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विषय ९ : रोमियों (रोमियों की पत्री किताब पर टिप्पणी)

[अध्याय 10-2] सच्चा विश्वास सुनने के द्वारा होता है (रोमियों १०:१६-२१)

( रोमियों १०:१६-२१ )
परन्तु सब ने उस सुसमाचार पर कान न लगाया : यशायाह कहता है, “हे  प्रभु, किसने हमारे समाचार पर विश्‍वास किया है?” अत: विश्‍वास सुनने से और सुनना मसीह के वचन से होता है। परन्तु मैं कहता हूँ, क्या उन्होंने नहीं सुना? सुना तो अवश्य है; क्योंकि लिखा है, 
“उनके स्वर सारी पृथ्वी पर,
और उनके वचन जगत की छोर तक पहुँच गए हैं।”
मैं फिर कहता हूँ, क्या इस्राएली नहीं जानते थे? पहले तो मूसा कहता है,
“मैं उनके द्वारा जो जाति नहीं, तुम्हारे मन में जलन उपजाऊँगा;
मैं एक मूढ़ जाति के द्वारा तुम्हें रिस दिलाऊँगा।”
फिर यशायाह बड़े हियाव के साथ कहता है,
“जो मुझे नहीं ढूँढ़ते थे, उन्होंने मुझे पा लिया;
और जो मुझे पूछते भी न थे, उन पर मैं प्रगट हो गया।”
परन्तु इस्राएल के विषय में वह यह कहता है,
“मैं सारा दिन अपने हाथ एक आज्ञा न माननेवाली और विवाद करनेवाली
प्रजा की ओर पसारे रहा।”
 

वचन १७ कहता है, “अत: विश्वास सुनने से और सुनना मसीह के वचन से होता है।” व्यक्ति को उनके सारे पापों से छुडाने वाला विश्वास कहा से आता है? सच्चा विश्वास परमेश्वर के वचन को सुनने से आता है।
मैं परमेश्वर के वचन के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता की गवाही देना जारी रखना चाहता हूँ। आइए हम रोमियों ३:१०-२० की ओर देखते हुए शुरू करे:
“जैसा लिखा है : “कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।
कोई समझदार नहीं;
कोई परमेश्‍वर का खोजनेवाला नहीं।
सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए हैं;
कोई भलाई करने वाला नहीं, एक भी नहीं।
उनका गला खुली हुई कब्र है,
उन्होंने अपनी जीभों से छल किया है,
उनके होठों में साँपों का विष है।
उनका मुँह श्राप और कड़वाहट से भरा है।
उनके पाँव लहू बहाने को फुर्तीले हैं,
उनके मार्गों में नाश और क्लेश है,
उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना।
उनकी आँखों के सामने परमेश्‍वर का भय नहीं।
हम जानते हैं कि व्यवस्था जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्था के अधीन हैं; इसलिये कि हर एक मुँह बंद किया जाए और सारा संसार परमेश्‍वर के दण्ड के योग्य ठहरे; क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके सामने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है।”
उद्धार प्राप्त करने के लिए हमें इन संदर्भो को कैसे समझना और उन पर विश्वास करना चाहिए? आरम्भ से ही न तो धर्मी थे और न ही परमेश्वर को खोजने वाले थे परन्तु सब पापी थे। उनके गले खुली हुई कब्रे थी; उनकी जिब जहरीले सांप की तरह, छल करनेवाली और शाप और कड़वाहट से भरी हुई थी। उनके पाँव लहू बहाने के लिए फुर्तीले थे। वे अपनी आँखों के सामने शान्ति का मार्ग या परमेश्वर के भय को नहीं जानते थे और केवल अपने विनाश और दुःख के मार्ग पर चलते थे। परमेश्वर की धार्मिकता को जानने और उस पर विश्वास करने से पहले हर कोई पापी था, और उन्होंने व्यवस्था के द्वारा यह जाना की वे परमेश्वर के सामने पापी थे।
 
बिना व्यवस्था के हम अपने पापों को कैसे जान सकते हैं? हम परमेश्वर को कैसे जान सकते हैं? क्या हम कभी परमेश्वर से डरते थे? रोमियों ३:१८ कहता है, "उनकी आंखों के साम्हने परमेश्वर का भय नहीं।" क्या हमारी देह की आँखों ने कभी उसे देखा? हम शायद परमेश्वर के अस्तित्व के प्रति थोड़ा सचेत रहे होंगे, लेकिन हमने न तो उसे देखा और न ही उससे डरते थे। तो फिर, हमें कैसे पता चला कि हम पापी थे? हमें उनके लिखित वचन को सुनकर परमेश्वर के अस्तित्व का पता चला। इसलिए सुनना परमेश्वर के वचन से आता है।
हम जानते हैं कि परमेश्वर ने संसार की रचना की क्योंकि यह इस प्रकार पवित्रशास्त्र में लिखा है, "आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की" (उत्पत्ति १:१)। परमेश्वर के इस वचन को सुनने के द्वारा ही हम उसके अस्तित्व को जानते हैं और उसमें विश्वास करते हैं, और यह विश्वास करते हैं कि वह पूरे ब्रह्मांड का सृष्टिकर्ता है। यदि यह परमेश्वर के वचन के लिए नहीं होता, तो कोई भी ऐसा नहीं होता जो उसे जानता होता, और न ही उससे डरता होता। न ही हम परमेश्वर के वचन के बिना अपने पापों के बारे में जान सकते थे—एक भी व्यक्ति नहीं। 
दूसरे शब्दों में, हम मूल रूप से परमेश्वर से अनजान थे, व्यर्थ वस्तुओं की आराधना करते थे, और अपने स्वयं के पापों से अनजान थे। परन्तु परमेश्वर ने हमें व्यवस्था दी, और इसी से हमें परमेश्वर के साम्हने अपने पापों का पता चला। दस आज्ञाओं के रूप में उसके व्यवस्था के वचन और व्यवस्था की ६१३ विस्तृत लेखों को सुनने के द्वारा ही हमें अपनी कमियों और पापों का पता चला।
व्यवस्था के वचन के बिना कोई भी व्यक्ति अपने पापों को नहीं जान सकता। सलाखों के पीछे लगभग हर अपराधी दावा करेगा कि उसे नहीं पता कि उसका अपराध क्या था, या उसे क्यों बंद कर दिया गया था। उनमें से कई निर्दोष होने का दावा करते हैं; कि उन्हें गलत और अन्यायपूर्ण तरीके से जेल भेज दिया गया। परमेश्वर की व्यवस्था को जाने बिना, हम यह कहते हुए अपने स्वयं के पापों के बारे में नहीं जान सकते, "मैंने हमेशा इस तरह से कार्य किया है। हर कोई करता है। यह पाप कैसे हो सकता है?"
परमेश्वर की व्यवस्था को देखने और सुनने से ही हमें अपने पापों का ज्ञान हुआ है। हमें पता चला है कि अन्य देवताओं की हमारी आराधना, व्यर्थ में परमेश्वर के नाम की हमारी पुकार, सब्त का पालन करने में हमारी विफलता, हमारा हत्या करना, हमारा व्यभिचार, हमारी चोरी, हमारा झूठ, हमारी ईर्ष्या- परमेश्वर के वचन के अनुसार जीने में हमारी विफलता, संक्षेप में, सभी पाप के कार्य हैं क्योंकि परमेश्वर की व्यवस्था ऐसा कहती है। इस तरह से हमने महसूस किया और पहचाना कि हम परमेश्वर के सामने पापी थे, व्यवस्था के वचन के द्वारा। इस व्यवस्था से पहले, हम अपने पापों को भी नहीं जानते थे।
यह जान लेने के बाद कि हम पापी हैं, हमें परमेश्वर के सामने क्या करना चाहिए? हमें यह पूछने की जरूरत है कि हमारे पापों को कैसे क्षमा किया जा सकता है। यह परमेश्वर के वचन को सुनने से है कि हम अपने पापों को जानते हैं, और उद्धार की अपनी आवश्यकता को महसूस करते हैं। जैसे भूखे को भोजन की आवश्यकता महसूस होती है, वैसे ही जो लोग यह पहचानते हैं कि उन्होंने परमेश्वर के नियम को तोड़ा है और जानते हैं कि वे गंभीर पापी हैं, उन्हें उद्धार की आवश्यकता का एहसास होता है। इस तरह से हम परमेश्वर को ढूँढ़ने आते हैं और यीशु मसीह, जिसे उसने हमारे लिए भेजा है, उसके द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता पर विश्वास करने की हमारी आवश्यकता को पहचानते हैं। जैसे "विश्वास सुनने से होता है," हम परमेश्वर के वचन को सुनने के द्वारा अपने पापों को जानते हैं।
 


अब हम जानते है की हम पापी है। तो फिर हमें हमारे पापों से छूटकारा पाने के लिए क्या करना चाहिए?


उद्धार परमेश्वर के वचन में विश्वास के द्वारा आता है जो हमारे दिलों के केंद्र में है, ठीक वैसे ही जैसे हमें परमेश्वर के वचन को सुनने और सीखने के द्वारा अपने पापों का एहसास हुआ। जैसा कि रोमियों ३:२१-२२ कहता है, "परन्तु अब व्यवस्था से अलग परमेश्वर की वह धार्मिकता प्रगट हुई है, जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते है, अर्थात् परमेश्वर की वह धार्मिकता जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करनेवालों के लिये है।"
हमें अपनी व्यवस्था देकर, परमेश्वर ने हमें बताया की हम उसके सामने पापी हैं, क्योंकि हम उसके वचन से जीने में असफल रहे हैं। फलस्वरूप हमारी दो अलग-अलग ज़रूरतें होती हैं: हम व्यवस्था के अनुसार जीना चाहते हैं, लेकिन साथ ही, हम पाप से अपने उद्धार की तलाश करते हैं। परन्तु क्योंकि "... अब व्यवस्था से अलग परमेश्वर की धार्मिकता प्रगट हुई है," जिन्हें अपने पापों से छुटकारा मिलना है, उन्हें व्यवस्था में नहीं, बल्कि परमेश्वर की इस धार्मिकता में अपने विश्वासों के द्वारा छुटकारे को प्राप्त करना चाहिए। हम जानते हैं कि यह छुटकारा परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने से नहीं, बल्कि परमेश्वर के द्वारा दिए गए उद्धार पर विश्वास करने से आता है, परमेश्वर की उस धार्मिकता में जिसने हमें यीशु मसीह के द्वारा बचाया है। 
तो फिर, यह परमेश्वर की धार्मिकता और उसका उद्धार क्या है? यह पानी और आत्मा का सुसमाचार है, जिसके बारे में पुराने और नए नियम दोनों में कहा गया है। पानी और आत्मा का सुसमाचार पुराने नियम में बलिदान प्रणाली में विश्वास के द्वारा उद्धार के रूप में और नए नियम में यीशु के बपतिस्मा और उसके क्रूस पर विश्वास के रूप में प्रकट होता है। रोमियों ३:२१-२२ कहता है, “परन्तु अब व्यवस्था से अलग परमेश्‍वर की वह धार्मिकता प्रगट हुई है, जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्‍ता देते हैं, अर्थात् परमेश्‍वर की वह धार्मिकता जो यीशु मसीह पर विश्‍वास करने से सब विश्‍वास करनेवालों के लिये है। क्योंकि कुछ भेद नहीं।”
तब हम परमेश्वर की धार्मिकता कैसे प्राप्त कर सकते हैं? हम परमेश्वर की धार्मिकता को व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं द्वारा गवाही दिए गए परमेश्वर के वचन के माध्यम से जानने के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं, कि यीशु ही परमेश्वर और हमारा उद्धारकर्ता है, और हम उस पर हमारे विश्वासों के माध्यम से हमारे सभी पापों से बच सकते है। 
दूसरे शब्दों में, हम परमेश्वर की धार्मिकता को उसके वचन में विश्वास करने के द्वारा प्राप्त करते हैं, जिसकी गवाही व्यवस्था और पुराने नियम के भविष्यवक्ताओं द्वारा दी गई है। व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं ने परमेश्वर के वचन की गवाही दी यह इब्रानियों और रोमियों के पहले अध्यायों में भी दिखाया गया है।
यह कि यीशु हमें छुड़ाने आया, वह वो उद्धार है जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने हमसे की थी। उन पापियों को बचाने का यह वादा, जो व्यवस्था के अधीन थे और उनके विनाश के लिए बाध्य थे, हजारों साल पहले परमेश्वर द्वारा किया गया था। उसने बार-बार इस वादे को दोहराया था और यह खुलासा किया था कि कैसे वह हमारे पहले आए अपने कई सेवकों के माध्यम से इसे पूरा करेगा। 
आइए उदाहरण के लिए एक भाग को देखें। लैव्यव्यवस्था १६:२१ कहता है, “और हारून अपने दोनों हाथों को जीवित बकरे पर रखकर इस्राएलियों के सब अधर्म के कामों, और उनके सब अपराधों, अर्थात् उनके सारे पापों को अंगीकार करे, और उनको बकरे के सिर पर धरकर उसको किसी मनुष्य के हाथ जो इस काम के लिये तैयार हो जंगल में भेजके छुड़वा दे।” रोमियों ३:२१-२२ का भाग जो कहता हैं कि परमेश्वर की धार्मिकता की गवाही व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं द्वारा दी गई थी, इसका अर्थ है कि यीशु के सम्पूर्ण उद्धार को पुराने नियम के तम्बू के बलिदानों और यशायाह, यहेजकेल, यिर्मयाह और दानिय्येल जैसे भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से प्रकट किया गया था। 
दूसरे शब्दों में, परमेश्वर ने पुराने नियम के वचन के माध्यम से पहले ही प्रकट कर दिया था कि वह उद्धार की अपनी प्रतिज्ञा को कैसे पूरा करेगा—कि वह यीशु मसीह को भेजकर, उसे अपने बपतिस्मा के द्वारा जगत के सभी पापों को उठावाया, हमारी जगह क्रूस पर मरा, और इस प्रकार अपनी देह से हमारे पापों का भुगतान किया, यह सब परमेश्वर की धार्मिकता के द्वारा पापों से हमारे छुटकारे के लिए किया। हमारा उद्धार इस प्रकार व्यवस्था के द्वारा नहीं है, परन्तु परमेश्वर की धार्मिकता यानी स्वयं यीशु पर हमारे विश्वास के द्वारा है, जैसा कि व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं दोनों के द्वारा गवाही दी गई है।
    परमेश्वर हमें बताता है कि हम उसकी धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा अपने पापों से बचाए गए हैं, जिसे यीशु मसीह ने पूरा किया था। हमारा विश्वास परमेश्वर के इस वचन यानी यीशु मसीह के वचन को सुनने से आता है। हम कैसे जान सकते हैं और विश्वास कर सकते हैं कि यीशु हमारा उद्धारकर्ता है? हम परमेश्वर के सेवको के द्वारा बोले गए वचनों के द्वारा जानते हैं और विश्वास करते हैं कि यीशु हमारा उद्धारकर्ता है, कि उसने अपनी योजना के अनुसार हमें बचाने का वादा किया था, और यह कि यीशु इस वादे और योजना के अनुसार हमें बचाने आया था। जैसा कि दानिय्येल ९:२४ में लिखा गया है, “तेरे लोगों और तेरे पवित्र नगर के लिये,
सत्तर सप्‍ताह ठहराए गए हैं,
कि उनके अन्त तक अपराध का होना बन्द हो,
और पापों का अन्त और अधर्म का प्रायश्‍चित किया जाए,
और युगयुग की धार्मिकता प्रगट हो,
और दर्शन की बात पर और भविष्यद्वाणी पर छाप दी जाए,
और परमपवित्र का अभिषेक किया जाए।”
 


परमेश्वर ने हमारे लोगों के लिए सत्तर सप्ताह को ठहराया है


हम दानिय्येल की पुस्तक के उपरोक्त भाग को जारी रखते हैं। जो सन्दर्भ वर्णन करता है वह है बाबुल द्वारा इस्राएल का पतन, जब परमेश्वर ने निर्धारित किया कि इस्राएलियों को, उनकी मूर्तिपूजा के कारण, कैदी के रूप में बाबुल ले जाया जाएगा और वहां सत्तर सप्ताह तक गुलामों के रूप में रहेंगे। जैसा कि परमेश्वर द्वारा निर्धारित किया गया था, इस्राएल पर हमला किया गया और बाबुल द्वारा उसे जित लिया गया, और तबाही का सामना करने में असमर्थता ने आक्रमणकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, जिन्होंने कई इस्राएलियों को बंदी बना लिया और उन्हें अपने दासों के रूप में बदल दिया। पकड़े गए कैदियों में दानिय्येल जैसे बुद्धिमान भी थे, जिन्हें बेबीलोन के राजा ने अपना सलाहकार बनाया था।
इस प्रकार परमेश्वर ने इस्राएलियों को उनके पापों के लिए इस तरह से दंडित किया, लेकिन क्योंकि वह दयालु था, उसने अपना क्रोध हमेशा के लिए बनाए नहीं रखा, बल्कि ७० सप्ताह में उन्हें स्वतंत्र करने की योजना बनाई। 
जब दानिय्येल ने अपने लोगों की ओर से परमेश्वर के सामने पश्चाताप करते हुए, उसकी दया और छुटकारे के लिए प्रार्थना की, तो परमेश्वर ने एक स्वर्गदूत को भेजा जिसने उपरोक्त भाग कहा: “तेरे लोगों और तेरे पवित्र नगर के लिये सत्तर सप्‍ताह ठहराए गए हैं कि उनके अन्त तक अपराध का होना बन्द हो, और पापों का अन्त और अधर्म का प्रायश्‍चित किया जाए, और युगयुग की धार्मिकता प्रगट हो; और दर्शन की बात पर और भविष्यद्वाणी पर छाप दी जाए, और परमपवित्र का अभिषेक किया जाए।” यह भाग दानिय्येल से परमेश्वर की प्रतिज्ञा है कि वह अपने लोगों के सभी पापों को ७० सप्ताह में क्षमा कर देगा जब उनके अपराध समाप्त हो जाएंगे। यह हमारे सामने यीशु मसीह के माध्यम से परमेश्वर के प्रतिज्ञा किए हुए छुटकारे को भी प्रकट करता है।
क्योंकि इस्राएलियों ने कई पाप किए थे, परमेश्वर को उन्हें दंड देना पड़ा, और ७० सप्ताह की गुलामी की कीमत के लिए, परमेश्वर ने उनके पिछले सभी पापों को क्षमा कर दिया। जब अपराध समाप्त हो जाएगा, और पापों का अंत हो जाएगा, तब इस्राएलियों के सब पाप नहीं रहेंगे। जब अधर्म का मेल हो जाता है, अनन्त धार्मिकता लायी जाती है, और दर्शन और भविष्यवाणी पर मुहर लगा दी जाती है, तब दानिय्येल से कहे गए परमेश्वर के सभी वचन पूरे होंगे। ७० सप्ताह की गुलामी के माध्यम से, ये सब कष्ट सहन करते है, और ७०वें सप्ताह में, इस्राएली अपने वतन को लौट जाते थे। 
यह वही है जो परमेश्वर ने दानिय्येल को अपने दूत के द्वारा बताया था। यह वादा इस्राएलियों के लिए किया गया एक वादा था, लेकिन इसका एक आत्मिक महत्व भी है - जैसे परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों और उनके पवित्र शहर के लिए ७० सप्ताह ठहराए थे, वैसे ही परमेश्वर ने हम सभी के लिए जो उस पर विश्वास करते है स्वर्ग में पवित्र शहर, हमारा परमेश्वर का राज्य तैयार किया है।
रोमियों में, यह कहा गया है, “परन्तु अब व्यवस्था से अलग परमेश्‍वर की वह धार्मिकता प्रगट हुई है, जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्‍ता देते हैं, अर्थात् परमेश्‍वर की वह धार्मिकता जो यीशु मसीह पर विश्‍वास करने से सब विश्‍वास करनेवालों के लिये है। क्योंकि कुछ भेद नहीं।” जब यीशु इस पृथ्वी पर आया, बपतिस्मा लिया, और क्रूस पर मर गया, तब हमारे सभी अपराध समाप्त हो गए, हमारे पाप समाप्त हो गए, अनन्त धार्मिकता प्रकट हुई, और दर्शन और भविष्यवाणी पर मुहर लगा दी गई। दानिय्येल की किताब से लिया गया यह भाग "परम पवित्र का अभिषेक किया जाए" के साथ समाप्त होता है। इसका क्या मतलब है? "परम पवित्र" यीशु मसीह के अलावा किसी और को संदर्भित नहीं करता है, जो इस पृथ्वी पर अभिषिक्त होने के लिए आएगा। 
अभिषिक्त होने का क्या अर्थ है? कि यीशु राजा, परमेश्वर के राज्य का महायाजक और भविष्यवक्ता के तीन पदों पर कार्य करेगा। हमारे राजा, महायाजक और भविष्यवक्ता के रूप में, यीशु हमें हमारे सभी पापों से छूटकारा दिलाने के लिए परमेश्वर की इच्छा को पूरा करेंगे। जैसा कि दानिय्येल से बात करने वाले स्वर्गदूत द्वारा भविष्यवाणी की गई थी, यीशु मसीह ने हमारे सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया और इस पृथ्वी पर आने और बपतिस्मा लेने के द्वारा हमारे स्थान पर न्याय किया गया।
"विश्वास सुनने से आता है।" तो फिर, हम परमेश्वर की धार्मिकता के इस सुसमाचार को कैसे सुन और विश्वास कर सकते हैं? हम कैसे विश्वास कर सकते हैं कि यीशु मसीह हमारा उद्धारकर्ता है? हम पुराने और नए नियम में बोले गए परमेश्वर के वचन को सुन सकते हैं और उस पर विश्वास कर सकते हैं - परमेश्वर के भविष्यवक्ताओं और उसके सेवकों द्वारा बोले गए वचनों के द्वारा। इसलिए पौलुस ने कहा कि विश्वास सुनने से आता है, और यह विश्वास मसीह के वचन को सुनने से आता है।
पुराने नियम के भविष्यवक्ताओं, जैसे दानिय्येल और यशायाह, ने यीशु मसीह के आने के बारे में भविष्यवाणी की थी। यशायाह ने विशेष रूप से भविष्यवाणी की, “निश्‍चय उसने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दु:खों को उठा लिया” और “वह सताया गया, तौभी वह सहता रहा और अपना मुँह न खोला; जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय और भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उसने भी अपना मुँह न खोला” (यशायाह ५३:४,७)। 
यशायाह के समय में किसने विश्वास किया होगा कि यीशु मसीह एक कुँवारी से पैदा होकर इस पृथ्वी पर आयेगा, जो सभी सामान्य लोगों में सबसे आम है, ३३ साल तक जीवित रहेगा, बपतिस्मा लेगा, क्रूस पर चढ़ाया जाएगा, और तीसरे दिन मृत्यु से जीवित होगा? तौभी यशायाह ने यीशु के आने से लगभग ७०० वर्ष पहले देखा और भविष्यवाणी की थी कि ये सब बातें पूरी होंगी। उसने इस बात की गवाही दी कि मसीह हमारे दुःख और हमारे सभी पापों को सहन करेगा। 
यही कारण है कि रोमियों की पुस्तक लिखते समय पौलुस ने पुराने नियम के वचन का बार-बार उपयोग किया, यह समझाने के लिए कि कैसे परमेश्वर के सेवकों ने इस बात की गवाही दी कि कैसे यीशु इस पृथ्वी पर आकर, हमारे सारे पापों को उठाकर, और हमें परमेश्वर की धार्मिकता से उद्धार देकर हमारा उद्धारकर्ता बना।
 


सब ने पाप किया है


रोमियों ३:२३-२४ कहता है, “इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं, 24परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंतमेंत धर्मी ठहराए जाते हैं।” क्योंकि हम पाप में पैदा हुए थे और सभी ने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है, हम उसकी महिमा और उसके राज्य की महिमा से रहित है। परन्तु हम यीशु मसीह में छुटकारे के द्वारा परमेश्वर के अनुग्रह से स्वतंत्र रूप से धर्मी ठहराए गए। हमारा न्याय मुफ्त था, बिना किसी कीमत के। हमें अपने पापों के लिए मजदूरी का भुगतान नहीं करना पड़ा क्योंकि यीशु ने हमारे सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया और क्रूस पर अपने जीवन के साथ इस कीमत का भुगतान किया केवल हमें जो परमेश्वर को सुनते है और विश्वास करते है उन्हें बचाने के लिए। 
सारे पापों से उद्धार में विश्वास से हमारा क्या तात्पर्य है? हमारा सीधा मतलब है परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास। परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने का कर्मो से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन सब कुछ हमारे ह्रदय से जुड़ा है। हम अपने प्रभु के वचन को सुनने और अपने दिल से उस पर विश्वास करने से धर्मी बन जाते हैं। हमें हमारे पापों से बचाने के लिए, हमारा प्रभु इस धरती पर आया, परमेश्वर का मेम्ना बन गया, जिसने यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से बपतिस्मा लेकर जगत के सभी पापों को उठा लिया, और क्रूस पर मर गया। तीसरे दिन, वह मृत्यु में से जी उठा और अब पिता परमेश्वर के दाहिने हाथ विराजमान है। 
यीशु ने संसार के सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया, हमारे पापों की सजा के लिए अपने जीवन के बलिदान से कीमत चुकाई, और मृत्यु से पुनरुत्थित हुए; केवल हमें अपनी निश्चित मृत्यु से बचाने के लिए। इस पर विश्वास करने से हम बच जाते हैं। हमारा उद्धार विश्वास से आता है, और हमारा विश्वास परमेश्वर के लिखित वचन को सुनने से आता है, और हमारा सुनना मसीह के वचन से होता है।
"विश्वास सुनने से आता है।" हम अपने दिल से विश्वास करते हैं। हमारी बुद्धि ज्ञान के लिए है, जबकि हमारे शरीर काम करने के लिए हैं, और यह हमारे दिल में है कि हम विश्वास करते हैं। तो फिर, हमें अपने दिलों में क्या विश्वास करना चाहिए, और कैसे? परमेश्वर के वचन को सुनकर, हम उसका सुसमाचार सुन सकते हैं, और उसके सुसमाचार को सुनकर, हम विश्वास कर सकते हैं, और विश्वास रखने से, हम बचाए जा सकते हैं। जब हम विश्वास करते हैं, तो हम परमेश्वर के वचन पर विश्वास करते हैं—अर्थात, हम उस लिखित वचन में विश्वास करते हैं जो यह घोषणा करता है कि मसीह ने हमारे सभी पापों को अपने बपतिस्मा के द्वारा ले लिया, क्रूस पर मर गया और मृत्यु से फिर से जी उठा।
परमेश्वर के वचन में विश्वास रखना उसकी धार्मिकता में विश्वास रखना है। इसलिए, परमेश्वर के वचन को सुने बिना विश्वास करना व्यर्थ और बेकार है। परमेश्वर किसी के सपने में प्रगट हुए थे ऐसे दावे झूठे है।
हम केवल विश्वास और विश्वास के द्वारा बचाए गए हैं। आइए हम एक बार और पढ़ें, रोमियों ३:२४-२६: “परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंतमेंत धर्मी ठहराए जाते हैं। उसे परमेश्‍वर ने उसके लहू के कारण एक ऐसा प्रायश्‍चित ठहराया, जो विश्‍वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किए गए और जिन पर परमेश्‍वर ने अपनी सहनशीलता के कारण ध्यान नहीं दिया। उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे। वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो कि जिससे वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्‍वास करे उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो।” आमीन। हमारे प्रभु को हमारे पापों का प्रायश्चित बनाया गया था। हमारे पापों के कारण, हमें परमेश्वर का शत्रु बना दिया गया था, लेकिन यीशु ने अपने बपतिस्मा, मृत्यु और पुनरुत्थान के साथ हमारे पापों का प्रायश्चित बनकर परमेश्वर के साथ हमारे संबंध को फिर से स्थापित किया। 
रोमियों ३:२५-२६ के मध्य में यह सन्दर्भ है, “उसे परमेश्‍वर ने उसके लहू के कारण एक ऐसा प्रायश्‍चित ठहराया, जो विश्‍वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किए गए और जिन पर परमेश्‍वर ने अपनी सहनशीलता के कारण ध्यान नहीं दिया। उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे।” यह भाग हमें बताता है कि परमेश्वर ने बहुत लंबे समय तक धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की थी, और वह न्याय के दिन तक प्रतीक्षा करेगा। जो यीशु मसीह में विश्वास करते हैं, जो पानी और लहू के द्वारा उद्धार में विश्वास करते हैं, जो पुत्र के उद्धार में विश्वास करते हैं, जो पिता परमेश्वर के लिए प्रायश्चित बन गया - उनके सभी पाप परमेश्वर के द्वारा पारित हो गए हैं। "पापों को पारित करने" का अर्थ है कि परमेश्वर ने उन लोगों के पापों को दूर कर लिया है जो परमेश्वर के वचन और उसके सुसमाचार को सुनते हैं और उस पर विश्वास करते हैं, वही लोग जो यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसके लहू में विश्वास करते हैं।
हम अपने जीवन में समय-समय पर लड़खड़ा सकते हैं, लेकिन यह हमारे शरीर और दिमाग की कमजोरी के कारण है, और जब तक हम यीशु के उद्धार को नकार नहीं करते, तब तक परमेश्वर इन सभी पापों को पापों के रूप में नहीं देखेगा। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर उन लोगों के पापों को नहीं देखता है जो अपने दिलों में यीशु मसीह के पानी और लहू में विश्वास करके बचाए गए हैं, लेकिन उनसे बाख जाते है। 
तो फिर, परमेश्वर हमारे पापों को क्यों छोड़ देता है? वह ऐसे पापों की उपेक्षा कैसे कर सकता है, जबकि वह पवित्र और न्यायी परमेश्वर है? ऐसा इसलिए है क्योंकि मसीह इस दुनिया में आया और बपतिस्मा लिया। यह इसलिए है क्योंकि यीशु ने अपने बपतिस्मा और क्रूस पर चढ़ाए जाने के साथ जगत के सभी पापों को मिटा दिया है कि परमेश्वर हमारे पहले किए गए पापों को नहीं देखता हैं। क्या पहले किए गए पाप केवल हमारे मूल पाप को संदर्भित करते हैं? नहीं, ऐसा नहीं हैं, क्योंकि वे हमारे मूल पाप के रूप में प्रकट हो सकते हैं, हमारे अनन्त परमेश्वर पिता के लिए सब कुछ अतीत में है।
अनंत काल की दृष्टि से इस संसार में समय सदैव अतीत के रूप में प्रकट होता है। इस दुनिया की शुरुआत और अंत है, लेकिन परमेश्वर शाश्वत है, और इसलिए जब हम परमेश्वर के समय की तुलना अपने सांसारिक समय से करते हैं, तो दुनिया के सभी पाप उनके सामने अतीत में किए गए पापों के रूप में प्रकट होते हैं। “कि जो पाप पहले किए गए और जिन पर परमेश्‍वर ने अपनी सहनशीलता के कारण ध्यान नहीं दिया। उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे।” इसलिए परमेश्वर हमारे पापों को नहीं देखता है। ऐसा इसलिए नहीं है कि हमारे पापों को देखने के लिए उसके पास आंखें नहीं हैं, लेकिन वह उन्हें नहीं देखता क्योंकि उसके पुत्र यीशु मसीह ने हमारे पापों की कीमत का भुगतान किया है। क्योंकि मसीह के बपतिस्मा और क्रूस पर चढ़ाए जाने से हमारे पाप धुल गए, हम वास्तव में पापरहित लोगों के रूप में परमेश्वर के सामने प्रकट होते हैं। 
परमेश्वर हमारे पापों को कैसे देख सकता था जब यीशु मसीह, जिसके द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता की पूर्ति ने उन सभी को छुड़ाया जो इसमें विश्वास करते थे, पहले ही उन्हें हमसे दूर कर दिया था? इस तरह से परमेश्वर अपनी धार्मिकता को अब उन पापों को पारित करने के द्वारा प्रदर्शित करता है जो पहले किए गए थे, वे पाप जिनकी कीमत पहले ही यीशु मसीह द्वारा चुकाई जा चुकी हैं।
परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास मसीह के वचन से आता है क्योंकि मसीह के वचन में ही परमेश्वर की धार्मिकता समाहित है। अपनी धार्मिकता का प्रदर्शन करके, परमेश्वर ने न केवल अपनी धार्मिकता बल्कि यीशु मसीह में विश्वास करने वालों की धार्मिकता भी दिखाई। परमेश्वर हमें हमारे सभी पापों से छुटकारा दिलाते हैं, और हम भी अपने दिलों में विश्वास करते हैं कि यीशु ने हमारे सभी पापों को दूर कर दिया है। इस कारण हम पापरहित और धर्मी बन गए हैं, जैसा कि हम ने मसीह की धार्मिकता को पहिन लिया है (गलातियों ३:२७)। क्योंकि परमेश्वर और हम दोनों धर्मी हैं, हम सब मिलकर एक परिवार हैं, और आप और मैं उनकी सन्तान हैं। क्या आप इस खूबसूरत सुसमाचार पर विश्वास करते हैं? 
क्या इसका मतलब यह है कि हमारे पास ऐसा कुछ है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं? बिलकूल नही! हमारे पास घमण्ड करने के लिए क्या है जबकि वास्तव में हमारा उद्धार केवल मसीह के वचन को सुनने और उस पर विश्वास करने से ही संभव है? क्या हम अपने ही कामों के कारण बचाए गए थे? गर्व करने के लिए क्या है? कुछ नहीं! क्या आप इसलिए बचाए गए है क्योंकि आपने सुबह-सुबह कलीसिया की सेवाओं में भाग लिया था? क्या आप इसलिए बचाए गए है क्योंकि आप कभी रविवार की कलीसिया सेवा को नहीं चुके है? क्या आप इसलिए बचाए गए है क्योंकि आपने निश्चित रूप से दशमांश दिया है? बिलकूल नही। 
ये सभी कर्म हैं, और कर्मों पर आधारित विश्वास या कर्मों से जुड़ा विश्वास गलत विश्वास हैं। हम अपने हृदयों में परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा ही अपने पापों से बचाए गए है। विश्वास सुनने से आता है, और उद्धार मसीह के वचन में विश्वास करने से आता है। 
यीशु पर विश्वास करने के बाद पश्चाताप की प्रार्थनाओं के माध्यम से पापों की क्षमा प्राप्त करने का प्रयास करना भी एक झूठा विश्वास है, क्योंकि सच्चा विश्वास केवल परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने से आता है, न कि व्यवस्था के कार्यों से। जैसा कि परमेश्वर का वचन कहता है, “तो घमण्ड करना कहाँ रहा? उसकी तो जगह ही नहीं। कौन–सी व्यवस्था के कारण से? क्या कर्मों की व्यवस्था से? नहीं, वरन् विश्‍वास की व्यवस्था के कारण। इसलिये हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि मनुष्य व्यवस्था के कामों से अलग ही, विश्‍वास के द्वारा धर्मी ठहरता है। क्या परमेश्‍वर केवल यहूदियों ही का है? क्या अन्यजातियों का नहीं? हाँ, अन्यजातियों का भी है” (रोमियों ३:२७-२९)।
इस्त्रााएलियों और अन्यजातियों दोनों के लिए उद्धार यह सुनने और उनके हृदय में विश्वास करने के द्वारा आता है कि यीशु मसीह ने अपने पानी और लहू से उनका उद्धार किया है। जब हम परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं तो हम अपने पापों से बच जाते हैं। जब हम इस धार्मिकता में विश्वास करते हैं जो कि यीशु मसीह है, हम अपने पापों से बच जाते हैं, परमेश्वर हमारे पिता बन जाते हैं, और हम उनकी सन्तान बन जाते हैं। यह उद्धार परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास के द्वारा, मसीह के वचन को सुनने और उस पर विश्वास करने के मिलता है। हमारा विश्वास परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने से होता हैं।
हमारा उद्धार मसीह के वचन में हमारे विश्वास के द्वारा होता है। तो क्या आप विश्वास करते हैं कि मसीह इस धरती पर आपके उद्धारकर्ता के रूप में आए, उसने अपने बपतिस्मा के द्वारा जगत के सभी पापों को परमेश्वर के लिए एक प्रायश्चित के रूप में ले लिया, और वह क्रूस पर मर गए और तीसरे दिन मृत्यु से जीवित हुआ और अब परमेश्वर पिता के दाहिने हाथ पर बिराजमान है? क्या आप वास्तव में इस उद्धार में, हमारे प्रभु यीशु मसीह के इस प्रायश्चित में विश्वास करते हैं?
ऐसे कई लोग हैं जो परमेश्वर से अपने सपनों में प्रकट होने के लिए कहते हैं, जो कहते हैं कि वे तभी विश्वास करेंगे यदि वे केवल एक बार अपनी आंखों से परमेश्वर को देखे। कुछ लोग तो यह भी दावा करते हैं कि उन्होंने अपने सपनों में यीशु को देखा है, कि उन्होंने उनसे ऐसी-ऐसी बातें करने के लिए कहा- जैसे की यहाँ एक कलीसिया का निर्माण करे, वहाँ एक प्रार्थना केंद्र का निर्माण करे, आदि.., लेकिन आमतौर पर कुछ ऐसा जिसके लिए पैसे की आवश्यकता होती है-और इस तरह के झूठे दावों से धोखा खाकर, कई गुमराह हो जाते हैं और भटक जाते हैं। इस मसीही दुनिया में बहुत सी दुखद घटनाएं हैं। आपको यह समझना चाहिए कि ये सब हमारे प्रभु के काम नहीं हैं, बल्कि स्वयं शैतान के हैं।
यदि किसी भी तरह से आप सपने में यीशु को देखते हैं, तो इसे बहुत गंभीरता से न लें। सपने तो सपने ही होते हैं। यीशु कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो आपके सामने इस प्रकार प्रकट होगा। अन्यथा, बाइबल की कोई आवश्यकता नहीं होती। यदि यीशु हमारे सामने एक बार भी प्रकट होते हैं, तो हमें बाइबिल को बंद कर देना चाहिए, क्योंकि अब इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन इसका मसीह के उद्धार के कार्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। 
यदि हमें बिना बाइबल के यीशु पर विश्वास करना होता, तो उन्हें सबके सामने प्रगट होना पड़ता। लेकिन इसकी कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारे प्रभु ने उद्धार की सभी आवश्यकताओं को पहले ही पूरा कर दिया है। इसलिए विश्वास मसीह के वचन को सुनने और उस पर विश्वास करने से आता है। तो क्या सभी लोगों ने यीशु मसीह के बारे में सुना है? हो सकता है कि उन्होंने यीशु मसीह के नाम के बारे में सुना हो, लेकिन उन सभी ने सच्चा सुसमाचार नहीं सुना है। इसलिए पौलुस ने पूछा, "और प्रचारक बिना कैसे सुने?" (रोमियों १०:१४)
इसलिए, हमें इस सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए जिसमें परमेश्वर की धार्मिकता है। लेकिन किसके साथ और कैसे? किस तरीके से या कैसे सुसमाचार का प्रचार किया जाता है यह महत्वपूर्ण नहीं है; बोले गए शब्दों या मुद्रित सामग्री के माध्यम से सुसमाचार फैलाने के सभी तरीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। विश्वास सुनने से आता है, और सुनना मसीह के वचन से होता है। सुसमाचार का प्रचार करने वाली मुद्रित सामग्री भी पाठकों को सच्चे विश्वास की ओर ले जा सकती है। विधि चाहे जो भी हो, आपको यह याद रखना चाहिए कि विश्वास केवल सुनने और सुनना सुसमाचार से ही आ सकता है।
यदि आप वास्तव में अपने हृदय में परमेश्वर के वचन में विश्वास रखते हैं, तो आप जानेंगे कि आप एक सच्चे मसीही हैं। मैं आशा और प्रार्थना करता हूँ कि आप इसे जानते हैं; कि आप अपने पापों से बचाए गए हैं। मैं यह भी आशा और प्रार्थना करता हूँ कि आप पानी और आत्मा के वचन को मजबूती से थामे रहेंगे। तो आइए हम रोमियों १०:१७ को एक साथ पढ़कर अपनी चर्चा समाप्त करें।
"अत: विश्वास सुनने से और सुनना मसीह के वचन से होता है।" आमीन। जो लोग परमेश्वर के इस लिखित वचन को सुनकर अपने दिल में विश्वास करते हैं, वे वो लोग है जिनके पास सच्चा विश्वास है। क्या आपके पास यह सच्चा विश्वास है? हमारे प्रभु ने हमें हमारे सभी पापों से छुड़ाया है। 
हम कितने आभारी और खुश हैं कि प्रभु ने हमारे सभी पापों को दूर किया है! सुसमाचार के बिना, लोग हमेशा हतोत्साहित होते हैं, लेकिन सिर्फ यह सुनकर कि यीशु ने अपने बपतिस्मा के साथ हमारे सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया, हमारे दिल खुशी से भर सकते हैं और हमारे विश्वास की बढ़ोतरी हो सकती है। 
हमें उद्धार देने के लिए मैं प्रभु का धन्यवाद करता हूँ।