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उपदेश

विषय ११ : मिलापवाला तम्बू

[11-18] भेंट की रोटी की मेज (निर्गमन ३७:१०-१६)

भेंट की रोटी की मेज
(निर्गमन ३७:१०-१६)
“फिर उसने बबूल की लकड़ी की मेज को बनाया; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊँचाई डेढ़ हाथ की थी; और उसने उसको चोखे सोने से मढ़ा, और उसमें चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाई। और उसने उसके लिये चार अंगुल चौड़ी एक पटरी, और इस पटरी के लिये चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाई। उसने मेज़ के लिये सोने के चार कड़े ढालकर उन चारों कोनों में लगाया, जो उसके चारों पायों पर थे। वे कड़े पटरी के पास मेज़ उठाने के डण्डों के खानों का काम देने को बने। उसने मेज़ उठाने के लिये डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनाया और सोने से मढ़ा। और उसने मेज़ पर का सामान अर्थात् परात, धूपदान, कटोरे, और उंडेलने के बर्तन सब चोखे सोने के बनाए।”
 
 

हमारे हृदय में फ्रेम रखने के द्वारा, हमें ऐसा बनना चाहिए जो जीवन की रोटी खाता है

 
पवित्र मेज
भेंट की रोटी की मेज, मिलापवाले तम्बू में पाए जाने वाले पत्रों में से एक, बबूल की लकड़ी से बना था, और सोने से मढ़ा हुआ था। उसका नाप दो हाथ (९० सेंटीमीटर: ३ फीट) लंबा, डेढ़ हाथ (६७.५ सेंटीमीटर: २.२ फीट) ऊँचा, और एक हाथ (४५ सेंटीमीटर: १.५ फीट) चौड़ा था। भेंटी की रोतो की मेज पर हमेशा के लिए १२ रोटियाँ राखी जाति थी, और यह रोटियाँ केवल याजक के द्वारा ही खाई जा सकती थी (लैव्यव्यवस्था २४:५-९)। 
भेंट की रोटी के मेज की कुछ विशेषता: उसके चारों ओर एक पटरी थी; और इस पटरी के लिए चारों ओर सोने कोई एक बाड़ बनाई; सोने के चार कड़े उसके चारों कोने में लगाए; मेज उठाने के लिए डंडो को बबूल की लकड़ी से बनाए और उसे सोने से मढ़े जो मेज उठाने के काम आते थे। मेज के ऊपर रखे पात्र – परात, धूपदान, कटोरे, और उंडेलने के बर्तन सब चोखे सोने से बने थे।
निर्गमन ३७:११-१२ में लिखा है, “और उसने उसको चोखे सोने से मढ़ा, और उसमें चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाई। और उसने उसके लिये चार अंगुल चौड़ी एक पटरी, और इस पटरी के लिये चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाई।” परमश्वर के घर के पवित्र स्थान में रखे भेंट की रोटी की मेज में चार अंगुल चौड़ी एक पटरी थी, और इस पटरी के चारो ओर सोने की एक बाड़ थी। क्यों परमेश्वर ने मूसा को यह पतारिन बनाने के लिए कहा? चार अंगुल चौड़ी यह पटरी तक़रीबन १० सेंटीमीटर आगे से निकली हुई थी, जो मेज पर राखी रोटी को गिरने से बचाती थी।
जैसे की मेज पर राखी रोटी को केवल याजक ही खा सकता था, इसलिए हमें ऐसा बनना है जो इस आत्मिक रोटी को खा सके। जो लोग यीशु के बपतिस्मा और क्रूस के लहू पर विश्वास करने के द्वारा बच गए है और अनन्त जीवन प्राप्त किया है केवल वे ही – दुसरे शब्दों में, जो लोग पानी और आत्मा के सुसमाचार पर अपने उद्धार के रूप में विश्वास करते है केवल – वे ही इस रोटी को खा सकते है।
क्योंकि चार अंगुल चौड़ी पटरी मिलापबाले तम्बू की भेंट की रोटी की मेज की चारों ओर लगी थी, इसलिए वह ये सुनिश्चित कराती थी की रोटी फिसल कर निचे गिर न जाए। और हर विश्रामदिन को, गरम, ताज़ी बनाई हुई रोटी मेज पर रखी जाति थी। हमें ख़ास वास्तविकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए की मेज की चारो ओर चार अंगुल चौड़ी पटरी बनी थी, और वह पटरी चारो ओर से सोने से मढ़ी गई थी।
भेंट की रोटी की मेज हमें सिखाती है की हमें अपने हृदय में सत्य के वचन को याद रखना चाहिए जो हमें उद्धार देता है और इस प्रकार हम अनन्त जीवन प्राप्त करते है। यह हमें बताता है की जब हम यीशु के बपतिस्मा और क्रूस के लहू पर विश्वास करते है केवल तभी हम नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े और बटी हुई सनी के कपड़े का विश्वास पा सकते है। और इस प्रकाशन से हम समझ पाए है की जो लोग नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े और बटी हुई सनी के कपड़े में प्रगट हुए सत्य पर विश्वास करते है केवल वे ही परमेश्वर की संतान बन सकते है।
जब तक हम इस रीति से विश्वास नहीं करते तब तक हमारा प्रभु के साथ कोई लेनादेना नहीं है इसलिए हम में से जो लोग जीवन की रोटी की खोज कर रहा है उनके पास ऐसा विश्वास होना चाहिए जो नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े और बटी हुई सनी के कपड़े में प्रगट हुए पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करता हो। सक्षेप में, परमेश्वर हमें हमारे हृदय में विश्वास की पटरी बनाने के लिए कह रहा है, ताकि उद्धार के वचन हमसे फिसल न जाए।
यह पानी और आत्मा का सुसमाचार प्रारंभ की कलीसिया के समय से हमें दिया गया है। प्रारंभ की कलीसिया के समय से वर्त्तमान के दिन तक, परमेश्वर ने उन लोगों के पापों को साफ़ किया है जो इस सुसमाचार पर विश्वास करते है। हम अब पहले की तरह देख सकते है की परमेश्वर पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करनेवाले लोगों को बचा रहा है। हम मिलापवाले तम्बू के द्वार में प्रगट हुए सत्य पर विश्वास करने के द्वारा बचे है, और परमेश्वर ने हमें हमारे हृदय में पटरी बनाने के द्वारा आत्मिक तौर पर जीवन जीने के लिए सक्षम बनाया है।
प्रभु के द्वारा दिए गए पानी और आत्मा के सुसमाचार पर हमारे विश्वास से, हमने अनन्त जीवन प्राप्त किया है, और इस सुसमाचार के द्वारा हम जीवन की रोटी दूसरो के साथ बाँटने के योग्य बने है। और हम परमेश्वर के धर्मी कार्यों की सेवा भी करते है। भले ही हम पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करे, लेकिन समय बीतते यदि हम इसे दृढ़ता से पकड़ने की बजाए छोड़ देते है तो इसका मतलब यह है की हम हमारे जीवन को गवाते है। उसी रूप से, हमें विश्वास से पानी और आत्मा के सुसमाचार में बने रहकर हमारे हृदय में विश्वास की पटरी बनानी चाहिए।
 
 

हमारे हृदय के अंदर ऐसा विश्वास होना चाहिए जो नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े के सुसमाचार पर विश्वास करता हो

 
यदि लोग इस सत्य पर विश्वास नहीं करते है, तो वे अपने पापों से नहीं बच सकते। वे खुद से इस बात पर जोर देंगे की उन्होंने उद्धार पाया है, लेकिन अभी, उनके हृदय नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े में प्रगट हुए पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास नहीं करते इसलिए यह उद्धार जो उनके पास है वह केवल अपूर्ण उद्धार है।
पानी और आत्मा के सुसमाचार पर सत्य के रूप में विश्वास न करना प्रभु को खुद से छोड़ देने के समान पाप है। जीवन की रोटी कुछ ऐसी नहीं है जिसका हमें अधिकार केना है, लेकिन यह कुछ ऐसा है जिसे हमें हमारे मुँह में रखना है, और इस प्रकार इसके सत्य को हमारा बनाना है। जब हम हमारे हृदय में परमेश्वर के वचन को याद किए बिना आगे बढ़ाते है, तब कुछ ही पल में उद्धार का सत्य हमारे हृदय से अदृश्य हो जाता है।
आप शायद सोच रहे होंगे की जब आपने पहले ही पाप से उद्धार पा लिया है तो यह कैसे सम्भव है की आप इस मूल्यवान उद्धार को गवादे। लेकिन दुर्भाग्य से, बहुत सारे लोग जो परमेश्वर के वचन को थामे नहीं रखते, तो भले ही उन्होंने पहले आनन्द से सत्य को प्राप्त किया था, लेकिन मरने के द्वारा उनका अन्त होगा, क्योंकि सच्चे सुसमाचार की गहराई में उनका विश्वास नहीं है।
इस मुद्दे के विषय में, यीशु ने ‘बीज बोनेवाले के दृष्टान्त’ में हृदय की चार भूमि के बारे में कहा है (मत्ती १३:३-९, १८-२३)। इस दृष्टान्त में, परमेश्वर के सत्य के बीज मनुष्यजाति के हृदय की चार अलग अलग भूमि पर बोए गए। पहली भूमि मार्ग का किनारा थी, दूसरी पथरीली भूमि थी, तीसरी झाडिया थी, और चौथी अच्छी भूमि थी। इनमें से, जो बीज पहली तिन भूमि पर गिरे वे फल लाने में विफल रहे, और जो बीज चौथी यानी की अच्छी भूमि पर गिरे केवल वे ही फल लाए। इसका मतलब है की बहुत सारे लोग अपना उद्धार गवा सकते है फिर भले ही उन्होंने पहले पानी और आत्मा के सुसमाचार को यानी की उद्धार के सच्चे सुसमाचार को सुना हो और स्वीकार किया हो। उसी रूप से, हमें याद रखना चाहिए की यदि हमारे हृदय की भूमि अच्छी नहीं है, तो यह सम्भव है की हम हमारा उद्धार गवा दे जो प्रभु ने हमें दिया है।
यदि हम हमारे हृदय में नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े से आए उद्धार पर विश्वास करते है, तो हमारे हृदय की भूमि अच्छी बन सकती है। लेकिन हम देख सकते है की कुछ लोग परमेश्वर के वचन में गहराई से विश्वास नहीं करते और इसी लिए वे अपने विश्वास का बचाव करने में विफल रहते है और अपना उद्धार गवा देते है। इसी लिए हमें परमेश्वर की कलीसिया में बने रहना है, हरदिन जीवन की रोटी खानी है, और विश्वास में बढ़ना है। नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े में प्रगट हुए सत्य के साथ परमेश्वर हरदिन हमारा पालन करता है ताकि हमारा विश्वास बढ़े।
हमें हरदिन अपने हृदय में पाप की माफ़ी की पुष्टि करनी चाहिए जो हमने प्राप्त किया है। हमारे हृदय में जो सत्य पाया जाना चाहिए वह है नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े और बटी हुई सनी के कपड़े में प्रगट हुआ पानी और आत्मा का सुसमाचार का उद्धार। यह उध्दार का सत्य उन लोगों के दिलों में पाया जाता है जिन्होंने पाप की माफ़ी पाई है। पानी और आत्मा के इस सुसमाचार में हमारे विश्वास को नया करने के द्वारा, हम दिन प्रतिदिन परमेश्वर की संतान के रूप में जीवन जी सकते है।
उसी रूप से, पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करनेवाले लोगों को नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े और बटी हुई सनी के कपड़े में प्रगट हुई परमेश्वर की धार्मिकता पर हरदिन मनन करना चाहिए, और हरदिन अपने विश्वास की पुष्टि करनी चाहिए। क्यों? क्योंकि यदि हम हरदिन पानी और आत्मा के सुसमाचार को थामकर उसकी पुष्टि नहीं करते है तो हम किसी भी पल उसे गवा सकते है। हमें हर समय यह याद रखना चाहिए की इब्रानियों के लेखक ने प्रवासी यहूदियों को क्या कहा था: “इस कारण चाहिए कि हम उन बातों पर जो हम ने सुनी हैं, और भी मन लगाएँ, ऐसा न हो कि बहककर उन से दूर चले जाएँ” (इब्रानियों २:१)।
आज, यहाँ तक की जो लोग पानी और आत्मा के सुसमाचार को जानते है उनके बिच, हम देखते है की बहुत सारे लोग जो सुसमाचार पर विश्वास करते है उनका विश्वास समय के बीतते बिखर जाता है। यह इसलिए है क्योंकि भले ही वे पहले से ही पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करते है, फिर भी वे पवित्र स्थान में निरंतर जीवन की रोटी खाने में विफल रहे है, और परिणाम स्वरुप, उनके हृदय सच्चे विश्वास के साथ शुध्ध नहीं हुए है।
इस संसार में शैतान के भी बहुत सारे सेवक है जो धर्मियों को खमीरी रोटी खिलाकर उन्हें मार डालने का प्रयास करते है, यानी, उनके खुद के देहब का शिक्षण। यदि परमेश्वर की कलीसिया में झूठे सुसमाचार का परिचय कराया जाए, तो फिर सच्चाई झूठ के साथ मिल जाएगी, विश्वासी ऐसे लोगों में तबदील हो जाएंगे जो परमेश्वर के द्वारा स्वीकार नहीं किए जा सकते। ऐसे लोग सच्चाई जानते है लेकिन विश्वास की पटरी के बनाने की असफला की वजह से वे विश्वास नहीं करते, और इसलिए उनका अन्त ऐसे लोगों के समान होता है जो पाप से सम्पूर्ण रीति से नहीं बचे थे। नीतिवचन २२:२८ कहता है, “जो सीमा तेरे पुरखाओं ने बाँधी हो, उस पुरानी सीमा को न बढ़ाना।”
इसलिए हमारे लिए महत्वपूर्ण यही है की हम हमारे विश्वास की सीमा को न बढाए। हमारे पास स्पष्ट रूप से हमारे विश्वास की सीमा होनी चाहिए और हमारे प्रभु के लौटने के दिन तक उसका बचाव करना चाहिए। केवल तभी हम निरंतर जीवन की रोटी से तृप्त होंगे, केवल तभी प्रभु हमारे हृदय के अन्दर निवास करेगा, और केवल तभी हमारे पास अनन्त जीवन होगा। कोई फर्क नहीं पड़ता की परमेश्वर ने आपको जीवन की कितनी रोटियाँ दी है, यदि हम इसके मूल्य की सराहना नहीं करते और हमारे हृदय से उस पर बने रहने में विफल होते है, या हम हमारे हृदय की पटरी को निकाल देते है और जीवन को रोटी को मेज से फिसलने देते है, तो फिर हम अन्त में विनाश की संतान बन जाएँगे।
हममें से कुछ लोगों ने अभी अभी पाप की माफ़ी पाई है, जब की दुसरे लोगों के लिए, उन्होंने सबसे पहले पानी और आत्मा के सुसमाचार को सुने और अपने पापों की माफ़ी पाई उसे दशक हो गए है। फिर भी हररोज हम पानी और आत्मा के सुसमाचार के वचन के विषय में सुनते है, यह सम्भव है की हम में से कुछ लोग पानी और आत्मा के सुसमाचार के “पानी” शब्द को सुनते सुनते बोर हो गए हो। लेकिन फिर भी, हमें सच्चे सुसमाचार की रोटी को खाना ज़ारी रखना चाहिए। कितने समय तक हमें यह करना होगा? प्रभु के वापिस आने के दिन तक।
आप में से कुछ लोग शिकायत करते होंगे की मैं हमेशा और बार बार पानी और आत्मा के सुसमाचार का प्रचार करता हूँ, लेकिन आपको समझने की जरुरत है की मुझे इस तरह से प्रचार क्यों करना पद रहा है। यह इसलिए क्योंकि पानी और आत्मा के सुसमाचार का मनन करते करते हमारा विश्वास दृढ बनना चाहिए ताकि हम परमश्वर के सेवक बन सके। हमें इस युग की आत्माओं के लिए विश्वासयोग्य और प्यासे पहरेदार के पात्र को परिपूर्ण करना चाहिए। क्योंकि नया जन्म पाई हुई आत्माए भी पानी और आत्मा का यह सुसमाचार जीवन की रोटी है और विश्वास का सच्चा भोजन है। उसी रूप से, हरदिन हमें यह रोटी को खाना चाहिए, और केवल इतना ही नहीं – अर्थात्, हमें केवल खुद के लिए इसे नहीं रखना चाहिए – लेकिन हमें दूसरों के साथ भी इसे हरदिन बाँटना चाहिए ताकि वे भी अपने पापों की माफ़ी प्राप्त करे।
धर्मियों के लिए पानी और आत्मा के सुसमाचार के वचन को फैलाना और इस प्रकार से लोगों को अन्धकार की सामर्थ्य से छूडाकर उन्हें उसके प्रेम के पुत्र के राज्य में (यूहन्ना ४:३४, कुलुस्सियों १:१३) पहुचाना ही उनकी रोटी है। यदि हम पानी और आत्मा के सुसमाचार की रोटी को खाने से इनकार करते है तो फिर हम पाप में गिरते है या मर जाते है। कभी कभी, हमारे देह की कमजोरी की वजह से, पानी और आत्मा के सुसमाचार पर हमारा विश्वास कमज़ोर पद जाता है। लेकिन यदि हम कठिनाई के समय में पानी और आत्मा के सुसमाचार को थामे रहे तो वह हमारे लिए ओर भी मजबूत बनने का मौक़ा बन सकता है।
जब हम इस सत्य के सुसमाचार को सुनते है और उस पर मनन करते है, तब हमारी आत्माए ओर भी ज्यादा मजबूत बनती है, हमारा विश्वास ओर मजबूत बनता है, और हम अपने हृदय में नए विश्वास को उभरते हुए देख सकते है। हमें हरदिन पानी और आत्मा के सुसमाचार को सुनने की और इस सुसमाचार पर हमारे विश्वास की पुष्टि करने की जरुरत है। जैसे परमेश्वर कहता है, “चाँदी में से मैल दूर करने पर वह सुनार के लिए काम की हो जाती है” (नीतिवचन २५:४), हमें विश्वास को शुध्ध करने की जरुरत है – अर्थात, हमें निरंतर पानी और आत्मा के सुसमाचार को सुनने, हमारे हृदय में उसे स्वीकार ने, और समय समय पर उस पर मनन करण की आवश्यकता है – क्योंकि पानी और आत्मा का सुसमाचार जीवन की रोटी है जो हमें जिलाता है! जैसे यीशु ने प्रभु की प्रार्थना में कहा है, “हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे,” हमारे प्रभु ने वास्तव में हमें पानी और आत्मा के सुसमाचार के वचन दिए है। इसी लिए उसने हमें इस रीति से प्रार्थना करने के लिए कहा है।
जब पाप की माफ़ी के उद्धार की बात आती है जो परमेश्वर ने हमें दिया है, तब हमें यह स्पष्ट करना चाहिए की पाप से उद्धार पाने से पहले हमारा विश्वास कैसा था। “मैंने इस सत्य को जाना उससे पहले, मैं पाप से बचाया नहीं गया था।” हमें स्पष्ट रूप से यह स्वीकार करना चाहिए की उस समय, भले ही हम यीशु पर विश्वास करते थे, लेकिन हम पाप से बचाए नहीं गए थे। “उस समय मैं पाप से पूरी तरह नहीं बचा था, लेकिन जब मैनें निरंतर पानी और आत्मा के सुसमाचार को सुना, तब मैंने अपने हृदय में इस पर विश्वास किया।
भले ही मैंने पहले यीशु पर मेरे उद्धारकर्ता के रूप में विश्वास किया था, लेकिन तब तक मेरा उद्धार परिपूर्ण नहीं हुआ था, लेकिन अब, पानी और आत्मा के सच्चे सुसमाचार को सुनने के बाद मैंने सच में उद्धार पाया है। अब मैं सच में पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करता हूँ, और में वास्तव में उस पर विश्वास करता हूँ। जब आप समझते है और विश्वास करते है की वास्तव में विश्वास करते है की प्रभु ने अपने बपतिस्मा और क्रूस के लहू से आपको सम्पूर्ण रीति से बचाया है केवल तब सच्चे उद्धार का उपहार स्वर्ग से आपके हृदय पर उतरता है। सत्य पर विश्वास करनेवाला विश्वास ही सच्चा विश्वास है जो आपको बचाता है।
बाइबल में प्रगट हुआ पानी और आत्मा का सुसमाचार हमारे पहले के विश्वास से भिन्न है। हम, उस समय, इस पानी और आत्मा के सम्पूर्ण सुसमाचार की जगह केवल क्रूस के लहू के सुसमाचार पर विश्वास करते थे। केवल क्रूस पर विश्वास करना और पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करना पहली नज़र में एक जैसा ही लगता है, लेकिन अन्त में यह दोनों सम्पूर्ण रीति से भिन्न है। आपने पानी और आत्मा के सुसमाचार को जाना उससे पहले क्या आप केवल क्रूस के लहू पर विश्वास नहीं करते थे? तो क्या आपके सारे पाप माफ़ किए गए थे? बिलकुल नहीं! जब आप केवल यीशु के क्रूस के लहू पर विश्वास करते है, तब भी आपके हृदय में वास्तविक पाप मौजूद होते है। यही तो अन्तर है उन विश्वास में जो पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करता है और जो केवल क्रूस के लहू पर विश्वास करता है।
स्पष्ट भिन्नता यह है की जो लोग केवल क्रूस के लहू पर विश्वास करते है उन्होंने उद्धार नहीं पाया और जो लोग पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करते है उन्होंने उनके सारे पापों से उध्दार पाया है। उसी रूप से, उनके आत्मा भी पूरी रीति से भिन्न है। लेकिन साधारण लोग इसे समझ नहीं पाते। भले ही दोनों सुसमाचार एक समान लगते है, लेकिन उन दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है जो कभी मिटाया नहीं जा सकता। हम यीशु के बपतिस्मा पर विश्वास करते है या नहीं करते यह बात तय कराती है की हम अनन्त जीवन को प्राप्त करेंगे या गवा देंगे, और केवल तभी हम जान सकते है की इन दोनों के बिच में बहुत बड़ा अन्तर है जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता।
हमें स्पष्ट रूप से यह जानना चाहिए की पाप से हमारे उद्धार की सीमा कैसा विश्वास बनाता है। पाप से बचने के लिए, हमें पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करना चाहिए। पानी और आत्मा का यह सुसमाचार पाप से उध्दार का सत्य है। जब आप पूरी तौर से अंगीकार करते है की पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करने से पहले अपने उद्धार नहीं पाया था और अब आप अपने पूरे हृदय से इस सच्चे सुसमाचार पर विश्वास करते है तब उद्धार को आप प्राप्त कर सकते है।
यदि आप अपने हृदय में पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करते है, तो आपको स्पष्ट रूप से यह अंगीकार करना चाहिए की आपने पानी और आत्मा के सुसमाचार को सुनने और विश्वास करने के द्वारा अपने पापों की माफ़ी पाई है। यदि अब आप पानी और आत्मा के सुसमाचार के सत्य पर विश्वास करते है, तो आप निश्चित तौर पर अपने हृदय में इसके प्रमाण को पाएंगे।
हमें बड़ी सावधानी से परमेश्वर के सामने अपने विश्वास की जांच करनी चाहिए। हमारे विश्वास की जांच करने के लिए कोई शर्म नहीं होनी चाहिए। यदि आपको सबसे पहले यीशु पर विश्वास करने से लेकर अब तक पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करने के लिए पाँच साल लगे है तो उसमे शर्म की कोई बात नहीं है। यदि आपको उद्धार पाने के लिए १० साल लगे है, तो इसमे शर्म की कोई बात नहीं है, और यदि आपको उद्धार पाने के लिए २० साल भी लगे हो, तो फिर भी इसमे शर्म की कोई बात नहीं है। इसके विपरीत, यह एक आशीष है।
हालाँकि, वास्तविकता यह है की बहुत सारे लोग ऐसे है जो पाप से उद्धार पाने का नाटक करते है। लेकिन पवित्र आत्मा, जो सारी बातों को जाँचता है, वह उनके विश्वास का स्वीकार नहीं करता, क्योंकि उन्होंने प्रामाणिकता से उध्दार की सीमा को नहीं खींचा है – हमने कौन से दिन उद्धार पाया था यह महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है की उद्धार पाने से पहले और बाद के अन्तर को जानना – और हमारे सम्पूर्ण विश्वास को स्पष्ट रूप से अंगीकार करना।
 
 

हमारे विश्वास के पिता भी उसी सुसमाचार पर विश्वास करते थे जिस पर हम विश्वास करते है

 
लाल समुन्दर पार करने के बाद, जब इस्राएल के लोग कनान देश में जाने के लिए यरदन नदी को पार करने के बारे में सोच रहे थे, तब वे सुरक्षित रीति से तभी पार कर सकते थे जब वे अपने याजकों का अनुसरण करे जिन्होंने साक्षी के संदूक को उठाया था। यदि हम केवल खुद से ऐसा सोचे, “अरे, तो इस तरह से मैं यरदन नदी को पार कर सकता हूँ,” और वास्तव में नदी को पार नहीं करते, तो हम कनान देश में प्रवेश नहीं कर सकते, क्योंकि हम अभी भी दूसरी तरफ बने हुए है। कनान देश में प्रवेश करने के लिए, हमें विश्वास के द्वारा लाल समुद्र और यरदन नदी को पार करना महत्वपूर्ण है।
आत्मिक तौर से बात करूँ तो, यरदन नदी मृत्यु की ओर पुनरुत्थान की नदी है। जिस विश्वास ने हमें पाप से बचाया है वह इस बात पर विश्वास करता है, “मैं नरक में जानेवाला हूँ, लेकिन प्रभु इस पृथ्वी पर आया और उसने अपने बपतिस्मा और क्रूस के लहू से मुझे बचाया है।” हमें सम्पूर्ण रीति से बचाने के लिए, हमारे प्रभु ने यरदन नदी में बपतिस्मा लिया और क्रूस पर अपना लहू बहाया। इस तरह से उसने हमारी जगह अपना जीवन देकर हमारे पापों को उठाया और पाप की कीमत चुकाई। अब, हमें इस सत्य पर विश्वास करना चाहिए और हमारे हृदय में विश्वास की सीमा और उद्धार की सीमा खींचनी चाहिए।
जैसे मैं परमेश्वर का प्रचार करता हूँ, मैं देख सकता हूँ की उसकी कलीसिया में बहुत सारे लोग ऐसे है जिन्होंने अभी तक अपने हृदय में उद्धार की सीमा नहीं खिंची है और इसलिए वे प्रभु का अनुसरण नहीं कर सकते। वे विस्मित होते है की कैसे वे उनके उद्धार के पहले और बाद के बिच में सीमा खिंच सकते है। वे यह कहने के द्वारा बहाना बनाते है की, “क्या इस पृथ्वी पर ऐसा कोई है जिसने यह सीमा खिंची है? क्या प्रेरित पौलुस ने किया है? क्या पतरस ने किया था? किसी ने भी ऐसा नहीं किया है।” लेकिन पौलुस और पतरस जैसे विश्वास के प्रेरितों ने उद्धार की सीमा खिंची थी।
पौलुस के विषय में, वह जब दमिश्क के मार्ग में था तब उसने सीमा खिंची थी। इसलिए, उसने “अब” शब्द की जगह पर बार बार “भूतकाल में, पहले, या बाद में” शब्द का प्रयोग किया है। पतरस के विषय में, उसने भी ऊपर दिए गए शब्दों का उल्लेख किया है (१ पतरस २:१०,२५)। जब हम उसके अंगीकार को देखते है तो हम देख सकते है की उसने भी इस सीमा को खिंचा था: “तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है” (मत्ती १६:१६), और “उसी पानी का दृष्टान्त भी, अर्थात् बपतिस्मा, यीशु मसीह के जी उठने के द्वारा, अब तुम्हें बचाता है; इससे शरीर के मैल को दूर करने का अर्थ नहीं है, परन्तु शुध्ध विवेक से परमेश्वर के वश में हो जाने का अर्थ है” (१ पतरस ३:२१)। पौलुस और पतरस दोनों ने स्पष्ट रूप से उद्धार के पहले और बाद के बिच विश्वास की सीमा खिंची थी।
इसलिए आप पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करते है की नहीं यह किसी दुसरे की समस्या नहीं है, लेकिन यह आपकी अपनी आत्मा की समस्या है। बाइबल में परमेश्वर के सारे सेवकों ने पाप की समस्या का सामना किया था। क्योंकि यह हम सब के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण समस्या है, इसलिए इसे हमें खुद विश्वास के द्वारा सुलझाना चाहिए। जब हम पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करते है और इस प्रकार हमारे हृदय में पाप की समस्या को सुलझाते है तब परमेश्वर बहुत प्रसन्न होते है। क्या आप परमेश्वर को प्रसन्न करना चाहते है? तो आपको अपने पापी स्वभाव को पहचानने की और पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करके इस समस्या को सुलझाने की आवश्यकता है। यदि अभी तक आपने उद्धार नहीं पाया है, तो आपको अंगीकार करना चाहिए, “परमेश्वर, मैंने अभी तक उद्धार नहीं पाया है।”
यीशु ने कहा, “मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बंधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा” (मत्ती १६:१९)। दूसरी ओर, सबसे पहले हमें स्वीकार करना चाहिए, “परमेश्वर ने मुझे पानी और आत्मा के सुसमाचार से बचाया है। अभी, मेरे हृदय में, मैं पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करता हूँ। परमेश्वर ने मुझे पानी और आत्मा के सुसमाचार के द्वारा बचाया है उसमे मुझे कोई संदेह नहीं है।” 
हम सब को पानी और आत्मा के सुसमाचार को अपने हृदय में स्वीकार करना चाहिए। “मैं इस सुसमाचार पर भरोषा करता हूँ। क्योंकि यह सच्चाई है, क्योंकि प्रभु ने मेरे सारे पापों को मिटाया है, इसलिए अब मैं इस सुसमाचार पर विश्वास करता हूँ। मैंने अब तक विश्वास से उद्धार नहीं पाया था।” जब हम इस प्रकार समझते है और परमश्वर के द्वारा दिए गए सुसमाचार पर विश्वास करते है, तब परमेश्वर हमसे कहता है, “मैंने तेरे विश्वास को स्वीकार किया है।”
जब परमेश्वर ने हमें पहले से ही पानी और आत्मा का सत्य दिया है जो हमें सम्पूर्ण रीति से बचा सकता है, इसलिए यदि हम उद्धार की रेखा नहीं खींचते और इस सत्य पर विश्वास करने के द्वारा इस उद्धार का स्वीकार नहीं करते, तो परमेश्वर हमें उद्धार पाए हुए लोगों की तरह स्वीकार नहीं कर सकता। क्योंकि परमेश्वर अनिवार्य तौर पर नहीं लेकिन विशिष्ट रूप से हमारे साथ व्यवहार करता है, इसलिए यदि आप अपने हृदय में पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास नहीं करते तो वह आपको पाप की माफ़ी नहीं दे सकता। दुसरे शब्दों में, यदि आप अपने हृदय में पानी और आत्मा के सुसमाचार का स्वीकार नहीं करते तो पवित्र आत्मा आपके हृदय में निवास नहीं कर सकता।
क्या हमें पानी और आत्मा के सुसमाचार को छोड़ बाकी सारे सुसमाचारों को झूठा मानना चाहिए? या क्या हम सोचते है की ऐसे झूठे सुसमाचार अभी भी काम के है, और इसलिए उन्हें फ़ेकने की जरुरत नहीं है? हमें खुद की जांच करनी चाहिए और देखना चाहिए की हम किस प्रकार विश्वास करते है। आइए एक पल के लिए मान लेते है की हम इस्तेमाल किए हुए उपकरण और इलेक्ट्रोनिक्स के ढेर के पास आए है। आइए आगे यह मान लेते है की हम उसमें से कुछ घर पर लेकर गए यह सोचते हुए की हाँ कुछ बचा पाएंगे, लेकिन बाद में पता चला की उसमे से कुछ भी काम नहीं करता और सब व्यर्थ है। तो फिर तब भी क्या हम उसे रखेंगे या फेंक देंगे? एक बार जब हम फैसला करते है की वह सब व्यर्थ है, तो निश्चित ही हम उन सब को फेंक देंगे। जब आप निष्कर्ष तक पहुचाते है की कुछ चीजे आपके लिए कोई काम की माहि है और बिलकुल भी असली नहीं है तो फिर आपको यह भी पता होना चाहिए की उसे किस तरह से दूर करना है।
यदि हमें सांसारिक मामले में इस प्रकार कार्य करना चाहिए, तो फिर जब आत्मिक मामले की बात आती है तो हमें किस प्रकार कार्य करने चाहिए? हमें हमारे आत्मिक मामलों में झूठ को अस्वीकार करने के लिए ओर भी स्पष्ट होना चाहिए। हमें स्पष्ट सीमा खींचनी चाहिए जो पानी और आत्मा के सुसमाचार पर हमारे विश्वास को केवल क्रूस के लहू पर विश्वास करनेवाले विश्वास से अलग करे; हमें यह समझना चाहिए की केवल क्रूस के लहू पर का विश्वास कभी भी उद्धार नहीं दे सकता; और हमें निश्चित तौर पर ऐसे दोषपूर्ण सिध्धांत को फेंक देना चाहिए। कौन सा सुसमाचार बाइबल आधारित सुसमाचार है? क्या यह केवल क्रूस के लहू का सुसमाचार है? या फिर यह पानी और आत्मा का सुसमाचार है? आपका विश्वास जो पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करता है और जिसने आपको आपके पापों से बचाया है उससे परमेश्वर प्रसन्न होता है।
संक्षेप में, दो प्रकार के मसीही है: वे जो पानी और आत्मा के सुसमाचार को जानते है और विश्वास करते है और वे जो नहीं करते। भले ही ऐसा लगता है की दोनों एक समान विश्वास के जीवन की अगुवाई करते है, लेकिन वास्तविकता यह है की दोनों सम्पूर्ण तौर पर भिन्न है। क्या आप किसी भी तरह से यह सचते है की आप जिस सुसमाचार पर विश्वास करते थे उसका अभी भी कोई उपयोग है? क्या आपने यह सोच कर अभी भी उसे पकड़ कर रखा है की कुछ समय बाद वह काम आएगा।
ऐसा विश्वास झूठा विश्वास है, ऐसा जो मनुष्य के बनाए हुए विचार से निकला है, इसलिए आपको अपने भूतकाल के सारे बोज को निकाल देना चाहिए। क्योंकि आपने अभी भी जो झूठ है उसे बहार नहीं फेंका है इसलिए आपके हृदय में समस्या है। मैं आपको उसका वचन याद रखने की सलाह देता हूँ, “तुम मेरी विधियों को निरन्तर मानना। अपने पशुओं को भिन्न जाति के पशुओं से मेल खाने न देना; अपने खेत में दो प्रकार के बीज इकट्ठे न बोना; और सनी और ऊन की मिलावट से बना हुआ वस्त्र न पहिनना” (लैव्यव्यवस्था १९:१९)।
 
 
पवित्र स्थान में प्रवेश करने के लिए, हमें केवल इसके द्वार से होकर प्रवेश करना चाहिए
 
मिलापवाले तम्बू का द्वार कौन सी सामग्री से बना था? वह नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े और बटी हुई सनी के कपड़े से बुना गया था। जिन्होंने पानी और आत्मा के सुसमाचार से नया जन्म पाया है उन्हें तम्बू का द्वार खोलना चाहिए और पवित्र स्थान में प्रवेश करना चाहिए। तम्बू के द्वार के खम्भों के निचे, पीतल की कुर्सिया लगाईं गई थी। यह पीतल की कुर्सिया हमें यह स्वीकार करवाती है की पानी और आत्मा का सुसमाचार उद्धार की सच्चाई है।
वे हमें सिखाती है की भले ही हमारे पास परमेश्वर से हमारे पापों का दण्ड पाने और मरने के अलावा कोई ओर विकल्प न हो, लेकिन पानी और आत्मा के सुसमाचार के द्वारा पानी और आत्मा से नया जीवन पाने की आशीष प्राप्त करने के द्वारा, हम परमेश्वर की निज प्रजा बने है। हम तम्बू में केवल तभी प्रवेश कर सकते है जब हम द्वार में इस्तेमाल हुए चार रंग के कपड़ों के झूठे विचार को निकाल दे की हम केवल लाल कपड़े में प्रगट हुई यीशु की सेवकाई पर विश्वास करने के द्वारा हु बच सकते है।
जब तक हम हमारे स्व केन्द्रित विचार और विश्वास को फेंक नहीं देते, तब तक हम नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े में प्रगट हुए उद्धार पर विश्वास नहीं कर सकते। हमें यह समझना चाहिए की नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े और बटी हुई सनी के कपड़े में प्रगट हुआ सत्य पानी और आत्मा का सुसमाचार है, और जब हमने पहले केवल क्रूस के लहू पर विश्वास किया था वह स्व केन्द्रित विचार को झूठ के रूप में स्वीकारना चाहिए।
यदि परमेश्वर की इच्छा है तो फिर वह आपको पानी और आत्मा के सुसमाचार की सच्चाई की ओर लेकर जाएगा। जो लोग पानी और आत्मा के सुसमाचार की सच्चाई पर विश्वास करते है केवल वे ही अपने सारे पापों की माफ़ी पा सकते है और अनन्त जीवन प्राप्त कर सकते है। केवल तभी हम अपने हृदय में इस सत्य पर विश्वास करने के द्वारा उद्धार के द्वार को खोल सकते है और पवित्र स्थान में प्रवेश कर सकते है।
यदि हम हमारे उस पुराने विश्वास के झूठ को परखने में विफल हो जाते है जो आप पानी और आत्मा के सुसमाचार को जानने से पहले करते थे, तो फिर आप पाप के दण्ड को सहन करेंगे, क्योंकि आप उद्धार पाने के लिए सक्षम नहीं होंगे। यदि ऐसा होता है, तो आप पवित्र स्थान में भी प्रवेश नहीं कर सकते और जीवन की रोटी को नहीं खा सकते। जब आप पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करने के द्वारा पवित्र स्थान में प्रवेश करते है केवल तभी आप जीवन कोई रोटी को पा सकते है।
आपको समझना चाहिए की प्रभु ने अपने बपतिस्मा यानि की नीले कपड़े से आपके पापों को साफ़ करके और क्रूस पर लहू बहाने के द्वारा आपके पापों के दण्ड को सहन करके यानी की लाल कपड़े से आपको परमेश्वर की संतान बनाया है। और आपको स्पष्ट रूप से समझना और विश्वास करना चाहिए की पानी और आत्मा का सुसमाचार वो सत्य है जो आपके लिए निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है। जब आप जानते है की परमेश्वर ने ही आपको पानी और आत्मा का सुसमाचार दिया है और जब आप इस सुसमाचार पर विश्वास करते है केवल तभी आप परमेश्वर की कलीसिया में प्रवेश कर सकते है और धर्मी के साथ जीवन की रोटी बाँट सकते है। 
 
 

प्रभु का मांस जीवन की रोटी और पाप की माफ़ी है

 
आइए हम यूहन्ना ६:४९-५३ की ओर मुड़ते है: “तुम्हारे बापदादों ने जंगल में मन्ना खाया और मर गए। यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उस में से खाए और न मरे। जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी, मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा; और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूँगा, वह मेरा मांस है।” इस पर यहूदी यह कहकर आपस में झगड़ने लगे, “यह मनुष्य कैसे हमें अपना मांस खाने को दे सकता है?” यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं।” यीशु ने कहा की जो उसके मांस को खाए और लहू को पाई वह अनन्त जीवन पाएगा। इस भाग का मतलब है की हम सब को यीशु के मांस को खाना चाहिए और उसके लहू को पीना चाहिए।
तो फिर हम कैसे यीशु के मांस को खा सकते है और उसके लहू को पी सकते है? पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करने के द्वारा हम उसके मांस को खा सकते है और लहू को पी सकते है। यीशु ने अपने बपतिस्मा के द्वारा हमारे सारे पापों को उठाया यह विश्वास करने के द्वारा हम उसके मांस को खा सकते है, और यीशु ने हमारे पापों को अपने कंधो पर उठाया और उनके लिए क्रूस पर दण्ड सहा यह विश्वास करने के द्वारा हम उसके लहू को पी सकते है।
हमें यह भी विश्वास करना चाहिए की नीले, बैंजनी, और लाल कपड़े और बटी हुई सनी के कपड़े में प्रगट हुए उध्दार के कार्य के द्वारा, यीशु ने हमारे पापों को मिटाया है और हमें परमेश्वर की संतान बनाया है। आप पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करने से पहले कैसा विश्वास करते थे इसकी परवाह किए बिना, आपको यह स्वीकार करना चाहिए की आपका पुराना विश्वास गलत था, और अब आपको यीशु के मांस को खाकर और उसके लहू को पीकर और वचन की रोटी खाने के द्वारा विश्वास की पत्री को बनाना चाहिए।
यूहन्ना ६:५३ कहता है, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं।” यहाँ तक की अभी भी, कुछ लोग रूपांतरण के सिध्धांत के लिए बहस करने के लिए इस भाग का उपयोग करते है। यह सिध्धांत कहता है की जब विश्वास से इस विधि को किया जाता है तब प्रभु भोज में इस्तेमाल होने वाले दाखरस और रोटी यीशु के वास्तविक मांस और लहू में रूपांतर हो जाते है। लेकिन हमें यह समझना और विश्वास करना चाहिए की यूहन्ना ६:५३ का यह भाग, रूपांतरण से कही दूर है, वास्तव में यह पानी और आत्मा के सुसमाचार के बारे में बताता है।
प्रभु भोज के दौरान, यदि आप कतार में इंतज़ार कर रहे है और याजक रोटी का एक टुकड़ा आपके मूँह में रखता है, तो क्या यह रोटी यीशु के मांस में रूपांतर हो जाति है? ऐसा नहीं होता! हम यह विश्वास करने के द्वारा यीशु के मांस को खा सकते है और उसके लहू को पी सकते है की यीशु इस पृथ्वी पर आया था, और बपतिस्मा लेने के द्वारा जगत के पापों को उठाया और उन्हें साफ़ किया, इन पापों को क्रूस तक लेकर गया और मर गया, और इस प्रकार हमें मृत्यु से बचाया है।
जो लोग विश्वास से यीशु के मांस को खाते है और उसके लहू को पीते है वे वही लोग है जो इस सच्चाई पर विश्वास करते है की यीशुने, नीले और लाल कपड़े से, हमारे पापों को अपने ऊपर उठाने और पाप का दण्ड सहने के द्वारा हमें बचाया है। हमें यीशु मसीह के बपतिस्मा और लहू पर हमारे विश्वास के द्वारा यीशु का मांस खाना चाहिए और उसका लहू पीना चाहिए।
अपने ऊपर डाले गए हमारे पापों को स्वीकार करने के लिए, यीशु ने यरदन नदी में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से बपतिस्मा लिया। आइए हम मत्ती ३:१५-१७ की ओर मुड़ते है: “यीशु ने उसको यह उत्तर दिया, “अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है।” तब उसने उसकी बात मान ली। और यीशु बपतिस्मा लेकर तुरन्त पानी में से ऊपर आया, और देखो, उसके लिए आकाश खुल गया, और उसने परमेश्‍वर के आत्मा को कबूतर के समान उतरते और अपने ऊपर आते देखा। और देखो, यह आकाशवाणी हुई : “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।”
क्योंकि जब यीशु ने यूहन्ना से बपतिस्मा लिया और क्रूस पर मरा तब हमारे सारे पापों को ले लिया ताकि वह परमेश्वर की सब धार्मिकता को पूरा करे। हमारा विश्वास जो सुसमाचार की सच्चाई पर विश्वास करता है, की जब यीशु ने यूहन्ना से बपतिस्मा लिया तब जगत के सारे पाप यीशु पर डाले गए, यह सच्चा विश्वास है जिसके साथ हम यीशु के मांस को खा सकते है और उसके लहू को पी सकते है।
यदि आप इस सत्य को पहचानते है, तो आपने पहले से ही विश्वास के द्वारा यीशु के मांस को खाया है। जगत के आपके पाप एक ही बार में हमेशा के लिए यीशु पर डाले गए है यह सत्य है, और इसलिए आपके हृदय में यह विश्वास करना आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह विश्वास वो विश्वास है जो आपको यीशु का मांस खाने के लिए योग्य बनाता है। क्या आपके पाप उसके बपतिस्मा के द्वारा उसके ऊपर नहीं डाले गए? जब आप यह विश्वास करते है केवल तभी आप यीशु के मांस को खा सकते है। यीशु को बपतिस्मा देने के बाद, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने ऊँची आवाज में पुकारा, “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है जो जगत का पाप उठा ले जाता है!” (यूहन्ना १:२९) 
और क्योंकि यीशु ने अपने बपतिस्मा के द्वारा जगत के पापों का स्वीकार किया था, इसलिए उसने उन्हें अपने शरीर पर उठाया, क्रूस पर चढ़ाया गया, उसके हाथ और पाँव में किले ठोकी गई, और उसके लहू को बहाया गया, मरते समय यीशु ने ऊँची आवाज में कहा, “पूरा हुआ!” फिर वह तिन दिनों में मृत्यु से जीवित हुआ, ४० दिनों तक गवाही दी, स्वर्ग में उठा लिया गया, और अब वह परमेश्वर पिता की दाहिनी ओर बैठा है। और उसने यह वादा भी किया है की जैसे उसे स्वर्ग में उठा लिया गया वैसे ही वह फिर आएगा। क्या आप अपने हृदय में इस सत्य पर विश्वास करते है? इस सत्य पर विश्वास करने के द्वारा आप यीशु के मांस को खा सकते है और उसके लहू को पी सकते है। जब हम अपने हृदय में सचमुच विश्वास करते है केवल तभी हम यीशु के मांस को खा सकते है और लहू को पी सकते है। इस विश्वास के साथ हम पवित्र स्थान की रोटी खा सकते है।
हमारे परमेश्वर ने हमें आदेश दिया है की जब भी हम इकठ्ठा हो तो उसके मांस और लहू को याद करे (१ कुरिन्थियों ११:२६)। उसी रूप से, जब भी हम इकठ्ठा होते है, तब हमें हर समय यीशु के मांस और लहू का स्मरण करना चाहिए। जब भी हम इकठ्ठा होते है तब हम विश्वास के द्वारा यीशु के मांस को खाना है और उसके लहू को पीना है, तो फिर हम कैसे प्रभु भोज को केवल औपचारिक विधि के रूप में ले सकते है?
क्योंकि हम उस बपतिस्मा पर विश्वास करते है जिसके द्वारा यीशु ने हमारे पापों को अपनी देह पर उठाया और उसके बलिदान के लहू पर विश्वास करते है, यह विश्वास के द्वारा है की हम हरदिन उसके मांस और लहू को याद करते है। क्योंकि हम पानी और आत्मा के सत्य पर विश्वास करते है इसलिए हम हरदिन यीशु के मांस को खाते है और लहू को पीते है। जैसे यीशु ने कहा है, “जो मेरा मांस खता और लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है (यूहन्ना ६:५४),” वह उन लोगों को जीवित करेगा जो अन्त के दिन में उसका मांस खाते है और उसका लहू पीते है।
हमें यह स्वीकार करना चाहिए की यदि हमारा विश्वास हमें यीशु के मांस को खाने और उसके लहू को पीने के लिए सक्षम नहीं बनाता है, तो यह दोषपूर्ण विश्वास है। हमारे प्रभु ने कहा है, “जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊँगा। 55क्योंकि मेरा मांस वास्तव में खाने की वस्तु है, और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है वह मुझ में स्थिर बना रहता है, और मैं उस में। जैसा जीवते पिता ने मुझे भेजा, और मैं पिता के कारण जीवित हूँ, वैसा ही वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा” (यूहन्ना ६:५४-५७)।
जो लोग विश्वास से प्रभु का मांस खाते है और उसका लहू पीते है वे उसके कारण जीवित रहेंगे। दूसरी ओर, जो लोग प्रभु का मांस नहीं खाते और उसका लहू नहीं पीते वे मर जाएंगे क्योंकि उन्होंने विश्वास नहीं किया। लेकिन हमारे लिए विश्वास के द्वारा यीशु का मांस खाना और उसका लहू पीना कठिन नहीं है।
आइए एक पल के लिए मान लेते है की परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए हमें उद्धार की परीक्षा देनी है। इसका एक प्रश् इस तरह से है, “ऐसा कौन सा विश्वास है जो आपको यीशु का मांस खाने और उसका लहू पीने के लिए सक्षम बनाता है?” हेम इस प्रश्न का उत्तर कैसे देना चाहिए? जब यीशु का मांस और उसका लहू दोनों मिलकर सत्य को बनाते है, तो क्या हम यह कह सकते है की हमने यीशु का मांस खाया है जब की वास्तव में हमने केवल उसका लहू पीया है? हमें उत्तर में यीशु का बपतिस्मा और उसका लहू दोनों लिखना चाहिए। जब हम यीशु का मांस खाते है और उसका लहू पीते है केवल तभी हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते है। यदि पहले हमारे पास गलत विश्वास था, लेकिन यदि हम अपने हृदय को मोड, यीशु के मांस को खाए और उसके लहू को पिए, तो हम परीक्षा में पास हो सकते है। यदि हम अभी यीशु के मांस और लहू पर विश्वास करे, तो हम पर्याप्त रूप से परीक्षा को पास कर सकते है।
मनुष्य बाहरी रूप को देकता है, लेकिन परमेश्वर हृदय के अन्दर देखता है, और इसलिए जब हम यीशु के बपतिस्मा और लहू दोनों पर विश्वास करते है, तब हम यीशु का मांस खाते है और उसका लहू पीते है। हम सच में हमारे हृदय में यीशु के मांस और उसके लहू पर विश्वास करते है या नहीं ये देखने के लिए परमेश्वर हमारे हृदय में देखते है। इसलिए, यदि हम हमारे हृदय में यीशु के मांस और उसके लहू पर विश्वास नहीं करते तो पाप से हमारा उद्धार नहीं हुआ है। कोई फर्क नहीं पड़ता की आप पहले कितना विश्वास करते थे, यदि अब आपके पास ऐसा विश्वास है जो यीशु के मांस और लहू दोनों पर विश्वास करता है, तो फिर आप स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते है।
इस जगत के बहुत सारे धर्म रूपांतरण के सिध्धांत की सत्यता पर वाद विवाद करते है। वास्तव में हमें विश्वास की आवश्यकता है जो हमें यीशु का मांस और उसका लहू पीने के लिए सक्षम बनाए। लेकिन यह केवल तभी सम्भव है जब हम अपने हृदय में पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करे। पानी और आत्मा के सुसमाचार के द्वारा हमारे हृदय में यीशु पर विश्वास करना सच्ची रोटी खाना और सच्चा लहू पीना है।
 
 
हमें यीशु के बपतिस्मा और लहू पर हमारे पाप की माफ़ी के रूप में विश्वास करना चाहिए
 
हमारे प्रभु ने कहा है, “मेरा लहू वास्तव में पीने की वास्तु है” (यूहन्ना ६:५५)। हमारे प्रभु ने क्रूस पर पाप के दण्ड को सहा था। जो विश्वास इस बात पर विश्वास करता है की यीशु ने बपतिस्मा लेने के द्वारा हमारे पापों को ले लिया है और क्रूस पर अपना लहू बहाया यह वाही विश्वास है जो हमें यीशु के लहू को पीने के लिए सक्षम बनता है। यूहन्ना से बपतिस्मा लेने के द्वारा यीशु ने हमारे सारे पापों को उठाया है, जिसमे आपके बच्चे, आपके मातापिता, और हम में से प्रत्येक व्यक्ति के पापों का समावेश होता है, और क्रूस पर अपना लहू बहाने के द्वारा उसने इन सब पापों के दण्ड को सहा। अपने बपतिस्मा और लहू के साथ, यीशु ने हमारी पापों की सारी समस्या को सम्पूर्ण रीति से इस जगत के सारे लोगों के लिए सुलझा दिया है। यीशु ने अपने बपतिस्मा के द्वारा हमारे पापों को उठाया और क्रोस पर अपने लहू के द्वारा उसने हमारे पापों का दण्ड सहा ऐसा मानना विश्वास के द्वारा यीशु का लहू पीना है।
आज की दुनिया में, बहुत सारे लोग है जो कहते है की वे केवल अपने शब्दों से पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करते है। लेकिन वे यीशु के मांस और उसके लहू में पूरी तरह से विश्वास नहीं करते। कोई भी व्यक्ति जिसके पास सम्पूर्ण विश्वास नहीं है जो यीशु के मांस और लहू पर विश्वास करता है वे पाप से माफ़ी नहीं पा सकते। आपने शायद पहले विश्वास किया होगा की क्रूस का लहू की एकमात्र सच्चाई है, लेकिन अब जब आपने वास्तविक सच्चाई को पाया है, इसलिए अब आपके पास ऐसा विश्वास होना चाहिए जो यीशु के मांस और लहू पर विश्वास करता हो। केवल तभी परमेश्वर आपको उद्धार पाया हुआ व्यक्ति समझेंगे। दूसरी ओर, लेकिन यदि आप इस बात में विश्वास की स्पष्ट सीमा नहीं खींचते – अर्थात्, विश्वास के द्वारा प्राप्त की हुई पाप की माफ़ी जो हृदय में यीशु के मांस और लहू पर विश्वास करती है – तो फिर आपका विश्वास परमेश्वर के द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता।
हमारे प्रभु ने कहा है, “जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है वह मुझ में स्थिर बना रहता है, और मैं उस में” (यूहन्ना ६:५६)। लेकिन जब तक हम विश्वास से यीशु के मांस को नहीं खाते और लहू को नहीं पीते, तब तक हम परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश नहीं कर सकते। और कोई भी व्यक्ति जिसके पास यह विश्वास नहीं है जो यीशु के मांस और लहू पर विश्वास करता है तो वह प्रभु में बना नहीं रह सकता। यह मेरी हार्दिक आशा है की हमारी कलीसिया के कोई भी संत, कार्यकर्ता और प्रभु का सेवक इस विश्वास से गिरना नहीं चाहिए जो यीशु के मांस और लहू पर विश्वास करता है।
जब सदोम और गमोरा को आग से नाश किया गया, तब लूत के दामाद ने परमेश्वर के वचन को केवल एक मजाक समजा जो लूत ने उनसे कहे थे। जो लोग परमेश्वर के वचन को गंभीरता से नहीं लेते, उन लोगों के ऊपर परमेश्वर का न्याय आएगा जैसे लिखा गया है। अविश्वासी अपने अविश्वास के पाप के करण दण्ड सहेंगे। वे अपने पापों की वजह से नाश होंगे। यह कोई हँसी की बात नहीं है।
पानी और आत्मा का सुसमाचार यीशु के मांस और लहू पर विश्वास को दर्शाता है। इस सत्य पर विश्वास करने के द्वारा हमने हमारे पापों से माफ़ी पाई है और अनन्त जीवन प्राप्त किया है। क्योंकि यीशु के मांस और लहू का विश्वास जिस पर हम विश्वास करते है वह सच्चा सुसमाचार और सच्चा सत्य है, हमें इस सत्य को हमारे हृदय में रखना चाहिए। सबसे पहले हमारे हृदय में विश्वास की पटरी बनाने के द्वारा, हमें परमेश्वर के सारे वचन को थामे रहना चाहिए और इन्हें फिसलने नहीं देना चाहिए। हमारे हृदय में विश्वास करने के द्वारा, हमें इस सत्य का स्वीकार करना चाहिए की परमेश्वर ने यीशु के मांस और लहू से पापियों के सारे अपराधों को मिटा दिया है।
मैं आशा और प्रार्थना करता हूँ की आप सब प्रभु के द्वारा परिपूर्ण किए हुए पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करे, उद्धार की रोटी खाए जो आपको आपके पापों से बचाती है, और इस प्रकार अनन्त जीवन प्राप्त करे।