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उपदेश

विषय ९ : रोमियों (रोमियों की पत्री किताब पर टिप्पणी)

[अध्याय 14] एक दूसरों का न्याय न करे

रोमियों १४:१ कहता है, “जो विश्‍वास में निर्बल है, उसे अपनी संगति में ले लो, परन्तु उसकी शंकाओं पर विवाद करने के लिये नहीं।”
पौलुस ने रोम के संतों को चेतावनी दी कि वे एक दूसरे के विश्वास का न्याय या आलोचना न करें। उस समय, चूँकि रोम की कलीसिया में उन दोनों प्रकार के ही लोग थे जो बहुत विश्वासयोग्य थे और जो इतने विश्वासी नहीं थे, वे एक दूसरे के विश्वास की आलोचना करते थे। यदि आपके साथ ऐसा होता है, तो आपको एक-दूसरे के विश्वास का सम्मान करना चाहिए और परमेश्वर के सेवकों के खिलाफ किसी भी आलोचनात्मक व्यवहार से दूर रहना चाहिए। यह परमेश्वर पर निर्भर है, हम पर नहीं, की वह अपने सेवको को उठाए और बनाए। 
यहाँ तक की परमेश्वर की कलीसिया के भीतर भी, विश्वासियों के बीच कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यदि हम उनके विश्वास पर एक नज़र डालें, तो हम सभी प्रकार के विश्वास को पा सकते हैं। कुछ अपने छुटकारे से पहले व्यवस्था से बंधे थे, और इस प्रकार, उनके पास अभी भी अपने पुराने व्यवस्था के विश्वास का अवशेष है।
कुछ मसीही चुनिंदा खाने में बहुत महत्व रखते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसे लोग विश्वास करते हैं कि उन्हें सूअर का मांस नहीं खाना चाहिए। दूसरे शायद यह विश्वास करें कि उन्हें किसी भी परिस्थिति में सब्त मनाना चाहिए। लेकिन हमें परमेश्वर की धार्मिकता में अपने विश्वास में इन मतभेदों को सुलझाना चाहिए और ऐसे छोटे-छोटे मामलों में एक-दूसरे की आलोचना नहीं करनी चाहिए। पौलुस जिस बारे में बात कर रहा था उसका सार यही है।
पौलुस अध्याय १४ में शिक्षा देता है कि यदि हमारे साथी विश्वासी परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते है तो हमें उनके दुर्बलता की आलोचना नहीं करनी चाहिए। क्यों नहीं? क्योंकि कमजोर होते हुए भी वे परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं।
बाइबल उन लोगों का सम्मान करती है जिन्हें परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा उनके पापों से छुटकारा मिल गया है, वे परमेश्वर के अनमोल लोग हैं। जबकि वे एक दूसरे की दृष्टि में अपर्याप्त लग सकते हैं, फिर भी परमेश्वर ने हमें आदेश दिया है कि हम दूसरे विश्वासियों के विश्वास की आलोचना न करें। इसका कारण यह है कि यद्यपि वे देह में अपर्याप्त हो सकते हैं, फिर भी वे विश्वास के द्वारा परमेश्वर की सन्तान बने।
 
 

प्रत्येक व्यक्ति का विश्वास एक दुसरे से भिन्न है


वचन २-३ कहता है, “एक को विश्‍वास है कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्‍वास में निर्बल है वह साग पात ही खाता है। “खानेवाला न–खानेवाले को तुच्छ न जाने, और न–खानेवाला खानेवाले पर दोष न लगाए; क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे ग्रहण किया है।”
परमेश्वर के सेवकों में उनकी धार्मिकता में विश्वास करने और उनका अनुसरण करने में विविधता हो सकती है। उद्धार में विश्वास एकसमान है, लेकिन परमेश्वर के वचन में विश्वास की मात्रा भिन्न हो सकती है। 
यदि कोई परमेश्वर की धार्मिकता के सुसमाचार में विश्वास के द्वारा नया जन्म प्राप्त करने से पहले एक विधिवादी था, तो उसे परमेश्वर की धार्मिकता में पूर्ण विश्वास के द्वारा अपनी स्वयं की धार्मिकता को त्यागने के लिए समय की आवश्यकता होगी। ये लोग सब्त के दिन को बहुत महत्व देते हैं, लेकिन आपको उनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे भी परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं। 
परमेश्वर उन लोगों के विश्वास से प्रसन्न होता हैं जो उसकी धार्मिकता को जानते हैं और उसमें विश्वास करते हैं। परमेश्वर ने उन्हें अपने लोगों के रूप में गिना है। इसलिए, जो लोग वास्तव में परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं, उन्हें अपने साथी विश्वासियों के विश्वास की कमजोरी की आलोचना करने के बजाय, अपने साथी विश्वासियों को परमेश्वर की धार्मिकता से पोषित करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।
 


हमें परमेश्वर के सेवकों का न्याय नहीं करना चाहिए


वचन ४ कहता है, “तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है? उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है; वरन् वह स्थिर ही कर दिया जाएगा, क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है।”
हमें परमेश्वर के उन सेवकों को स्वीकार करना चाहिए जिन्हें परमेश्वर ने स्वीकार किया है, और उनके विश्वासों को भी स्वीकार किया है। क्या आप अपना मसीही जीवन जीते हुए परमेश्वर के सेवकों की आलोचना और न्याय करते हैं? तब परमेश्वर आपके विश्वास को और भी अधिक दण्ड देगा। यदि आप परमेश्वर के द्वारा स्वीकार किए गए लोगों के विश्वास की निंदा केवल इसी लिए करते है क्योंकि आप उन्हें पसंद नहीं करते है, तो आप स्वयं को परमेश्वर के न्याय आसन पर चढ़ा रहे हैं और उसके सेवकों का न्याय कर रहे हैं। यह सही नहीं है। इसके बजाय, आपको परमेश्वर के उन सेवकों को भी कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार करना चाहिए जिन्हें आप नापसंद करते हैं, और परमेश्वर की धार्मिकता को ऊपर उठाते हुए उनके मार्गदर्शन का पालन करना चाहिए।
परमेश्वर हमारे विश्वास को स्वीकार करना चाहिए। हमें सच्चा विश्वास होना चाहिए जो परमेश्वर की प्रशंसा और प्रतिफल के योग्य हो। क्योंकि परमेश्वर ने हमें अपना जीवन यीशु मसीह को समर्पित करने की अनुमति दी है, हम उसकी धार्मिकता के लिए उसका धन्यवाद करते हैं। हमें उन लोगों को स्वीकार करना चाहिए जिन्हें परमेश्वर स्वीकार करता हैं, और उन लोगों का अस्वीकार करना चाहिए जिन्हें परमेश्वर अस्वीकार करता हैं। मुझे आशा है कि आप अपनी धार्मिकता को ऊपर उठाने के बजाय, परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करके परमेश्वर की महिमा करेंगे। मुझे आशा है कि परमेश्वर आपके विश्वास को स्वीकार करेंगे। तब आप परमेश्वर की धार्मिकता में अपने विश्वास के कारण ऊपर उठाए जाएंगे। 
 
 
यदि वे भी परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते है…

“कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर मानता है, और कोई सब दिनों को एक समान मानता है। हर एक अपने ही मन में निश्‍चय कर ले। जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिये मानता है। जो खाता है, वह प्रभु के लिये खाता है, क्योंकि वह परमेश्‍वर का धन्यवाद करता है, और जो नहीं खाता, वह प्रभु के लिये नहीं खाता और परमेश्‍वर का धन्यवाद करता है” (रोमियों १४:५-६)। 
यहूदियों में वे भी थे जो पानी और आत्मा के सुसमाचार के हमारे प्रभु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा बचाए गए थे। उनमें से बहुत से, यद्यपि वे यीशु में विश्वास करते थे, फिर भी व्यवस्था से बंधे थे। परन्तु वे पहले से ही परमेश्वर की धार्मिकता के सेवक थे क्योंकि उन्होंने व्यवस्था का पालन करने के लिए जो कुछ भी किया, उन्होंने परमेश्वर की धार्मिकता को फैलाने के लिए किया। 
इसलिए पौलुस कहता है, “मैं यहूदियों के लिये यहूदी बना कि यहूदियों को खींच लाऊँ। जो लोग व्यवस्था के अधीन हैं उनके लिये मैं व्यवस्था के अधीन न होने पर भी व्यवस्था के अधीन बना कि उन्हें जो व्यवस्था के अधीन हैं, खींच लाऊँ। व्यवस्थाहीनों के लिये मैं – जो परमेश्‍वर की व्यवस्था से हीन नहीं परन्तु मसीह की व्यवस्था के अधीन हूँ – व्यवस्थाहीन सा बना कि व्यवस्थाहीनों को खींच लाऊँ” (१ कुरिन्थियों ९:२०-२१)। 
हमें उन लोगों के विश्वास को न तो नज़रअंदाज़ करना चाहिए और न ही अस्वीकार करना चाहिए जो परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं। यदि वे परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं और उसकी सेवा करते हैं, तो हमें उन्हें परमेश्वर के सेवकों के रूप में स्वीकार करना चाहिए। 
 
 

धर्मी जन को प्रभु के लिए जीना चाहिए


वचन ७-९ कहता है, “क्योंकि हम में से न तो कोई अपने लिये जीता है और न कोई अपने लिये मरता है। यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिये जीवित हैं; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिये मरते हैं; अत: हम जीएँ या मरें, हम प्रभु ही के हैं। क्योंकि मसीह इसी लिये मरा और जी भी उठा कि वह मरे हुओं और जीवतों दोनों का प्रभु हो।”
हम मसीह के साथ जीते हैं और उसके साथ ही मरते हैं क्योंकि हम सुसमाचार में प्रकट परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा बचाए गए है और नया जीवन प्राप्त किया है। मसीह में सब पुरानी बातें बीत गईं, और हम नई सृष्टि बन गए है। वास्तव में परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने का अर्थ है सच्चाई को जानना और उस पर विश्वास करना कि आप मसीह के हैं। इस प्रकार, जो परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं, उनका इस संसार से कोई लेना-देना नहीं है और इसके बजाय वे परमेश्वर के सेवक बन गए हैं। 
यदि आप परमेश्वर के सेवक बन जाते हैं, तो आप उसे ऊँचा उठाएँगे, उससे प्रेम करेंगे, उसकी महिमा के लिए जिएँगे, और इस तरह से अपना जीवन जीने की अनुमति देने के लिए उसके प्रति आभारी होंगे।
क्या आप सचमुच मसीह के हैं? जो लोग पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करते हैं, उन्हें मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया है और उनके साथ फिर से जीवित किए गए हैं। चाहे हम जीवित रहें या मरें, हम परमेश्वर की धार्मिकता से मसीह के हैं। प्रभु उद्धार पाए हुए लोगों का प्रभु बन गया है।
 

हमें हमारे साथी विश्वासियों का न्याय नहीं करना चाहिए

वचन १०-१२ में यह लिखा है की, “तू अपने भाई पर क्यों दोष लगाता है? या तू फिर क्यों अपने भाई को तुच्छ जानता है? हम सब के सब परमेश्‍वर के न्याय सिंहासन के सामने खड़े होंगे। क्योंकि लिखा है, “प्रभु कहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध कि हर एक घुटना मेरे सामने टिकेगा, और हर एक जीभ परमेश्‍वर को अंगीकार करेगी।” इसलिये हम में से हर एक परमेश्‍वर को अपना अपना लेखा देगा।”
क्योंकि मसीह हमारा परमेश्वर जीवित है, हम एक दिन उसके सामने घुटने टेकेंगे और सब अंगीकार करेंगे। इसलिए हमें न्याय आसन पर बैठकर अपने भाइयों और बहनों का न्याय नहीं करना चाहिए, बल्कि विनम्रता के साथ परमेश्वर के सामने खड़े होना चाहिए। परमेश्वर की कलीसिया में एक दूसरे का न्याय करने और उसकी निंदा करने की तुलना में परमेश्वर की इच्छा के लिए जीना बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। यदि हम अपने भाइयों और बहनों की कमजोरियों का न्याय और निंदा करते हैं, तो परमेश्वर के सामने हमारी अपनी कमजोरियों के लिए हमारा न्याय किया जाएगा। यही कारण है कि हमें यह समझना चाहिए कि परमेश्वर की इच्छा के लिए, उसकी कलीसिया में एक साथ रहना कितना अच्छा है। 
सच्चा विश्वास साथी विश्वासियों की उन्नति करता है और परमेश्वर की धार्मिकता का अनुसरण करता है। याद रखें कि एक झूठा विश्वास परमेश्वर की धार्मिकता को त्याग देगा और केवल अपनी धार्मिकता का निर्माण करेगा। आपके बारे में क्या? क्या आप विश्वास के साथ परमेश्वर की धार्मिकता का अनुसरण कर रहे हैं? या आप अपने शरीर की धार्मिकता का अनुसरण कर रहे हैं? 
 

हमें दूसरों के विश्वास को सुधारना चाहिए

वचन १३-१४, “अत: आगे को हम एक दूसरे पर दोष न लगाएँ, पर तुम यह ठान लो कि कोई अपने भाई के सामने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे। मैं जानता हूँ और प्रभु यीशु में मुझे निश्‍चय हुआ है कि कोई वस्तु अपने आप से अशुद्ध नहीं, परन्तु जो उसको अशुद्ध समझता है उसके लिये अशुद्ध है।”
क्योंकि परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने वालों में विश्वास की मात्रा में अंतर है, इसलिए हमें एक दूसरे की उन्नति के द्वारा एक दूसरे के विश्वास का निर्माण करने के लिए कार्य करना चाहिए। यह परमेश्वर की धार्मिकता के विश्वासियों के लिए बढ़ोतरी लाता है। यदि हम वास्तव में परमेश्वर और उसकी धार्मिकता के लिए जीते हैं, तो हम सभी उसके लोग हैं।
यदि आप एक मसीही हैं जो परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं, तो आप परमेश्वर के वचन में अपने विश्वास के साथ कुछ भी कर सकते हैं। यदि आप ऐसा नहीं कर सकते हैं, तो इसका कारण यह है कि आप परमेश्वर की धार्मिकता के बजाय अपनी धार्मिकता का अनुसरण कर रहे हैं। परमेश्वर की धार्मिकता में अपनी धार्मिकता का अनुसरण करना संसार का अनुसरण करने और गलत विश्वास करने के समान है। 
वे जो अपनी धार्मिकता की खोज करते हैं, यद्यपि परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा बचाए गए हैं, वे परमेश्वर के शत्रुओं के रूप में जी रहे हैं। परमेश्वर चाहता है कि जो परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा बचाए गए हैं वे जीवन भर परमेश्वर की धार्मिकता का अनुसरण करते रहें।
 

प्रेम में चले

वचन १५-१८ कहता है, “यदि तेरा भाई तेरे भोजन के कारण उदास होता है, तो फिर तू प्रेम की रीति से नहीं चलता; जिसके लिये मसीह मरा, उसको तू अपने भोजन के द्वारा नष्‍ट न कर। अत: तुम्हारे लिये जो भला है उसकी निन्दा न होने पाए। क्योंकि परमेश्‍वर का राज्य खाना–पीना नहीं, परन्तु धर्म और मेलमिलाप और वह आनन्द है जो पवित्र आत्मा से होता है। जो कोई इस रीति से मसीह की सेवा करता है, वह परमेश्‍वर को भाता है और मनुष्यों में ग्रहणयोग्य ठहरता है।” 
जो लोग परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा बचाए गए हैं और इसे फैलाने के लिए जीवित हैं, वे केवल भोजन के लिए परमेश्वर के लोगों को तुच्छ नहीं जानते हैं। हम कभी-कभी भोजन बाँटते हैं और प्रेम में संगति करते हैं। लेकिन पौलुस हमें गरीब भाइयों और बहनों को बाहर करने और केवल अमीरों के बीच बाँटने के खिलाफ चेतावनी दे रहा है क्योंकि इससे हमारे साथी मसीही ठोकर खा सकते हैं।
जो आशीषें परमेश्वर ने उन लोगों को प्रदान की हैं जो उसकी धार्मिकता में विश्वास करते हैं वे हमें परमेश्वर की धार्मिकता का पालन करने की अनुमति दे रही हैं, पानी और आत्मा के सुसमाचार द्वारा दी गई हमारी मन की शांति, और एक दूसरे के आनंद में शामिल होते हुए, एक साथ प्रभु की सेवा करने में सक्षम हैं। इसलिए जो धनी हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि उनका सारा धन परमेश्वर की ओर से है, और उन्हें सुसमाचार की सेवा करने और परमेश्वर की धार्मिकता का एक साथ पालन करने के लिए दूसरों के साथ बाँटना चाहिए। ऐसे जीवन जीने वालों पर परमेश्वर प्रसन्न होते हैं और उनसे प्रेम करते हैं। 
 

दूसरों को सुधारने का प्रयास करे

वचन १९-२१ कहता है, “इसलिये हम उन बातों में लगे रहें जिनसे मेलमिलाप और एक दूसरे का सुधार हो। भोजन के लिये परमेश्‍वर का काम न बिगाड़। सब कुछ शुद्ध तो है, परन्तु उस मनुष्य के लिये बुरा है जिसको उसके भोजन से ठोकर लगती है। भला तो यह है कि तू न मांस खाए और न दाखरस पीए, न और कुछ ऐसा करे जिससे तेरा भाई ठोकर खाए।”
बहुत पहले, रोम और कुरिन्थ जैसे प्राचीन शहरों में, लोग ऐसे भोजन को बेचते थे जो कभी मूर्तियों को बलि के रूप में चढ़ाए जाते थे। परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने वाले कुछ लोग ऐसा मांस खरीद कर खाते थे। फिर, कुछ साथी विश्वासियों, जो परमेश्वर की कलीसिया में कमजोर विश्वास के थे, उन्होंने सोचा कि ऐसा मांस खाना पाप है। इसलिए पौलुस ने कहा, "भोजन के लिये परमेश्वर का काम न बिगाड़" (वचन २०)।
यही बात शराब पर भी लागू होती है। कुछ विश्वासी ऐसे भी थे जिन्हें शराब पीने की बात को लेकर ज्यादा चिंता नहीं थी। लेकिन पौलुस ने चेतावनी दी कि यदि इस तरह के व्यवहार से उनके साथी विश्वासियों का विश्वास कमजोर होता है, तो उनके लिए अच्छा होगा कि वे अपने साथी विश्वासियों को शराब पीने से ठेस न पहुँचाएँ। ऐसा हमारे बीच भी होता है। इसलिए, हमें अपने मसीही जीवन को इस तरह से जीना चाहिए जो दूसरों की उन्नति करे, और परमेश्वर की धार्मिकता की खोज करे। पूर्वजों को प्रसाद के रूप में उपयोग किए जाने वाले भोजन के संबंध में आज मुद्दे उठ सकते हैं, और विश्वास में कमजोर लोगों के लिए उस तरह का भोजन न खाना बेहतर है। 
 
 
परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास रखे

वचन २२-२३ कहता है, “तेरा जो विश्‍वास हो, उसे परमेश्‍वर के सामने अपने ही मन में रख। धन्य है वह जो उस बात में, जिसे वह ठीक समझता है, अपने आप को दोषी नहीं ठहराता। परन्तु जो सन्देह कर के खाता है वह दण्ड के योग्य ठहर चुका, क्योंकि वह विश्‍वास से नहीं खाता; और जो कुछ विश्‍वास से नहीं, वह पाप है।”
जो लोग परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं वे ही सही विश्वास रखते हैं। परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास परमेश्वर के द्वारा दिया गया विश्वास है जो हमारे सभी पापों को दूर करता है। इसलिए, मसीहीयों को परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करना चाहिए और परमेश्वर की धार्मिकता में उनका दृढ विश्वास होना चाहिए।
पवित्रशास्त्र हमें बताता है कि परमेश्वर की धार्मिकता पर विश्वास किए बिना उसका अनुसरण करना पाप है। विश्वास के बिना किया गया कोई भी कार्य पाप है। यह जानते हुए कि परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास के बिना किया गया कोई भी कार्य पाप है, हमें उसकी धार्मिकता पर अधिक विश्वास करना चाहिए। 
बाइबल कहती है, "जो सन्देह करके खाता है वह दोषी ठहर चुका है।" यदि आप परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास के साथ खाते हैं, तो सब कुछ शुद्ध है, क्योंकि हर पौधे और जानवर को परमेश्वर ने बनाया है। 
हमें यह समझना चाहिए कि परमेश्वर की धार्मिकता को जानना और उस पर विश्वास करना हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। हमें नया जन्म पाए हुए हमारे साथी विश्वासियों को भी सुधारना चाहिए और उनके विश्वास का सम्मान करना चाहिए।