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उपदेश

विषय १० : प्रकाशितवाक्य (प्रकाशितवाक्य पर टिप्पणी)

[अध्याय 16-2] सात काटोरे के उंडेले जाने से पहले आपको जो करना है वह यह है कि… ( प्रकाशितवाक्य १६:१-२१ )

सात काटोरे के उंडेले जाने से पहले आपको जो करना है वह यह है कि…
( प्रकाशितवाक्य १६:१-२१ )

सात कटोरों की विपत्तियों में से पहली विपत्ति वेदना की है, दूसरी विपत्ति समुद्र के लहू में परिवर्तित होने की, और तीसरी पिने के पानी के लोहू में बदल जाने की है। चौथी विपत्ति यह है कि लोग सूरज की गर्मी से झुलस जाएंगे।
मुख्य भाग हमें बताता है, “चौथे स्वर्गदूत ने अपना कटोरा सूर्य पर उंडेल दिया, और उसे मनुष्यों को आग से झुलसा देने का अधिकार दिया गया। मनुष्य बड़ी तपन से झुलस गए।” यह हमें बताता है कि परमेश्वर सूर्य को पृथ्वी के करीब ले जाएगा और उसके जीवन को जलाकर मृत्यु तक पहुंचा देगा। जब परमेश्वर ऐसा होने देंगे, तो कोई भी सूरज की चिलचिलाती गर्मी से बच नहीं पाएगा, भले ही कोई जमीन के नीचे एक गहरी गुफा खोदकर वहां छिप जाए। न ही इस विपत्ति के लिए तैयार किए गए उच्च दक्षता वाले एयर कंडीशनर को चालू करने से वे परमेश्वर की विपत्ति को रोक पाएंगे। उन सभी के पास मरने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। 
हम कल्पना कर सकते हैं कि जब इस विपत्ति का समय आएगा तो उनका क्या होगा—उनकी त्वचा छिल जाएगी; उनके भीतर का मांस सचमुच लाल हो जाएगा, टूट जाएगा और सड़ जाएगा। फिर प्रत्येक लोग त्वचा के कैंसर से मर जाएंगे।
और यहाँ तक की भले ही वे सूरज की चिलचिलाती गर्मी से जलकर मर जाएंगे लेकिन फिर भी लोग अपने पापों से पश्चाताप नहीं करेंगे। परमेश्वर की विपत्ति अद्भुत है और ये लोग भी अदभुत हैं जो इस विपत्ति से गुजरने के बाद भी पश्चाताप करने से इनकार करते हैं। जब वे पश्चाताप करने से इंकार करते हैं, तो परमेश्वर की विपत्तियां जारी रहेंगी।
मुख्य भाग कहता है, “पाँचवें स्वर्गदूत ने अपना कटोरा उस पशु के सिंहासन पर उंडेल दिया, और उसके राज्य पर अन्धेरा छा गया। लोग पीड़ा के मारे अपनी अपनी जीभ चबाने लगे, और अपनी पीड़ाओं और फोड़ों के कारण स्वर्ग के परमेश्‍वर की निन्दा की; पर अपने अपने कामों से मन न फिराया।” जब हम आज की दुनिया को देखते हैं, तो क्या हम ऐसे अनगिनत लोगों को नहीं देखते हैं जिनका न्याय अभी परमेश्वर द्वारा किया जाना चाहिए? परन्तु क्योंकि परमेश्वर अपना क्रोध सब्र से थामे हुए हैं इसलिए उनका न्याय अभी तक नहीं हुआ है। हालांकि, यदि वे यीशु मसीह के द्वारा दिए गए पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास किए बिना मर जाते हैं, तो उन्हें परमेश्वर द्वारा न मरने वाले शरीरों में फिर से जीवित किया जाएगा, और हमेशा के लिए जलती हुई नरक की आग में अनन्त पीड़ा का सामना करना पड़ेगा। 
जब ऐसा होगा, तो लोग मरना चाहेंगे, क्योंकि उनकी पीड़ा सहन से ज्यादा होगी। लेकिन नरक की पीड़ा हमेशा के लिए रहती है। वह समय आएगा जब परमेश्वर द्वारा न्याय किए जाने वाले लोग मरना चाहेंगे, परन्तु मृत्यु उनके पास से भाग जाएगी, क्योंकि परमेश्वर उन्हें मरने से रोकेगा, ताकि वह हमेशा के लिए उनका न्याय कर सके।
छठी विपत्ति हर-मगिदोन के युद्ध की है। और सातवीं बड़े भूकंप और बड़े ओलों की अंतिम विपत्ति है। 
वचन ७-१२ हमें कहता है, “फिर मैं ने वेदी से यह शब्द सुना, “हाँ, हे सर्वशक्‍तिमान प्रभु परमेश्‍वर, तेरे निर्णय ठीक और सच्‍चे हैं।” चौथे स्वर्गदूत ने अपना कटोरा सूर्य पर उंडेल दिया, और उसे मनुष्यों को आग से झुलसा देने का अधिकार दिया गया। मनुष्य बड़ी तपन से झुलस गए, और परमेश्‍वर के नाम की जिसे इन विपत्तियों पर अधिकार है, निन्दा की पर उसकी महिमा करने के लिये मन न फिराया। पाँचवें स्वर्गदूत ने अपना कटोरा उस पशु के सिंहासन पर उंडेल दिया, और उसके राज्य पर अन्धेरा छा गया। लोग पीड़ा के मारे अपनी अपनी जीभ चबाने लगे, और अपनी पीड़ाओं और फोड़ों के कारण स्वर्ग के परमेश्‍वर की निन्दा की; पर अपने अपने कामों से मन न फिराया। छठवें स्वर्गदूत ने अपना कटोरा महानदी फरात पर उंडेल दिया, और उसका पानी सूख गया कि पूर्व दिशा के राजाओं के लिये मार्ग तैयार हो जाए।” 
उपरोक्त भाग हमें बताता है कि जैसे ही परमेश्वर सातवां कटोरा उंडेलता हैं, एक बड़ा भूकंप पृथ्वी पर आएगा, पूरी दुनिया तीन भागों में विभाजित हो जाएगी, और इस धरती पर अभी खड़ी इमारतों को गिरा दिया जाएगा, उनमें से एक को भी नहीं छोड़ा जाएगा। जैसे ही यह संसार परमेश्वर के भयंकर क्रोध के अधीन होगा, सभी द्वीप और पहाड़ अद्रश्य हो जाएंगे।
क्या ऐसा होने पर भी हिमालय पर्वत खड़ा रहेगा? बिलकूल नही! जीवितों की आंखों के ठीक सामने सभी ऊंचे पहाड़ गायब हो जाएंगे। इस दुनिया का हर पहाड़ बिना किसी निशान के बस लुप्त हो जाएगा। भाग हमें यह भी बताता है कि विशाल ओले, जिनमें से प्रत्येक का वजन १०० पाउंड (४५ किलोग्राम) है, इस धरती पर गिरेंगे। क्या कोई ऐसा होगा जो इन भूकंपों और ओलों से बच सके? 
प्रकाशितवाक्य १८ हमें बताता है कि परमेश्वर का क्रोध उन लोगों पर आएगा जिन्होंने परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया और जिन्होंने उसके वचन की उपेक्षा की थी। इस दुनिया में कुछ लोग दावा करते हैं, जैसे कि वे ईश्वरीय हो, "मैं कभी भी परमेश्वर के क्रोध के अधीन नहीं होऊंगा, और न ही मुझे कभी उनके द्वारा न्याय किया जाएगा।" हालाँकि, परमेश्वर का न्याय ठीक इसी तरह के लोगों पर लाया जाता है जो अपने स्वयं के अभिमान और अहंकार से भरे होते हैं। हमें विश्वास करना चाहिए कि यह जब यह दुनिया परमेश्वर के द्वारा उन्डेले गए सात कटोरों की विपत्तियों से टकराएगी तब यह नष्ट हो जाएगी।
 


हमें परमेश्वर के वचन पर विश्वास करना चाहिए


परमेश्वर हमें बताता है कि वह इस दुनिया को अदृश्य कर देगा। इसलिए यह दुनिया हमेशा के लिए नहीं रहेगी। इसलिए, जो लोग इसके निकट अंत का सामना कर रहे हैं, उन्हें इस सत्य पर और भी अधिक दृढ़ता से विश्वास करना चाहिए और अपने आत्मिक विश्वास का अनुसरण करना चाहिए। इसलिए इस दुनिया के सभी लोगों को अपनी आत्मिक नींद से जगाना चाहिए। मुझे नहीं पता कि आपने अब तक किस तरह के विश्वास के साथ अपना जीवन जिया होगा, लेकिन अब समय आ गया है कि आप अपना ध्यान इस बात पर केंद्रित करें कि अंत के समय में क्या होगा, और जागृत हो और विश्वास करो। इसलिए आपको प्रकाशितवाक्य में भविष्यवाणी की गई विपत्तियों का सटीक ज्ञान होना चाहिए, और आपको सतर्क रहना चाहिए।
हमारे प्रभु ने हम से कहा है कि यह पृथ्वी शीघ्र ही परमेश्वर के सात कटोरों की विपत्तियों की चपेट में आ जाएगी। इस प्रकार, हमें सुसमाचार का प्रचार करते हुए प्रभु की प्रतीक्षा करनी चाहिए, भले ही फिर लोग इसे अच्छी तरह से प्राप्त न करें। 
इस दुनिया का भाग्य अब खतरे में है। आज की दुनिया हर तरह के खतरों से जूझ रही है, युद्ध के खतरे से लेकर अनिश्चित मौसम, पर्यावरण की दुर्दशा, बढ़ते सामाजिक संघर्षों और तमाम तरह की बीमारियों तक। इसलिए परमेश्वर ने हमें बताया कि वर्तमान युग नूह के समय के समान है। यदि वर्तमान समय नूह के समय जैसा है, तो इसका केवल इतना ही अर्थ है कि यह संसार अब अपने अंतिम दिनों में प्रवेश कर चुका है। अंत समय का संकेत यह है कि लोगों को केवल देह की चीजों में ही दिलचस्पी होगी, जैसे कि खाना, पीना, शादी करना, और ऐसे अन्य छोटे-मोटे काम। इसलिए वे परमेश्वर के न्याय के योग्य हैं। नूह के समय में भी, ऐसे लोगों ने नूह की कही हुई बात नहीं मानी, और नूह और उसके आठ सदस्यों के परिवार को छोड़ वे सभी नष्ट हो गए। आने वाली दुनिया भी ऐसी ही होगी।
लगभग सभी चीजें जिनकी परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है वे पूरी हो चुकी हैं जैसे वे बाइबल में दर्ज की गई थीं। इनमें से करीब ५ फीसदी का काम अभी बाकी है, लेकिन बाकी सभी पूरे हो चुके हैं। प्रभु द्वारा वायदा किया गया उद्धार और छुटकारे का वचन भी पूरा हो गया है। परमेश्वर के वचन में, केवल न्याय उन लोगों के लिए आरक्षित है जो पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास नहीं करते हैं। और फिर से जन्म लेने वाले संतों के लिए, केवल हजार साल का राज्य और नया स्वर्ग और पृथ्वी, जहां धर्मी प्रवेश करेंगे और रहेंगे, उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। 
परमेश्वर दयालु है, और वह धर्मियों के पक्ष में खड़ा है। हालाँकि, जो उसके क्रोध के पात्र हैं, परमेश्वर निश्चित रूप से उन पर अपना क्रोध लाएगा, जबकि जो उसकी दया के पात्र हैं, वह निश्चित रूप से अपनी दया प्रदान करेगा।
ये विपत्तियाँ कब होंगी? सात कटोरों की विपत्तियाँ संतों की शहादत के बाद आएंगी, क्योंकि ६६६ का निशान इस दुनिया पर थोपा जाएगा और संतों द्वारा इसका विरोध किया जाएगा। विपत्तियों के बाद पहला पुनरुत्थान, हजार साल का राज्य, और महान श्वेत सिंहासन पर बैठे यीशु के अंतिम न्याय का आगमन होगा। इसके बाद स्वर्ग का अनंत राज्य खुल जाएगा। बाइबल के माध्यम से, हमें परमेश्वर के विधान का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
क्या आप इस सच्चाई में विश्वास करते हैं कि यीशु फिर से मरे हुओं में से जी उठा? क्या आप विश्वास करते हैं कि प्रभु ने अपने बपतिस्मा और लहू के द्वारा मनुष्यजाति के सभी पापों को मिटा दिया है? हमारे प्रभु ने अपने पानी और लहू से मनुष्यजाति के सभी पापों को दूर कर दिया, तीन दिनों में फिर से मृतकों में से जी उठे, और अब पिता के सिंहासन के दाहिनी ओर बैठे हैं। जैसे, यीशु मसीह में विश्वास करने वालों के पाप स्पष्ट रूप से दूर हो गए हैं, और जैसे मसीह फिर से मरे हुओं में से जी उठे, वैसे ही वे भी पुनरुत्थित होंगे। 
इसलिए पवित्र लोग प्रभु के साथ महिमामय होंगे, लेकिन इस पृथ्वी पर रहते हुए, वे भी प्रभु के लिए कई कष्टों का सामना करेंगे। लेकिन इस वर्तमान समय के कष्टों की तुलना उस महिमा से नहीं की जा सकती जो उनकी प्रतीक्षा कर रही है, क्योंकि यह महिमा ही एकमात्र ऐसी चीज है जो नया जन्म लेने वाले संतों की प्रतीक्षा कर रही है। इसलिए संतों को भविष्य की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। धर्मी लोगों को केवल इतना करना है कि अपना शेष जीवन सुसमाचार के लिए और अपने विश्वास के द्वारा व्यतीत करें। हमें स्वयं को आत्माओं को बचाने के कार्य में समर्पित करना चाहिए, न कि संसार का अनुसरण करना चाहिए।
 


आइए हम अपना शेष जीवन परमेश्वर को समर्पित करे


मुझे चिंता है कि हमारे बीच कोई ऐसा हो सकता है जो सुसमाचार के साथ विश्वासघात करेगा। जो कोई व्यक्ति पानी और आत्मा के सुसमाचार के साथ विश्वासघात करेगा, अंत में वह स्वयं प्रभु का इन्कार करेगा। यद्यपि हम निर्बल हैं, यदि हम प्रभु द्वारा परिपूर्ण पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करते है और उसका अनुसरण करते है तो हम सभी विश्वास से जीने में सक्षम होंगे। संत केवल अपनी बुद्धि और शक्ति से नहीं जी सकते। यदि वे ऐसा करते हैं, तो वे अपने विश्वास के साथ विश्वासघात करेंगे और अपने ही विनाश का सामना करेंगे। इससे बचने के लिए हमें विश्वास से जीना चाहिए।
हमारा प्रभु मनुष्यजाति को ६६६ का चिह्न प्राप्त करने की अनुमति क्यों देगा? यह अनाज को भूसी से अलग करना है। संतों को रेप्चर की अनुमति देने से पहले, पहली चीज जो परमेश्वर को करनी चाहिए वह है अनाज को भूसे से स्पष्ट रूप से अलग करना। 
संतों द्वारा लड़ी जाने वाली आत्मिक लड़ाई हैं। इस प्रकार, संतों को परमेश्वर के शत्रुओं से लड़ने से नहीं बचना चाहिए। यदि वे शैतान के खिलाफ लड़ने से हिचकिचाते हैं, तो उन्हें शैतान की तरफ से एक घातक झटका लग सकता है। इसलिए, सभी संतों को अपने लिए भी आत्मिक लड़ाई लड़नी चाहिए। संतों द्वारा लड़े गए सभी आत्मिक युद्ध न्यायोचित हैं। परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए, प्रत्येक संत को शैतान और उसके सेवकों से लड़ना चाहिए और उन पर जय प्राप्त करनी चाहिए।
संतों को परमेश्वर के राज्य के लिए लड़ना चाहिए। उन्हें परमेश्वर के राज्य के लिए सताया भी जाना चाहिए, और संसार के लोगों द्वारा उनसे घृणा की जानी चाहिए। संतों को प्रभु के लिए लड़ने का अवसर दिया जाना अपने आप में एक अच्छी बात है। यदि आपको परमेश्वर के लिए लड़ने का यह मौका दिया गया है, तो आपको इसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद देना चाहिए। ऐसी लड़ाई एक अच्छी लड़ाई है, क्योंकि यह परमेश्वर की धार्मिकता की लड़ाई है।
परमेश्वर धर्मी की सहायता करता है। हमारे जीवन में इतने दिन नहीं बचे हैं, और मेरी आशा और प्रार्थना है कि हम सभी अपने बचे हुए जीवन को आत्मिक लड़ाई लड़ते हुए और आत्मिक कार्य करते हुए तब तक जिएंगे जब तक हम प्रभु के सामने खड़े नहीं हो जाते। इस दुनिया के लोग हमसे कुछ भी कहें, हमें आत्मिक लड़ाई लड़नी चाहिए, आत्मिक फल देने चाहिए और इन फलों को अपने परमेश्वर के सामने अर्पित करना चाहिए। जब हमारे प्रभु की वापसी का दिन आए तब आइए हम सब उसके सामने पूरे विश्वास के साथ खड़े हों। जब यह दिन आएगा, तब यहोवा प्रभु आंसू पोंछ डालेगा, और हमें ऐसी जगह रहने देगा, जहां हम फिर न रोएंगे, और न फिर कभी दर्द सहेंगे, और न पाप को फिर पाएंगे। 
आइए हम सब विश्वास से जिए, और इसी विश्वास से हम सब परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करें।