रखना चाहिए। परमेश्वर की योजना उन लोगों को धार्मिकता पहनाना है जो उसकी धार्मिकता के भीतर उसके प्रेम में विश्वास करते है। 
इस प्रकार, उसका प्रारब्ध यह है कि वह विश्वासियों को पापों की माफ़ी का उध्धाए देकर जो यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर चढ़ाए जाने के द्वारा परिपूर्ण हुआ, उन्हें अपनी प्रजा बनाए। हमें उसकी धार्मिकता के भीतर उसके द्वारा नियोजित सत्य में विश्वास करके परमेश्वर के साथ सही संबंध स्थापित करना चाहिए। जो याकूब के समान हैं, उन्हें परमेश्वर ने अपने प्रेम का पात्र बनाया है, और जो एसाव के समान हैं, उन्हें परमेश्वर ने अपने क्रोध का पात्र बनाया है।
 


परमेश्वर का प्रारब्ध नियतिवाद जैसा नहीं है।


परमेश्वर की योजना के भीतर प्रारब्ध उसकी धार्मिकता के भीतर स्थापित की गई थी। परमेश्वर का प्रेम बिना किसी योजना के मनमाने ढंग से निर्धारित नहीं है। यदि प्रत्येक व्यक्ति को उसके जन्म से पहले बिना शर्त चुना गया था, जैसे कि उसका जीवन भाग्य द्वारा निर्धारित किया गया था, तो यीशु की धार्मिकता में विश्वास करके पाप से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है? यदि किसी का भाग्य उसके जन्म से पहले इस तरह से निर्धारित किया गया था कि उसे परमेश्वर द्वारा प्रेम किया जाना था या नहीं तो यह एक पूर्व नियोजित और पूर्व निर्धारित परिणाम होगा, तो कौन यह सोचेगा कि परमेश्वर न्यायी है, और ऐसे परमेश्वर में कौन विश्वास करेगा? ऐसे मनमाने और तानाशाही वाले परमेश्वर पर कोई विश्वास नहीं करना चाहेगा। 
लेकिन हमारे परमेश्वर की योजना न तो मनमानी है और न ही तानाशाही है, बल्कि केवल हमें उसकी धार्मिकता के भीतर हमारे पापों से छुड़ाने और हमें उसकी प्रजा बनाने की है। परमेश्वर ने हमें इस योजना के भीतर अपनी धार्मिकता दी, और प्रेम की इस धार्मिकता के भीतर, उसने हमें अपनी क्षमा दी। परमेश्वर ने उन लोगों को जो उसकी धार्मिकता के प्रेम में विश्वास करते हैं उन्हें प्रेम दिया, और जो उस पर विश्वास नहीं करते, उन्हें क्रोध दिया।
मैं उन लोगों से निम्नलिखित बात कहना चाहूंगा जो एक गलतफहमी के तहत परमेश्वर के प्रारब्ध से नाराज हैं। परमेश्वर की योजना, हमें जो उसके द्वारा बनाए गए थे, अपने लोग बनाना है। इसलिए हमें उसके प्रारब्ध के लिए आभारी होना चाहिए। हमारे लिए यह बेहतर है कि हम परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने वाले आभारी लोग बनें, बजाय इसके कि जो उनकी निन्दा करते है। हर कोई जो यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में मानता है, उसे उसकी धार्मिकता के भीतर नियोजित परमेश्वर की प्रारब्ध में एक सटीक समझ और विश्वास होना चाहिए।
 

परमेश्वर का प्रारब्ध उसके द्वारा स्थापित किया गया जो बुलाता है

आजका भाग रोमियों ९:९ में से कहता है, “क्योंकि प्रतिज्ञा का वचन यह है : “मैं इस समय के अनुसार आऊँगा, और सारा के पुत्र होगा।” और केवल यही नहीं, परन्तु जब रिबका भी एक से अर्थात् हमारे पिता इसहाक से गर्भवती थी, और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था; इसलिये कि परमेश्‍वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं परन्तु बुलानेवाले के कारण है, बनी रहे : उसने कहा, “जेठा छोटे का दास होगा।” जैसा लिखा है, “मैं ने याकूब से प्रेम किया, परन्तु एसाव को अप्रिय जाना।” 
यह भाग हमें बताता है कि परमेश्वर का प्रारब्ध प्रेम का प्रारब्ध है, जिसे परमेश्वर की धार्मिकता के प्रेम के भीतर नियोजित किया गया है। जैसा कि उत्पत्ति १८:१० में दिखाया गया है, हालाँकि सारा के लिए एक बच्चे को जन्म देना मानवीय रूप से असंभव था, इब्राहीम ने परमेश्वर की प्रतिज्ञा में विश्वास किया क्योंकि परमेश्वर ने अपना वचन दिया था। इस प्रकार परमेश्वर ने इब्राहीम को धर्मी ठहराया: परमेश्वर ने उसके पुत्र इसहाक को उसे दे दिया क्योंकि वह उस पर विश्वास करता था, और परमेश्वर ने उसके विश्वास को स्वीकार किया। 
इसलिए जब हम परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास के बारे में बात करते हैं, तो हम परमेश्वर के वचन में विश्वास के बारे में बात कर रहे हैं। परमेश्वर की योजना और प्रारब्ध के बारे में हमारी चर्चा भी उसके वचन में हमारे विश्वास के द्वारा निर्देशित होनी चाहिए। जो लोग अन्यथा ओर कुछ करते हैं - उदाहरण के लिए, भ्रम या संकेतों के साथ परमेश्वर की धार्मिकता की खोज करते हैं और दावा करते हैं कि प्रार्थना या सपने देखते समय ऐसा देखा है - वे अपने विश्वासों के साथ एक बड़ी गलती कर रहे हैं।
पौलुस आगे बताता है की, “और केवल यही नहीं, परन्तु जब रिबका भी एक से अर्थात् हमारे पिता इसहाक से गर्भवती थी, और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था; इसलिये कि परमेश्‍वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं परन्तु बुलानेवाले के कारण है, बनी रहे : उसने कहा, “जेठा छोटे का दास होगा।” 
पवित्रशास्त्र हमें बताता है कि इसहाक की अपनी कोई संतान नहीं थी, उसने परमेश्वर से प्रार्थना की, और परमेश्वर ने उसे जुड़वां बच्चे देकर उत्तर दिया। हम देख सकते हैं कि परमेश्वर की धार्मिकता के भीतर नियोजित प्रारब्ध का उन लोगों के विश्वासों के साथ एक निश्चित संबंध है जो उसके द्वारा प्रेम किए जाते हैं।
यहाँ फिर से वचन ११ को दोहराना उचित है: “और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था; इसलिये कि परमेश्‍वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं परन्तु बुलानेवाले के कारण है, बनी रहे।” परमेश्वर की योजना के भीतर प्रारब्ध और चुनाव के सत्य को समझने की कुंजी यह है कि परमेश्वर का उद्देश्य "उसके लिए है जिन्हें वह बुलाता है।" याकूब और एसाव के बीच, परमेश्वर की योजना के अनुसार प्रारब्ध के अनुसार, परमेश्वर ने याकूब को बुलाया और उससे प्रेम किया। 
जब परमेश्वर लोगों को बुलाता है और उनसे प्रेम करता है, दूसरे शब्दों में, वह ऐसे लोगों को बुलाता और प्रेम करता है, जो याकूब की तरह धर्मी होने से बहुत दूर हैं। परमेश्वर ने एसाव को नहीं बुलाया, जो अपने आप को धर्मी और घमण्ड से भरा हुआ समझता था। परमेश्वर की योजना में निहित प्रारब्ध के अंतर्गत, यह निश्चित है कि परमेश्वर याकूब जैसे लोगों को बुलाएगा और उनसे प्रेम करेगा। याकूब जैसे लोगों को बुलाने का परमेश्वर का उद्देश्य पापियों को अपनी सन्तान बनाना और पाप से मुक्त करना था। जो बुलाए हुए को प्रेम करता है, वह परमेश्वर है, और याकूब और एसाव के बीच में जो बुलाया गया है वह याकूब है। 
हमें उसकी योजना के अंतर्गत परमेश्वर की धार्मिकता को जानना और उसमें विश्वास करना चाहिए। याकूब एक पापी की विशिष्ट आकृति का प्रतिनिधित्व करता है जिस पर परमेश्वर ने अपनी धार्मिकता के भीतर अपनी दया दिखाई है, जबकि एसाव एक ऐसे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जो परमेश्वर के धर्मी प्रेम की उपेक्षा करके और अपनी धार्मिकता का अनुसरण करके परमेश्वर के विरुद्ध हो जाता है। यही कारण है कि परमेश्वर के वचन को उसकी योजना के भीतर निर्धारित प्रारब्ध पर प्रकट करने की कुंजी यह समझना है कि परमेश्वर का उद्देश्य "उसके लिए है जिन्हें वह बुलाता है।”
हमें अपने स्वयं के विचारों द्वारा निर्मित भ्रामक विश्वासों से स्वयं को मुक्त करना चाहिए। परमेश्वर, अपनी धार्मिकता के भीतर, केवल याकूब से प्रेम कर सकता था और एसाव से घृणा कर सकता था। अपनी योजना और प्रारब्ध के बारे में परमेश्वर की व्याख्या उसकी घोषणा के माध्यम से सभी को प्रदान की जाती है कि परमेश्वर का उद्देश्य "उसके लिए है जिन्हें वह बुलाता है।" परमेश्वर की योजना उसकी धार्मिकता में पूर्ण प्रेम का सत्य है। जब परमेश्वर याकूब से प्रेम करता था परन्तु एसाव से घृणा करता था, तब उद्धार की उसकी योजना के मुताबिक़ प्रारब्ध पर्मेश्वर्व की धार्मिकता को परिपूर्ण करने के लिए था।
यह ऐसा नहीं है, जैसा कि कई अन्य धर्मों द्वारा दावा किया गया है, जैसे की अच्छे कार्यों के द्वारा आपको परमेश्वर द्वारा प्रेम मिलेगा और वह आपको बचाएगा, लेकिन केवल उसकी योजना और उसकी धार्मिकता में विश्वास करने से आप उसकी संतान बन जाते हैं और अपने पापों से मुक्त हो जाते हैं।
 

क्या परमेश्वर गलत है?

परमेश्वर उन लोगों से प्रेम करता है जो उसकी धार्मिकता पर विश्वास करते हैं और उससे प्रेम करते हैं। दूसरे शब्दों में, इस तथ्य में कुछ भी गलत नहीं है कि हमारे पिता ने यीशु मसीह के भीतर परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने वालों को प्रेम किया और अपनी संतान बनाने का फैसला किया। परमेश्वर ने यीशु मसीह में सभी से प्रेम करने की योजना नहीं बनाई, परन्तु याकूब जैसे लोगों से प्रेम करने की योजना बनाई। 
तो हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि हम याकूब के समान हैं या एसाव। लेकिन वे भी जो अपने स्वयं के अच्छे कर्मों और अपनी धार्मिकता से भरे हुए हैं, अभी भी परमेश्वर से प्रेम पाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें गलत रास्ते पर जाने से कोई नहीं रोक सकता। तो ये दो प्रकार के लोग हमेशा होते हैं, जैसे हम अभी बात कर रहे है तभी भी, परमेश्वर से प्रेम पानेवाले या घृणा पानेवाले। 
हमें परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहिए और उसके धर्मी प्रेम और हमारे उद्धार के लिए उसकी योजना पर विश्वास करके उसकी महिमा की प्रशंसा करनी चाहिए। हमें इस तथ्य के लिए भी उसका धन्यवाद करना चाहिए कि पानी और आत्मा का सुसमाचार, जिसमें हम विश्वास करते हैं, आश्चर्यजनक रूप से परमेश्वर की धार्मिकता को दर्शाता है। प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना चाहिए, कि परमेश्वर के प्रेम को धारण करने के लिए, उसे पहले परमेश्वर के सामने अपनी कमजोरियों और पापों को पहचानना होगा, और परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करना होगा।
समस्या यह है कि कई मसीही, यीशु के बपतिस्मा और क्रूस की सच्चाई में विश्वास करने में असमर्थ हैं, जो परमेश्वर की धार्मिकता को परिपूर्ण करता हैं, वे गलत तरीके से विश्वास करते हैं कि परमेश्वर कुछ लोगों से प्रेम करता हैं, जबकि अन्य बस उनके द्वारा त्याग दिए जाने के लिए नियत हैं। 
इससे भी अधिक समस्या यह है कि दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि इस प्रकार की विकृत आस्था प्रचलित है और बड़े विश्वास के साथ दूसरों को इसका प्रचार किया जा रहा है। यह तेजी से फैल रहा है; अधिक से अधिक लोगों को परमेश्वर के प्रेम को गलत समझने की ओर लेकर जाता है, जो उसके द्वारा नियोजित परमेश्वर की प्रारब्ध के द्वारा दिखाया गया है। याकूब और एसाव की कहानी के साथ परमेश्वर हमें जो बताने की कोशिश कर रहा है, वह यह है कि उसकी संतान बनने के लिए, मानवीय धार्मिकता की आवश्यकता नहीं है, बल्कि परमेश्वर की योजना के अनुसार पूर्वनिर्धारित परमेश्वर की धार्मिकता के प्रेम में विश्वास करने की आवश्यकता है। 
पवित्रशास्त्र हमें बताता है कि परमेश्वर ने सारा को वह पुत्र दिया जिसकी प्रतिज्ञा उसने अब्राहम से की थी। यह हमें आज भी बताता है, कि केवल वे ही जो परमेश्वर के प्रेम और धार्मिकता के वचन में विश्वास रखते हैं वे परमेश्वर की संतान बन सकते हैं। ऐसी संतान बनने के लिए, हमें उस सत्य को पहचानना होगा जो परमेश्वर की धार्मिकता, और उसकी योजना में हमारे विश्वासों के साथ दिया गया था, और इस सत्य में विश्वास करने के लिए, हमें परमेश्वर के प्रेम और उसकी धार्मिकता में विश्वास करने की आवश्यकता है। 
यीशु मसीह का हमारे प्रति प्रेम और हमारे लिए परमेश्वर की योजना हम सभी को दिया गया परम सत्य और प्रेम है। हमें हमारे पापों से बचाने के लिए, यीशु ने अपने बपतिस्मा के साथ हमारे सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया, क्रूस पर मर गया और मृत्यु से पुनरुत्थित हुआ, केवल हम सब को जो उस पर विश्वास करते हैं उन्हें अनन्त जीवन देने के लिए।
इस सत्य का अर्थ यह नहीं है कि केवल धार्मिक होने और अपने स्वयं के प्रयासों को प्रदर्शित करने से हम परमेश्वर की संतान बन सकते हैं, बल्कि इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर की संतान बनने का एकमात्र तरीका प्रेम के वचन और परमेश्वर की धार्मिकता पर विश्वास करना है, जो परमेश्वर के द्वारा हमें बताया गया है और योजना बनाई गई है। हम सभी को यह समझना चाहिए कि केवल वे ही जो परमेश्वर के प्रेम और धार्मिकता में विश्वास करते हैं, परमेश्वर के प्रेम को धारण करते हैं। 
तो फिर, हमारा स्वभाव कैसा होना चाहिए? यह हमारे लिए है कि हम यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसके लहू में विश्वास करें। हमें परमेश्वर से हम पर दया करने के लिए कहना चाहिए। हमें उसके सामने यह पहचानना चाहिए कि हम उसके लोग कहलाने के योग्य नहीं हैं, क्योंकि हम सभी पापी हैं। हमें यह समझना चाहिए कि यह केवल हमारे लिए उसकी योजना के माध्यम से है - कि हम उसके धर्मी प्रेम को जान सकें - कि हम उसकी संतान बन सकते हैं।
जो लोग परमेश्वर से घृणा प्राप्त करते हैं, वे इसलिए घृणा प्राप्त करते है क्योंकि उन्हें परमेश्वर प्रेम और धार्मिकता की आवश्यकता नहीं है या उस पर विश्वास नहीं है। इसलिए हमें प्रेम की उस योजना को जानना और उसमें विश्वास करना चाहिए जिसे परमेश्वर ने हमारे लिए पूर्वनियत किया है। स्पष्ट सत्य यह है कि जो लोग परमेश्वर की धार्मिकता के प्रेम को जानते हैं और उसमें विश्वास करते हैं, वे परमेश्वर से प्रेम प्राप्त करेंगे, जबकि जो लोग उसके प्रेम का अस्वीकार और खंडन करते हैं, वे परमेश्वर से घृणा प्राप्त करेंगे।
 

कौन पानी और आत्मा के सुसमाचार को प्राप्त कर सकता है?

पानी और आत्मा का सुसमाचार, जो हमें परमेश्वर द्वारा दिया गया है, केवल वही सत्य है जो उसकी धार्मिकता को प्रकट करता है। तो फिर, वे किस प्रकार के लोग हैं जो इस सत्य को अपने हृदय में ग्रहण करते हैं? ये वे लोग हैं, जो यह समझते है कि उनकी नियति अनन्त दण्ड है और यह कि वे परमेश्वर और उसके वचन के सामने पापी हैं, उसकी दया की याचना करते हैं। "मैं एक पापी हूँ, परमेश्वर, जो आपकी व्यवस्था के मुताबिक़ बिलकुल भी नहीं जी सकता। मैं अपना हृदय त्यागता हूँ और आपको समर्पण करता हूँ।" ये वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर ने अपनी धार्मिकता में अपने प्रेम से पापों की माफ़ी प्रदान की है। सुसमाचार में विश्वास जो परमेश्वर की धार्मिकता को प्रकट करता है, सभी पापियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। 
परमेश्वर ने हमें अपनी व्यवस्था इसलिए नहीं दी है कि हम उनके प्रत्येक नियम का पालन करें, यह एक ऐसा तथ्य है जिसे कई लोग अक्सर गलत समझते हैं। बल्कि, व्यवस्था का उद्देश्य हमें अपने स्वयं के पापपूर्णता की पहचान की ओर ले जाना था। तो फिर, पापी लोग व्यवस्था का पालन करने का प्रयास क्यों करते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रत्येक पापी की वृत्ति छुटकारे और अपने पापों के निवारण की तलाश करती है। 
लेकिन कोई भी व्यक्ति सारी व्यवस्था का पालन करने में सक्षम नहीं है। प्रयास केवल नकल थे, केवल सहज नकल, अपने पापों को निराशा में ढकने की कोशिश कर रहे थे - परमेश्वर के सामने धोखे का विश्वास। इसलिए पापियों को इस धोखे के विश्वास को त्याग देना चाहिए, परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास की ओर मुड़ना चाहिए, और उसके प्रेम को धारण करना चाहिए। 
हमें यह प्रेम देने के लिए, परमेश्वर ने यीशु को पृथ्वी पर भेजा, जिन्होंने यूहन्ना से बपतिस्मा लेने के द्वारा, जगत के पापों को अपने कंधों पर ले लिया, और क्रूस पर लहू बहाकर, उन सभी को मिटा दिया। परमेश्वर ने उन लोगों के विश्वासों को पहचान लिया है जो उसकी धार्मिकता के प्रेम में विश्वास करते हैं। जब हम पानी और आत्मा के सुसमाचार में अपने विश्वास के द्वारा, जो परमेश्वर की धार्मिकता की पूर्ति है, अपने सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं, तो हम उसके प्रेम को धारण कर लेते हैं। यह वादा किया गया सत्य है जिसे परमेश्वर ने अपनी योजना में हमारे लिए निर्धारित किया है।
परमेश्वर उनसे घृणा करेगा जो केवल अपने ऊपर भरोसा करते हैं। हमारे आसपास ऐसे कई लोग हैं। लेकिन आपको यीशु के बपतिस्मा और उसके लहू पर विश्वास करने के द्वारा अपने सभी पापों से बचना चाहिए जिसने परमेश्वर के प्रेम और उसकी धार्मिकता को परिपूर्ण किया है। तब आप निश्चय ही परमेश्वर के प्रेम को पाओगे, जो उनके लिए आरक्षित किया गया है जिन्हें वह बुलाता है। लोग अक्सर परमेश्वर के प्रेम और क्षमा को पाने के लिए अपने दम पर कुछ करने की कोशिश करते हैं, लेकिन ये प्रयास परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास के बिना व्यर्थ हैं।
परमेश्वर ने केवल याकूब को अपना प्रेम देने के लिए बुलाया, एसाव को नहीं। परमेश्वर के सामने, याकूब एक चालाक और धोखेबाज झूठा था, लेकिन क्योंकि वह परमेश्वर के प्रेम और उसकी धार्मिकता में विश्वास करता था, वह विश्वास के पिताओं में से एक बन गया। हमें भी, हमारे छुटकारे के रूप में, यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर के उसके लहू, परमेश्वर की धार्मिकता की पूर्ति में विश्वास करके परमेश्वर का प्रेम प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि एसाव ने अपने शिकार से अपने पिता द्वारा आशीष पाने की कोशिश की, वह उन लोगों के लिए प्रतीक बन गया जो परमेश्वर की आशीष को प्राप्त नहीं कर सके। हमें इस मामले पर ध्यान से सोचने में कुछ समय बिताने की जरूरत है। इस संसार में एसाव के समान कौन हैं? क्या हम उसके जैसे नहीं हैं?
याकूब जैसे लोग वे हैं जो परमेश्वर के धर्मी प्रेम में डूबे रहते हैं। हम जानते हैं कि हम भी याकूब की तरह निर्बल और दुष्ट हैं। परमेश्वर, जिसने हमारे जन्म से पहले ही हमें बुलाया है, हमारे कामों के लिए नहीं बल्कि अपनी बुलाहट पर खड़े होने के लिए, हमें उसके प्रेम को प्राप्त करने के लिए उसके प्रेम और धार्मिकता में विश्वास करने के लिए कहा है। परमेश्वर ने यीशु को भेजा, जिसने हम सभी के लिए अपनी योजना के भीतर परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा किया। 
जब परमेश्वर ने हमें पहली बार बुलाया, तो वह पापियों को बुलाने आया, न कि धर्मियों को। जो लोग परमेश्वर से घृणा प्राप्त करते हैं वे वो लोग हैं जो स्वयं को अपनी धार्मिकता से परिपूर्ण समझते हैं और जो उसके दयालु प्रेम में विश्वास नहीं करते हैं। जिनके पास इस तरह के भ्रामक विश्वास हैं, वे परमेश्वर से घृणा प्राप्त करते हैं और उनके लोग होने के लिए उनके प्रेम को प्राप्त नहीं कर सकते है। परमेश्वर ने इस सत्य को हमारे लिए अपने हृदय में पूर्वनियत किया है। इसलिए, पौलुस निश्चित रूप से कहता है, “इसलिए हम क्या कहें? क्या परमेश्वर के यहाँ अन्याय है? कदापि नहीं!" (रोमियों 9:14)
 

जिनको परमेश्वर ने प्रेम किया वे याकूब के जैसे है

जब परमेश्वर आपकी ओर देखता है, तो क्या आप वास्तव में उस तरह के व्यक्ति हैं जिस पर वह दया करेगा? परमेश्वर को किस कारण की आवश्यकता है जब वह उस पर दया करता है जिस पर वह दया करना चाहता है और उससे घृणा करता है जिससे वह घृणा करना चाहता है? हम परमेश्वर से कैसे कह सकते हैं कि उसने हमारे साथ गलत किया है?
इस धरती पर अनगिनत संख्या में लोग रहते हैं। जबकि उनमें से कुछ परमेश्वर को प्रिय हैं जबकि दुसरे नहीं हैं। क्या इसका मतलब यह है कि परमेश्वर ने उनके साथ अन्याय किया है?
परमेश्वर एक न्यायी परमेश्वर भी है जो उन लोगों के पापों का न्याय करता है जो उसकी धार्मिकता के विरुद्ध हो गए हैं। हमें इस धार्मिकता में अपने विश्वास के साथ परमेश्वर की धार्मिकता के भीतर प्रकट की गई योजना को समझकर इस मामले में किसी भी गलतफहमी से बचना चाहिए। कई गुमराह मसीही हैं जिनके ह्रदय फिरौन की तरह कठोर हैं। ये उस प्रकार के लोग हैं जो परमेश्वर से घृणा प्राप्त करते हैं, जैसा कि इस अध्याय का वचन १७ बताता है: “क्योंकि पवित्रशास्त्र में फ़िरौन से कहा गया, “मैं ने तुझे इसी लिये खड़ा किया है कि तुझ में अपनी सामर्थ्य दिखाऊँ, और मेरे नाम का प्रचार सारी पृथ्वी पर हो।”
हम सब परमेश्वर के सामने अपर्याप्त हैं। तो फिर हमें फिरौन के समान नहीं बनना चाहिए। क्या यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसके लहू को हमारे छुटकारे के रूप में विश्वास नहीं करने के कारण, परमेश्वर को हमसे, जो फिरौन के समान हठीले हैं, घृणा करनी चाहिए? हाँ। फिरौन जैसे लोग परमेश्वर के विरुद्ध हो जाते हैं। ऐसे लोग अपनी धार्मिकता पर घमण्ड और भरोसा करते हैं, परन्तु उनकी अपनी धार्मिकता उन्हें उनके अपने पापों से मुक्त नहीं कर सकती।
फिरौन किस पर निर्भर था? उसने नील नदी पर भरोसा किया और उस पर निर्भर था। उसने सोचा कि जब तक उसके पास पानी की भरपूर आपूर्ति है, तब तक सब कुछ ठीक रहेगा। यही कारण है कि परमेश्वर फिरौन जैसे लोगों से घृणा करता है। जिस किसी का मन फिरौन के समान कठोर होगा, वह परमेश्वर से घृणा प्राप्त करेगा और शापित होगा। आपको उसके जैसा नहीं होना चाहिए। परमेश्वर ने आपको इतना स्वतंत्र रूप से जो दयालु प्रेम दिया है, उसे प्राप्त करके, आप परमेश्वर की संतान बन सकते हैं।
 

क्या आप पूरे आनंद के साथ परमेश्वर की धर्मी योजना से सहमत है?

क्या आपका हृदय परमेश्वर की योजना में आपके लिए पूर्वनिर्धारित परमेश्वर के धर्मी प्रेम को प्राप्त करने के लिए तैयार है? कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो यीशु में विश्वास करते हुए भी पीड़ा में हैं, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की योजना को गलत समझा है। ऐसे लोग आश्चर्य करते हैं, "मैं यीशु में विश्वास करता हूँ, परन्तु क्या परमेश्वर ने वास्तव में मुझे चुना है? यदि उसने मुझे नहीं चुना, तो मेरे विश्वास का क्या उपयोग? तब मुझे क्या करना चाहिए? मैं केवल यीशु में विश्वास करना बंद नहीं कर सकता; मैं क्या कर सकता हूं? मैं वास्तव में यीशु में विश्वास करता हूँ, लेकिन क्या होगा यदि मैं उनके चुनाव में नहीं हूँ?” 
फिर वे यह सोचकर खुद को सांत्वना देने की कोशिश कर सकते हैं, "चूंकि मैं यीशु में विश्वास करता हूं और कलीसिया की सेवाओं में भाग लेता हूँ, परमेश्वर ने मुझे चुना होगा। निश्चित रूप से ऐसा ही है! स्वर्ग में निश्चित रूप से मेरे लिए जगह होगी!" लेकिन जब वे पाप में पड़ जाते हैं, तो वे फिर से आश्चर्य करते हैं, "परमेश्वर ने मुझे नहीं चुना होगा! हो सकता है कि मेरे लिए यीशु पर विश्वास करना छोड़ने का समय आ गया हो!” दूसरे शब्दों में, वे स्वयं सोचते हैं, स्वयं निष्कर्ष निकालते हैं और स्वयं ही सब कुछ समाप्त कर देते हैं। इन लोगों को विशेष रूप से परमेश्वर की योजना के बारे में अपनी समझ पर पुनर्विचार करने और यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में विश्वास करने के लिए सही समझ प्राप्त करने की आवश्यकता है। 
दूसरी ओर, जो लोग परमेश्वर के स्वयं के वचन से अधिक धर्मशास्त्रियों की शिक्षाओं में विश्वास करते हैं, वे कह सकते हैं, "क्या परमेश्वर ने यह नहीं कहा कि बड़ा छोटे की सेवा करेगा और वह याकूब से प्यार करता था, जबकि वह एसाव से नफरत करता था, यहां तक कि उनके पैदा होने से पहले भी? चूँकि हम अब यीशु में विश्वास करते हैं, निश्चित रूप से हम अपने जन्म से पहले ही बचाए जाने के लिए तैयार हो गए होंगे।" लेकिन प्रेरित पौलुस हमें बताता है कि परमेश्वर द्वारा नियोजित प्रारब्ध “कर्मों के कारण नहीं परन्तु बुलानेवाले के कारण है, बनी रहे।” 
व्यवस्था का पालन करने से कोई परमेश्वर की संतान नहीं बन जाता। केवल परमेश्वर की धार्मिकता और यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसके लहू द्वारा दिखाई गई उनकी दया और प्रेम में विश्वास करने से ही हम उनकी संतान बन सकते हैं।
धर्मशास्त्रियों द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के कारण, बहुत से लोग यीशु के बपतिस्मा और उनके लहू, परमेश्वर की धार्मिकता की अभिव्यक्ति, को उनके उद्धार के रूप में विश्वास करने में असमर्थ हैं। जिन लोगों ने सुसमाचार के प्रेम को परमेश्वर धार्मिकता दिखाते हुए सुना है, और फिर भी उस पर विश्वास नहीं करते वे फिरौन के समान हैं। परमेश्वर उन लोगों से घृणा करता है जो, यीशु मसीह में प्रकट परमेश्वर की धार्मिकता पर विश्वास किए बिना, अपने स्वयं के अनुसार यीशु पर विश्वास करके परमेश्वर की संतान बनने की कोशिश करते हैं। 
यदि आप यीशु मसीह के द्वारा दिखाए गए परमेश्वर के धर्मी प्रेम में विश्वास नहीं करते हैं, तो आपके लिए ऐसा करने का समय आ गया है। तब, आप परमेश्वर के प्रेम को प्राप्त करेंगे। हम सभी मूल रूप से एसाव की तरह थे, फिर भी हम परमेश्वर की धार्मिकता के प्रेम में विश्वास करने के द्वारा तुरंत अपने पापों से बचा लिए गए थे। हमने परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करके परमेश्वर का आशीषित प्रेम प्राप्त किया है।
परमेश्वर ने इस्राएलियों और अन्यजातियों दोनों के लिए, उन लोगों को जो उसके धर्मी प्रेम में विश्वास करते हैं, उसकी सन्तान बनने की आशीष प्रदान की है। जैसा कि परमेश्वर ने कहा, “जो मेरी प्रजा न थी, उन्हें मैं अपनी प्रजा कहूँगा; और जो प्रिया न थी, उसे प्रिया कहूँगा,” उसने हमें यीशु के बपतिस्मा और उसके लहू का सुसमाचार दिया है, और हममें से जो विश्वास करते हैं उसमें, उसका धर्मी प्रेम। 
निम्नलिखित भाग, “और ऐसा होगा कि जिस जगह में उनसे यह कहा गया था कि तुम मेरी प्रजा नहीं हो, उसी जगह वे जीवते परमेश्‍वर की सन्तान कहलाएँगे,” परमेश्वर का प्रेम का वचन है जो आज हमारे लिए परिपूर्ण हो गया है। हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि क्योंकि हम परमेश्वर के सामने इतने कमजोर थे की परमेश्वर ने हमारे पास देह में आकर और अपनी धार्मिकता के प्रेम को हमें उपलब्ध कराने के द्वारा हमें बचाया।
कि आप और मैं परमेश्वर के सामने हमारे सभी पापों से बचाए गए हैं, यह उद्धार देने वाला प्रेम है जिसे परमेश्वर की धार्मिकता के भीतर नियोजित किया गया है। परमेश्वर की धार्मिकता के प्रेम में विश्वास करके, हमारे हृदयों को कठोर किए बिना, हमारे सभी पापों से छुटकारा पाना सत्य में विश्वास के द्वारा ही संभव हो सकता है। विश्वास के इस तरीके के अलावा, पापों की क्षमा प्राप्त करने का और कोई तरीका नहीं है। हम सब हठीले मन के साथ पैदा हुए हैं, लेकिन परमेश्वर का वचन हमारे दिलों और हमारे हठ पर जीत हासिल कर सकता है। तब हमारे हृदयों पर परमेश्वर की शांति का शासन होगा। यदि आप परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो परमेश्वर की धार्मिकता आपकी होगी।
यदि सत्य का सुसमाचार जिसमें परमेश्वर की धार्मिकता का हम प्रचार कर रहे हैं, अस्तित्व में नहीं होता, तो इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति अपने विनाश का सामना कर रहा होता। उन लोगों के बिना जो पानी और आत्मा का सुसमाचार फैला रहे हैं, सारी मनुष्यजाति अपनी आशा खो चुकी होती। यदि यह उनके लिए नहीं होता जो परमेश्वर के धर्मी प्रेम को पहिने हुए है, तो संसार का अंत पहले ही हो चुका होता, और सभी का उनके पापों के लिए न्याय किया जाता। परन्तु परमेश्वर ने हम में से उन लोगों को इस पृथ्वी पर छोड़ दिया है जो उसकी धार्मिकता के प्रेम में विश्वास करते हैं। हम केवल परमेश्वर के आभारी हो सकते हैं कि वह हमारी कई कमजोरियों और कमियों के बावजूद हमारे द्वारा कार्य करता है।
वह विश्वास जो परमेश्वर की धार्मिकता के प्रेम में पहना जाता है, वह धार्मिकता है जो यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उनके लहू से आई है। परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास उस हृदय में पाया जाता है जो यीशु के बपतिस्मा और उसके लहू में विश्वास करता है। उसकी धार्मिकता में हमारे विश्वासों के द्वारा ही हम अपने पापों से मुक्त हुए हैं। यह सच्चाई वह योजना, प्रारब्ध और चुनाव है जिसे परमेश्वर ने हमारे लिए निर्धारित किया है।
परमेश्वर ने कहा है कि जो कोई परमेश्वर के वचन पर विश्वास करता है, जो यीशु मसीह में उसकी धार्मिकता को पूरा करता है, वह अपने पापों से बच जाएगा। एक व्यक्ति को विनाश का सामना इसलिए नहीं करना पड़ता है क्योंकि परमेश्वर की धार्मिकता ने सभी पापों को समाप्त नहीं किया है, बल्कि इसलिए कि उसके कठोर हृदय में, उसने उस पर विश्वास नहीं किया।
हमें परमेश्वर के वचन के सामने अपने दिलों को नम्र बनाना चाहिए और पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करना चाहिए। हमारे दिलों को उसके सामने घुटने टेकने चाहिए। हम परमेश्वर की धार्मिकता के प्रेम में विश्वास करने के द्वारा आशीषित हुए थे। उसने हमें हमारे सभी पापों से बचाया क्योंकि उसने हम पर बहुत दया की थी। हम उसे धन्यवाद देते हैं। हम जो परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं, उन्हें लज्जित होने की कोई बात नहीं है। इसके विपरीत, हमारे पास उसकी धार्मिकता पर गर्व करने का हर कारण है।
कि परमेश्वर ने हमें पूरी तरह से हमारे पापों से बचाया है क्योंकि हम उससे सामने कमजोर है — इस उद्धार के लिए प्रभु की स्तुति करो! परमेश्वर द्वारा प्रेम प्राप्त करने के लिए, हमें उसकी धार्मिकता में विश्वास करने में सक्षम होना चाहिए। 
क्या आप परमेश्वर की इस धार्मिकता को जानते हैं? यदि ऐसा है तो उस पर विश्वास करें। तब परमेश्वर का धर्मी प्रेम आपके हृदय में आएगा। परमेश्वर की धार्मिकता के प्रेम में आपका विश्वास जो उसने आपके लिए योजना बनाई है, गलतफहमी से मुक्त हो। 
छुटकारे का वह प्रेम जो परमेश्वर ने आपके लिए निर्धारित किया है, आपके हृदय में आ जाए। हाल्लेलूयाह! मैं उस त्रिएक परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ जिसने अपनी धार्मिकता में हमें अपनी सन्तान बनाया है।